पुरानी पुरातात्विक खोजों ने दिखाया है कि निएंडरथाल मानव जितना सोचा गया था उससे कहीं ज्यादा उन्नत और कुशल थे. वे लोग मृत्यु के बाद अंतिम संस्कार करते थे और उनके हथियार और गहने काफी बेहतर थे. हालांकि उनके परिवार की संरचना के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी. यह भी नहीं पता था कि उनका समुदाय कैसे विकसित हुआ.
2010 में पहले निएंडरथाल जीनोम की सीक्वेंसिंग स्वांते पेबो ने तैयार की. पेबो को इस साल चिकित्सा का नोबेल पुरस्कार दी गई है. उनकी खोज ने हजारों साल पहले लुप्त हो चुके इंसान के पूर्वजों के बारे में खोज करने का एक नया तरीका दिया है. रिसर्चरों की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने दक्षिणी साइबेरिया के चागरिस्काया और ओकलादनिकोव की गुफाओं में मिले निएंडराथल जीवाश्मों पर फोकस किया है. जगह जगह फैले हड्डियों के टुकड़े पृथ्वी की एक ही परत में मिले थे. इससे पता चलता है कि निएंडरथाल एक ही समय में रहे थे.
जर्मनी की माक्स प्लांक इंस्टीट्यूट की इवोल्यूशनरी जेनेटिसिस्ट और रिसर्च रिपोर्ट के सहलेखकों में एक श्टेफाने पेयरेग्ने ने बताया, ‘पहले तो हमें यह पता लगाना था कि हमारे पास कितने लोग (निएंडरथाल) हैं.’ टीम ने नई तकनीकों का इस्तेमाल कर हड्डियों के टुकड़ों से प्राचीन डीएनएन को अलग किया. डीएनए की सीक्वेंसिंग करने से यह पता चला कि कुल 13 निएंडरथाल थे. इनमें सात पुरुष और छह महिलाएं. समूह में शामिल पांच निएंडरथाल बच्चे थे. इनमें से 11 चागरिस्काया गुफा में थे और उनमें कई एक ही परिवार के थे. इनमें एक बाप और उसकी किशोरी बेटी, एक बच्चा और उसकी रिश्तेदार और जो चचेरी बहन, चाची या फिर दादी भी हो सकती है.
रिसर्चरों ने पता लगाया है कि एक शख्स जो पिता रहा होगा उसकी मां की तरफ का भी कोई रिश्तेदार था. रिसर्चरों को उसमें हेट्रोप्लाज्मी जेनेटिक गुण मिला है, जो कई पीढ़ियों के बाद एक से दूसरे में जाता है. माक्स प्लांक इंस्टीट्यूट के बेन्यामिन पेटर का कहना है, ‘हमारी स्टडी निएंडरथाल समुदाय कैसा दिखता होगा इसकी पुख्ता तस्वीर दिखा रही है. मेरे लिए अब निएंडरथाल काफी हद तक मानव है.’
जेनेटिक विश्लेषण यह दिखाता है कि इस समूह के सदस्य आम तौर पर इंसानों और डेनिसोवैंस जैसे आदिमानवों के साथ सहवास नहीं करते थे. इन सब के जीवाश्म कुछ सौ किलोमीटर के दायरे में मिले हैं. हालांकि कुछ रिसर्च निएंडरथाल के होमो सेपियंस से सहवास की पुष्टि कर रहे हैं और इस बारे में हाल ही में पुख्ता जानकारी मिली है. इसके आधार पर यह भी कहा जा रहा है कि आधुनिक मानव की हर प्रजाति में कुछ हिस्सा निएंडरथाल का भी है. स्वांते पेबो की खोज ने आदिमानव के बारे में पक्की जानकारी जुटाना संभव किया है
पुरुष घर में महिलाएं बाहर
10-20 निएंडरथालों का जो समूह मिला है वह आपस में ही सहवास करके बच्चे पैदा करते थे. उनके जीनों में ज्यादा विविधता नहीं मिली है. निएंडरथाल 4,30,000 से 40,000 साल पहले तक धरती पर मौजूद थे. इसका मतलब है कि यह समूह निएंडरथाल के खत्म होने से कुछ ही समय पहले के जीवों का है. रिसर्च में समुदाय के स्तर पर निएंडरथाल के अंतःप्रजनन की तुलना पहाड़ी गोरिल्लों के अंतःप्रजनन से की गई है. निएंडरथाल के अंतःप्रजनन की एक वजह यह भी है कि वो अलग थलग इलाकों में रहते थे.
