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धरती अपनी सामान्य गति से क्या अब तेज़ घूमने लगी है ?

धरती अपनी सामान्य गति से क्या अब तेज़ घूमने लगी है ?
धरती अपनी सामान्य गति से क्या अब तेज़ घूमने लगी है ?

धरती अपनी सामान्य गति से क्या अब तेज़ घूमने लगी है ? क्या पृथ्वी अब 24 घंटे से भी कम समय में एक चक्कर पूरा कर ले रही है ? ये कुछ ऐसे सवाल हैं, जिनका अस्तित्व पिछले कुछ महीनों में हुआ है. दरअसल, वैज्ञानिकों का मानना है कि पृथ्वी तेज गति से घूम रही है. पृथ्वी के घूमने की स्पीड इतनी तेज है कि 24 घंटे में पूरा होने वाला चक्कर, उससे पहले ही पूरा हो जा रहा है. जानकारी के मुताबिक, 29 जून 2022 को पृथ्वी को अपने अक्ष पर एक चक्कर पूरा करने में 24 घंटे से कम का समय लगा था. इस दिन धरती ने अपना चक्कर महज़ 1.59 मिलीसेकंड पहले पूरा कर लिया था, जो औसत स्पीड से ज्यादा है.

इंडिपेंडेंट की रिपोर्ट के मुताबिक, पृथ्वी ने हाल के दिनों में अपनी स्पीड काफी तेजी से बढ़ाई है. साल 2020 में पृथ्वी की तेज गति से घूमने के चलते जुलाई का महीना सबसे छोटा देखा गया. इससे पहले, ऐसी स्थिति साल 1960 के दशक में देखी गई थी. 19 जुलाई को अब तक का सबसे छोटा दिन मापा गया था क्योंकि इस दिन पृथ्वी ने अपना चक्कर 1.47 मिलीसेकंड पहले ही पूरा कर लिया था. जबकि इस साल 26 जुलाई को धरती 1.50 मिली सेकंड पहले पूरी घूम गई.

रिपोर्ट के मुताबिक, पृथ्वी की गति में निरंतर बढ़ोतरी देखी जा रही है. हालांकि ज्यादा लंबी अवधि में देखा जाए तो पृथ्वी का चक्कर धीमा हो रहा है. धरती एक चक्कर पूरा करने में जितना मिलीसेकंड का समय लेती थी, अब हर सदी में उससे ज्यादा वक्त ले रही है.

वैज्ञानिकों का मानना है कि यह बदलाव कोर की इनर और आउटर लेयर, महासागरों, टाइड या फिर जलवायु में लगातार हो रहे परिवर्तन के कारण हो रहे हैं. कुछ वैज्ञानिकों ने यह भी सुझाव दिया है कि घटती हुई दिन की अवधि चांडलर वॉबल से जुड़ी हो सकती है, जो पृथ्वी के घूमने की धुरी में एक छोटा-सा डेविएशन है. अगर पृथ्वी इसी बढ़ती हुई गति से घूमती रही तो ये नेगेटिव लीप सेंकेड की शुरुआत कर सकती है. इसका मतलब है कि पृथ्वी को उस दर को बनाए रखना होगा, जिसके मुताबिक पृथ्वी एटोमिक घड़ियों के समान सूर्य की परिक्रमा करती है.

हालांकि, नेगेटिव सेकंड लीप संभावित रूप से आईटी सिस्टम के लिए कई तरह की समस्याएं पैदा करेगा. मेटा ने हाल ही में एक ब्लॉग पब्लिश किया है, जिसमें कहा गया है कि सेकंड लीप वैज्ञानिकों और खगोलविदों को फायदा पहुंचाएगी लेकिन यह एक खतरनाक अभ्यास है, जो काफी ज्यादा नुकसान पहुंचा सकता है.

आखिर अपनी ही धुरी पर क्यों घूमती है पृथ्वी ?

सौरमंडल (Solar System) के निर्माण के समय ही ग्रह बनाने वाले पिंडों में घूर्णन शुरू हो गया था. (प्रतीकात्मक तस्वीर: shutterstock)

पृथ्