रिसर्चरों ने देखा कि वाई क्रोमोसोम जो पिता से पुत्र में आते हैं, वो मां से आने वाले माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए की तुलना में कम असमान थे. इससे पता चलता है कि महिलाएं ज्यादा बाहर जाती थीं, निएंडरथाल के अलग-अलग समूहों से मिलतीं और प्रजनन करती थीं, जबकि पुरुष ज्यादातर घर पर रहते थे. फ्रांस की नेशनल म्यूजियम ऑफ नेचुरल हिस्ट्री से जुड़े वैज्ञानिक एंटोइन बाल्जे कहते हैं कि स्पेन की सिड्रोन गुफा में मिले नये जीवाश्म बताते हैं कि इसी तरह का एक निएंडरथाल समुदाय यहां भी था लेकिन उनके जेनेटिक मैटेरियल बहुत कम हैं.
निएंडरथाल और आधुनिक मानव यूरोप में 2000 साल साथ रहे
पहले माना जाता था कि इंसान की दो प्रजातियां एक जगह एक साथ कभी नहीं रहीं. एक नई रिसर्च ने बताया है कि निएंडरथाल और होमो सेपियंस यानी आधुनिक मानव एक दो नहीं, बल्कि हजारों साल साथ रहे हैं.
आदिमानव से आधुनिक मानव तक की विकास यात्रा में कई प्रजातियां आईं और चली गईं. इनमें इंसान का सबसे करीबी पूर्वज है निएंडरथाल, जो करीब 40 हजार साल पहले लुप्त हुआ था. निएंडरथाल और होमो सेपियंस यानी आधुनिक मानव की प्रजाति धरती के कुछ हिस्सों में 2900 साल तक साथ रहे थे. इन प्रजातियों के साथ रहने के प्रमाण फ्रांस और उत्तरी स्पेन में मिले हैं. दोनों प्रजातियों को लंबे समय तक साथ रहने के कारण एक दूसरे से सीखने और मिलकर प्रजनन का भरपूर मौका मिला था.
आधुनिक मानव और निएंडरथाल का संबंध
साइंटिफिक रिपोर्ट्स जर्नल में प्रकाशित नई रिसर्च रिपोर्ट में इस बात के सबूत नहीं हैं कि 42000 साल पहले आधुनिक मानव का निएंडरथाल से सीधा संपर्क था. हालांकि इससे पहले हुए जेनेटिक रिसर्चों ने दिखाया है कि किसी बिंदु पर दोनों के बीच सीधा संपर्क और मेलजोल रहा था. इस साल चिकित्सा का नोबेल पुरस्कार जीतने वाले स्वीडिश जीवाश्म जीन विज्ञानी स्वांते पेबोकी खोज ने यह दिखाया है कि यूरोपीय लोगों और लगभग पूरी दुनिया के इंसानों में निएंडरथाल डीएनए का कुछ प्रतिशत हिस्सा मौजूद है.
नीदरलैंड्स की लीडेन यूनिवर्सिटी में पीएचडी के छात्र इगोर जाकोविच नई स्टडी के प्रमुख लेखक हैं. उनका कहना है कि आधुनिक मानव और निएंडरथाल ‘यूरोप में मिले और आपस में जुड़े थे, लेकिन हमें यह नहीं पता कि यह काम किस खास इलाके में हुआ था.’ यह काम किस वक्त हुआ ठीक ठीक यह भी बता पाना थोड़ा मुश्किल है, हालांकि जीवाश्मों के पुराने अध्ययनों से ऐसी जानकारी मिली है कि आधुनिक मानव और निएंडरथाल धरती पर हजारों साल तक एक साथ मौजूद थे.
रेडियोकार्बन डेटिंग का सहारा
ज्यादा जानकारी जुटाने के लिए लीडेन यूनिवर्सिटी के नेतृत्व में रिसर्चरों की टीम ने 56 प्राचीन नमूनों की रेडियोकार्बन डेटिंग का सहारा लिया. इनमें से 28 निएंडरथाल और इतने ही आधुनिक मानव के थे. इन्हें फ्रांस और उत्तरी स्पेन की 17 जगहों से जुटाया गया था. इन प्राचीन नमूनों में हड्डियां, पत्थरों के बने चाकू जैसी चीजें थीं, जिनके बारे में माना जाता है कि इलाके के निएंरथाल मानव ने बनाया था. रिसर्चरों ने संभावित तारीखों तक पहुंचने के लिए बायेजियन मॉडलिंग का सहारा लिया.
इसके बाद उन्होंने मॉडलिंग की नयी तकनीक का इस्तेमाल किया जो बायोलॉजिकल कंजर्वेशन साइंसेज के आधार पर तैयार की गई है. यह इलाके में निएंडरथाल के रहने का सबसे सही आकलन करता है.
जाकोविच का कहना है कि इस तकनीक की ‘आधारभूत धारणा’ है कि हम लुप्त हो चुकी प्रजाति के पहले या आखिरी सदस्य की शायद कभी खोज नहीं कर पायेंगे. जाकोविच ने उदाहरण दे कर समझाया, ‘हम आखिरी रोएंदार गैंडों का कभी पता नहीं लगा सकेंगे, हमारी समझ हमेशा टुकड़ों में बंटी रही है.’
निएंडरथाल मानव आधुनिक मानव का सबसे नजदीकी पूर्वज. हर इंसान के डीएनए में निएंडरथाल
मॉडलिंग के जरिये पता चला है कि इस इलाके में निएंडरथाल 40,870 से 40,457 साल के बीच लुप्त हुए. आधुनिक मानव की उत्पत्ति 42,500 साल पहले हुई थी. इसका मतलब है कि दोनों प्रजातियां इस इलाके में 1400 से 2900 साल तक साथ रही थी. इस दौरान दोनों प्रजातियों यानी निएंडरथाल और आधुनिक मानव के बीच विचारों का मेल हुआ था. यह वो समय था जब इंसानों के जीवन में कई तरह के बदलाव हो रहे थे और हथियार, औजार और आभूषण जैसी चीजों का विकास हो रहा था. निएंडरथाल की बनाई चीजों में इस बदलाव को देखा जा सकता है और वो आधुनिक मानव की बनाई चीजों से कई मामलों में मिलती जुलती हैं.
संस्कृतियों में बदलाव और हमारे जीन्स के सबूतों की एक नई टाइमलाइन इस सिद्धांत को मजबूती दे सकती है कि निएंडरथाल का अंत आधुनिक मानव से संपर्क और संबंध के बाद हुआ. ज्यादा बड़ी आबादी वाले आधुनिक मानव के साथ प्रजनन से इसका अर्थ निकाला जा सकता है. जाकोविच का कहना है कि समय गुजरने के साथ निएंडरथाल, ‘आधुनिक मानव के जीन पूल में शामिल हो गये.’ जाकोविच ने यह भी कहा, ‘अब तक कि हमारी जो जानकारी है उसके साथ इसे मिला दें तो इसका मतलब है कि पृथ्वी पर मौजूद हर इंसान के डीएनए में कुछ हिस्सा निएंडरथल का है और आप यह दलील दे सकते हैं कि वास्तव में निएंडरथाल पूरी तरह से कभी लुप्त हुए ही नहीं.’
54,000 साल पहले निएंडरथालों के यूरोप में गए थे हमारे पूर्वज
विज्ञान की भाषा में हम लोग आधुनिक इंसान हैं. अंग्रेजी में कहें, तो होमो सेपियन्स, जिनके पूर्वज अफ्रीका में रहते थे. दुनिया भर में अब तक हुई पुरातात्विक खोजों में जो कुछ हाथ लगा है, उससे जानकार इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि हमारे सबसे करीबी रिश्तेदार होमो निएंडरथल थे. ये यूरोप और पश्चिमी एशिया में रहते थे. असल में 6 लाख साल पहले अफ्रीका में रहनेवाले इंसानों का ही एक धड़ा यूरोप चला गया था, जो एक थोड़ी अलग प्रजाति में विकसित हो गया था.
अब से करीब 40 हजार साल पहले निएंडरथाल विलुप्त हो गए. ऐसा क्यों हुआ, इसके पीछे कई कयास लगाए जाते हैं. कुछ जानकार कहते हैं कि वे बड़ी आंखों की वजह से विलुप्त हो गए. कुछ कहते हैं कि वे खाने की कमी की वजह से खत्म हो गए. वहीं कुछ जानकारों का अनुमान है कि 45 हजार साल पहले जब हमारे पूर्वजों ने अफ्रीका से यूरोप का रुख किया, तो दोनों प्रजातियों के बीच हुए संघर्ष में आखिरकार निएंडरथाल कमजोर साबित हुए और धरती से खत्म हो गए. हालांकि, कुछ जानकार दोनों प्रजातियों में संघर्ष के अनुमान को सिरे से खारिज करते हैं.
हम सभी होमो सेपियन्स हैं, जो इंसानों की सबसे बुद्धिमान और आखिरी बची प्रजाति हैं. अब एक शोध में जानकारी मिली है कि हमारे पूर्वज 40 हजार नहीं, बल्कि 54 हजार साल पहले निएंडरथलों के इलाकों यानी यूरोप और पश्चिमी एशिया में दाखिल हुए थे. हम सभी होमो सेपियन्स हैं, जो इंसानों की सबसे बुद्धिमान और आखिरी बची प्रजाति हैं. अब एक शोध में जानकारी मिली है कि हमारे पूर्वज 40 हजार नहीं, बल्कि 54 हजार साल पहले निएंडरथलों के इलाकों यानी यूरोप और पश्चिमी एशिया में दाखिल हुए थे.
निएंडरथल महिलाओं की एक काल्पनिक प्रतिकृति, जिसमें वे खुले में काम करती दिखाई गई हैं.तस्वीर: imago images
नया शोध क्या बताता है
अब ‘साइंस एडवांसेस’ में पुरातत्व से जुड़ी एक स्टडी छपी है. इसमें दावा किया गया है कि होमो सेपियन्स के यूरोप जाने के बारे में हम अब तक जो अनुमान लगाते आए हैं, वे उससे कहीं पहले निएंडरथालों के इलाके में दाखिल हो चुके थे. फ्रांस की तुलूस यूनिवर्सिटी के लूडोविक स्लिमक के नेतृत्व में पुरातत्वविदों और जीवाश्म विज्ञानियों ने एक नई खोज की है. इनकी खोज बताती है कि होमो सेपियन्स करीब 54 हजार साल पहले पश्चिमी यूरोप में आ चुके थे.
इस शोध की सबसे अहम खोज यह है कि इंसानों की ये दोनों प्रजातियां मैंडरिन गुफा में एक साथ भी मौजूद रही हैं. आज यह गुफा दक्षिणी फ्रांस के रोन इलाके में पड़ती है. इस इलाके में सबसे पहले 1990 में खुदाई की गई थी. पुरातात्विक खोजों के लिहाज से यह बड़ी अहम जगह है, क्योंकि इसमें परत दर परत इंसानों का 80 हजार साल पुराना अतीत दफन है.
स्लिमक मैंडरिन को निएंडरथालों का पॉम्पेई करार देते हैं. फर्क बस इतना है कि यहां पॉम्पेई की तरह कोई प्राकृतिक आपदा नहीं आई थी. यहां फ्रांस के भूमध्यसागरीय तटों पर चलने वाली ठंडी उत्तरी-पूर्वी हवा के साथ बालू उड़कर आती है. इसी की परतों के नीचे हजारों साल का इतिहास दबा है. स्लिमक की टीम ने ‘ई लेयर’ नाम की एक परत खोजी है, जिसमें उन्हें कम से कम 1,500 कट वाला एक नुकीला पत्थर मिला है. इसमें इतनी बारीक कारीगरी की गई है, जितनी इसके आसपास के किसी नुकीले पत्थर या ब्लेड में नहीं मिलती है.
निएंडरथालों पर खूब शोध कर चुके स्लिमक बताते हैं कि ये टुकड़े बहुत छोटे हैं. कुछ तो एक सेंटीमीटर से भी छोटे हैं. निएंडरथालों के समाज में अमूमन इतना बारीक काम देखने को नहीं मिलता है. स्लिमक का अनुमान है कि ये तीरों के सिरे रहे होंगे, जो उस समय तक यूरोप में रहनेवाले लोग इस्तेमाल नहीं करते होंगे.
साल 2016 में स्लिमक और उनकी टीम हार्वर्ड के पीबॉडी म्यूजियम गई थी. यहां वे अपनी खोजों की तुलना उन जीवाश्मों से करना चाहते थे, जो माउंट लेबनान के केसार अकिल में मिले थे. भूमध्य सागर के पूर्व में स्थित यह जगह होमो सेपियन्स का विस्तार समझने के लिहाज से बेहद अहम है. म्यूजियम में मौजूद जीवाश्मों के साथ अपनी खोजों की तुलना करने के बाद स्लिमक को यकीन हो गया कि मैंडरिन की गुफा में उन्हें जो चीजें मिलीं, वो यूरोप में होमो सेपियन्स की शुरुआती आमद की पुष्टि करती हैं.
सबसे बड़ा सुबूत क्या है ?
स्लिमक के दावे का आधार है दूध का वह दांत, जो उन्हें ‘ई-लेयर’ में मिला. शोधकर्ताओं को मैंडरिन की गुफा में कुल नौ दांत मिले, जो छ: अलग-अलग लोगों के हैं. ये दांत बोर्दू यूनिवर्सिटी के जीवाश्म विज्ञानी क्लेमेन्ट जेनॉली को सौंपे गए थे. माइक्रो-टोमोग्राफी यानी एक्सरे की मदद से किसी ठोस चीज के अंदर का हाल पता लगाने की तकनीक के जरिए इसका राज खुला. ‘ई-लेयर’ में मिला दूध का यह दांत इस जगह मिलने वाला आधुनिक इंसान का इकलौता दांत है.
लंदन के नेचुरल हिस्ट्री म्यूजियम ने एक बयान में कहा है, ‘आधुनिक इंसान के बच्चे के जीवाश्म से मिला चबाने वाला यह दांत पश्चिमी यूरोप में आधुनिक इंसानों की शुरुआती मौजूदगी का सुबूत है.’ इसके बाद पुरातत्वविदों ने फ्यूलिग्नोक्रोनोलॉजी तकनीक के इस्तेमाल से गुफाओं की दीवारों पर जमी कालिख की परतों का विश्लेषण किया, जिससे बहुत पहले इस जगह जलाई गई आग के सुबूत मिलते हैं. फ्यूलिग्नोक्रोनोलॉजी में किसी बंद जगह पर जलाई गई आग से आसपास जमी कालिख का अध्ययन करके अतीत की चीजें समझने की कोशिश की जाती है.
आग से भी पता चला इतिहास
स्लिमक बताते हैं कि इस विश्लेषण से शोधकर्ता इस नतीजे पर पहुंचे कि आधुनिक इंसान इस गुफा में करीब 40 वर्षों तक रहे थे. शोधकर्ताओं का यह भी मानना है कि एक वक्त ऐसा भी था, जब दोनों प्रजातियों के लोग इस गुफा या कम से कम इस इलाके में में साथ में रहते थे. उनका आकलन है कि निएंडरथलों ने होमो सेपियन्स को तीर बनाने के लिए सबसे अच्छे पत्थर फ्लिंट के स्रोत की राह दिखाई होगी, जो यहां से करीब 90 किमी दूर स्थित है.
लंदन के नेचुरल हिस्ट्री म्यूजियम में मानव विकास के विशेषज्ञ और इस शोध के सह-लेखक प्रोफेसर क्रिस स्ट्रिंगर कहते हैं, ‘मैंडरिन की खोज उत्साहित करने वाली हैं. वहीं यूरोप में आधुनिक इंसानों की आमद की पहेली का हल खोजने के क्रम में यह एक और पड़ाव है. हम आखिरी बची हुई प्रजाति कैसे रह गए, यह समझने के लिए यूरेशिया की अन्य प्रजातियों के साथ आधुनिक इंसान का रिश्ता समझना बेहद अहम है.’
क्या कभी इंसान की दो प्रजातियों में भी प्यार हुआ था
डेनी अंतरप्रजातीय प्रेम का नतीजा थी, यह वैज्ञानिक कहते हैं. उसकी मां निएंडरथाल है जबकि पिता डेनीसोवान. यह आदिमानव की एक बिल्कुल अलग प्रजातियां हैं जो यूरेशियाई महाद्वीप में 50,000 साल पहले घुमक्कड़ी करती थी.
इस बच्ची के बारे में नेचर पत्रिका ने खबर दी है. ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने उसे आधिकारिक रूप से डेनिसोवा 11 नाम दिया है. जब उसकी मौत हुई तो वह मात्र 13 साल की थी और मौत की वजह का पता नहीं है. तो क्या अंतरप्रजातीय बच्चों का इतिहास रहा है. माक्स प्लांक इंस्टीट्यूट फॉर इवॉल्यूशनरी एंथ्रोपोलॉजी के रिसर्चर और रिपोर्ट के प्रमुख लेख विवियन स्लॉन का कहना है, ‘इससे पहले भी अलग-अलग होमिनिन यानी प्राचीन मानव समूहों के बीच अंतरसंबंधों के सबूत मिलते हैं. लेकिन ऐसा पहली बार हुआ है कि सीधे हमें पहली पीढ़ी की संतान का पता चला है.’
डेनी की हैरान करने वाली वंशावली का 2012 में एक हड्डी के टुकड़े से पता चला. यह टुकड़ा रूसी आर्कियोलॉजिस्टों ने साइबेरिया के अलटाई पहाड़ों में डेनीसोवा केव में ढूंढ कर निकाला था. हड्डी की डीएनए का विश्लेषण करने के बाद इसमें कोई शक नहीं रहा कि क्रोमोसोम्स में आधा-आधा निएंडरथाल और डेनीसोवान का मिश्रण था. ये चार लाख और पांच लाख साल पहले के इंसानों की दो अलग अलग प्रजातियां हैं.
माक्स प्लांक इंस्टीट्यूट के ही एक और वैज्ञानिक प्रोफेसर स्वान्ते पेबो ने करीब एक दशक पहले उसी जगह पर पहले डेनीसोवान की पहचान की थी. वे कहते हैं, ‘शुरूआत में मुझे लगता था कि उन्हें प्रयोगशालाओं में ही मिलाया गया होगा.’ पूरी दुनिया में महज दो दर्जन से भी कम मानव जीनोम ऐसे हैं जो 40 हजार साल से पुराने हैं. निएंडरथाल, डेनीसोवान और होमो सेपिएंस के रूप में इनकी कड़ियां बनाई गई हैं और इनमें आधे आधे या फिर हाइब्रिड होने की उम्मीद नहीं के बराबर ही है.
स्लॉन का कहना है, ‘सच्चाई यह है कि निएंडरथाल और डेनिसोवान के मिलने से बने इंसान की खोज से हमें लग रहा है कि अंतरप्रजातीय प्रजनन हमने जितना सोचा उससे कहीं ज्यादा हो रहा था.’ पाबो भी उनकी बात से सहमति जताते हैं. 40 हजार साल पुराना निएंडरथाल कई पीढ़ी पुराने होमो सेपिएंस के साथ हाल ही में रोमेनिया में मिला था और इससे इस धारणा को और मजबूती मिलती है.
ऐसी कई और कहानियों के संदर्भ में वो प्रश्न है जिसका जवाब वैज्ञानिक जानना चाहते हैं. सवाल है कि जब निएंडरथाल पश्चिम और मध्य यूरोप के पूरे हिस्से में फैल कर सफल जिंदगी जी रहा था तो वह 40 हजार साल पहले कहां लुप्त हो गया ? अब तक इस लोप के लिए कुछ बीमारियों, जलवायु परिवर्तन, होमो सेपिएंस के हाथों नरंसहार और कुछ मामलों में इन सब को जिम्मेदार माना जाता है. हालांकि अब यह सवाल भी उठ रहा है कि अफ्रीका से आई प्रजाति ने कहीं आक्रमण के बदले प्यार और स्नेह का सहारा तो नहीं लिया ?
हाल की कुछ रिसर्च से यह भी पता चला है कि निएंडरथाल वास्तव में उतने पिछड़े नहीं थे. वो समूह में रह कर शिकार की योजना बनाते थे, आग जलाते थे, उनके पास हथियार और कपड़े भी थे और मरने के बाद प्रतीकात्मक गहनों के साथ दफनाए जाते थे. उन्होंने गुफाओं की दीवारों पर कम से कम 64 हजार साल पहले जानवरों के भित्तिचित्र भी बनाए थे. इसके बहुत बाद जाकर होमो सेपिएंस यूरोप पहुंचे. डेनीसोवान के बारे में बहुत ज्यादा जानकारी नहीं है लेकिन शायद उनका भी यही हश्र हुआ. पेबो ने उनके अस्तित्व की पुष्टि दो उंगलियों की अधूरी हड्डियों और दो चबाने वाले दांतों से की है. इनकी उम्र करीब 80 हजार साल बताई जाती थी.
निएंडरथाल और डेनीसोवान के बीच मुमकिन है कि आपस में काफी मेलजोल रहा हो लेकिन सच्चाई यह है कि जहां निएंडरथाल ज्यादातर यूरोप में रहे वहीं रिसर्चरों का अनुमान है कि डेनीसोवान मध्य और पूर्व एशिया में रहे.
आधुनिक मानव और निएंडरथाल के बीच कितना अंतर था ?
मानव की उत्पत्ति का रहस्य अब भी वैज्ञानिकों के लिए एक बड़ी पहेली है. रेंगने वाले जीव से इंसान के विकास तक की दास्तान तो छोड़िए इंसान की ही अलग-अलग प्रजातियों का सफर कैसे चला यह नहीं सुलझ पा रहा है. एक नई बात पता चली है.
मानव की उत्पत्ति का रहस्य सुलझाने में लगे वैज्ञानिक अब उन्नत डीएनए तकनीकों पर ज्यादा भरोसा करने लगे हैं. इससे उन्हें हमारे प्राचीन पूर्वजों के समय जीवाश्मों का पता लगाने के लिए ‘मॉलिक्यूलर क्लॉक’ मिलता है.
हालांकि हाल ही में वैज्ञानिकों को जीवाश्म में मिले दांतों का परीक्षण करने की एक नई तकनीक का पता चला जो निएंडरथाल और आधुनिक मानव के बीच के विस्तार को पहले की तुलना में बहुत ज्यादा बता रहा है. यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन की आईदा गोमेज रॉबल्स का कहना है कि दोनों प्रजातियों का जो आखिरी पूर्वज था वह कम से कम 8 लाख साल पहले धरती पर था.
इसके साथ ही मानव शास्त्रियों के बीच गर्म रहने वाली बहस में एक नई कहानी जुड़ गई है. नई टाइमलाइन मौजूदा टाइमलाइन की तुलना में 2 से 4 लाख साल पुरानी है. अगर यह दावा सच निकलता है तो होमो हाइडेलबेरगेंसिस खारिज हो जाएगा. यह एक और मानव की प्रजाति है जो लुप्त हो चुकी है. यह होमो सेपियंस और हमारे नजदीकी पूर्वज निएंडरथाल के बीच में आती है.
गोमेज रोबल्स का रिसर्च पेपर बुधवार को साइंस एंडवांसेज में प्रकाशित हुआ है. इस रिसर्च पेपर के मुताबिक हाल ही में होमिनिन दांतों की रिसर्च ने दिखाया है कि मानव प्रजातियों के आकार में भले ही अंतर हो लेकिन उनके दांत के आकार में समानता है और सभी प्रजातियों में इनके विकास की गति सुदृढ़ रही है. रॉबल्स ने 30 जीवाश्मों की दाढ़ और उससे आगे के चबाने वाले दांतों का परीक्षण किया. इन्हें पहले स्पेन से मिले निएंडरथाल और सात दूसरी लुप्त हो चुकी प्रजातियों का दांत माना जाता था. वो यह जानना चाहती थीं कि समय के साथ इनमें कितना बदलाव हुआ.
2014 की एक स्टडी में चमक तकनीक और पुराचुम्बकत्व तरीके से अध्ययन में स्पेन की इन गुफाओं का भरोसेमंद तरीके से समय बताया गया था. स्पेन के एतापुएर्का पहाड़ों की इन गुफाओं का काल 4 लाख 30 हजार साल पहले का बताया गया. इससे यह संकेत मिला कि सेपियंस और निएंडरथाल इससे पहले ही अलग हो गए थे.
कंप्युटर मॉडलिंग का इस्तेमाल कर उन्होंने पता लगाया है कि सिमा दांतों में जो खास गुण नजर आए हैं उसका मतलब है कि सेपियंस और निएंडरथाल 8 लाख साल पहले ही अलग हो गए थे. इसमें उन्होंने मजबूत जलवायु कारणों को खारिज किया है जिसके कारण प्रजातियों का विकास ज्यादा तेजी से हुआ. रॉबल्स ने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया, ‘सबसे बड़ा प्रभाव यह है कि होमो हाइडेलबेरगेंसिस आधुनिक मानव और निएंडरथाल दोनों का पूर्वज नहीं हो सकता.’
इस खोज से लंबे समय से चली आ रही बहस खत्म नहीं होगी, ना ही यह बहस कमजोर होगी क्योंकि डीएनए आधारित डेटिंग की तकनीक से जिसका यह विरोध करती है वह भी इन्हीं धारणाओं पर भरोसा करता है कि समय के साथ जेनेटिक्स में कितना तेज बदलाव होता है.
गोमेज रॉबल्स का कहना है कि कोई भी तरीका पक्का नहीं है, लेकिन शारीरिक बदलाव का अध्ययन “हमें ज्यादा सही तस्वीर देता है.” इसकी एक वजह यह भी है कि सबसे ज्यादा प्राचीन जीवाश्मों से डीएनए हासिल कर पाना अब भी संभव नहीं है. इसके साथ ही विकसित हो रहे शरीर का अलग अलग टाइमलाइन इस बात का भी सबूत है कि अलग अलग प्रजातियों के बीच कोई साफ विभाजन नहीं था.
निएंडरथाल मानव आग जलाना जानता था
फ्रांस में 50 हजार साल पहले के कई औजारों का विश्लेषण करने के बाद रिसर्चरों ने दावा किया है कि निएंडरथाल मानव पत्थरों से आग जलाना जानते थे. निएंडरथाल मानव आग से परिचित थे और इसका इस्तेमाल भी किया करता है, यह तो सभी जानते हैं लेकिन माना जाता रहा है कि ज्यादातर ऐसा प्राकृतिक कारणों से होता था जैसे कि बिजली गिरना या फिर ज्वालामुखी विस्फोट.
फ्रांस की राजधानी पेरिस में प्राचीन औजारों का विश्लेषण करने के बाद कहा जा रहा है कि शायद वो लपट जलाना जानता था. रिसर्चरों ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है, “हम निएंडरथाल मानव के नियमित रूप से आग जलाने का प्राचीन कलाकृति के रूप में पहला सीधा प्रमाण पेश कर रहे हैं.’ नीदरलैंड की लाइडन यूनिवर्सिटी में प्रागइतिहास पढ़ाने वाली प्रोफेसर मारी सोरेसी रिसर्च की सहलेखिका हैं. उन्होंने समाचार एजेंसी एएफपी से कहा, ‘हमें वो लाइटर मिला है जिससे निएंडरथाल मानव आग जलाता था.’
निएंडरथाल मानव के बारे में कहा जाता है कि वो 40 हजार साल पहले तक मौजूद थे. करीब 430000 साल पहले उनका यूरोप में उदय हुआ था और उसके बाद वो दक्षिण पश्चिम और मध्य एशिया में फैल गए.
रिसर्चरों को दर्जनों ऐसे चकमक पत्थर मिले हैं जिनके प्रागैतिहासिक काल के औजारों की तरह दो रुख हैं. इन्हें देख कर यह संकेत मिलता है कि इन औजारों का इस्तेमाल फेरस मिरल जैसे कि पाइराइट या मार्कासाइड पर प्रहार के लिए किया जाता होगा. पाइराइट को भेदने से चिंगारी निकलती है. निएंडरथाल मानव इस चिंगारी को सूखी घास या पत्तियों पर गिरा कर आग जला लेता था.
लाइडन यूनिवर्सिटी के ही एंड्रयू सोरेन्सेन इस रिसर्च का नेतृत्व कर रहे थे. उनका कहना है कि वैज्ञानिक जानते हैं कि पत्थर के औजारों पर जो निशान मिले हैं वो प्राकृतिक नहीं हैं बल्कि उन्हें यूरोप में रहने वाले पुरापाषाण युग के आदिमानवों ने बनाया था. सोरेन्सेन का कहना है, ‘जो निशान हमने देखे वो अलग अलग हिस्सों में बने हैं और उनकी सीमाएं हमेशा औजार की लंबी धुरी की तरफ बनी हैं. अगर ये निशान प्राकृतिक होते तो वो पूरी सतह पर होते और उनका झुकाव जहां तहां होता.’
इन निशानों को नंगी आंखों से भी देखा जा सकता है लेकिन रिसर्चरों ने बताया कि माइक्रोस्कोप से देखने पर इन निशानों से औजारों के खास इस्तेमाल का पता चलता है. आग जलाने के हुनर ने निएंडरथाल मानव के जीवन पर बहुत बड़ा असर डाला. सोरेन्सेन ने कहा, ‘अगर वो खुद से आग जला लेते थे तो फिर वो जहां चाहें जब चाहें आग जला सकते थे और तब उन्हें आग को लगातार जलाए रखने के लिए भारी मात्रा में ईंधन की जरूरत नहीं थी.’
इसके साथ ही सोरेन्सन ने बताया कि यह खास तौर से फ्रांस के ठंडे मौसम में ज्यादा जरूरी हो जाता था. इस वक्त फ्रांस घास से भरा बर्फीले बियाबानों वाला इलाका हुआ करता था, जिसमें ईंधन के रूप में लकड़ी की भारी कमी हो जाती थी.
सोरेन्सन का कहना है कि उन्हें ज्यादा हैरानी नहीं होगी अगर किसी दिन पता चले कि इससे और पहले भी इंसान आग जला लेता था. हालांकि यह पूछने पर कि क्या निएंडरथाल मानव के आग इस्तेमाल करने के हुनर के बारे में अब सारे सवाल खत्म हो गए हैं, सोरेन्सेन ने कहा कि सवाल अब भी पूछे जा सकते हैं.
- एनआर/एमजे(एएफपी)
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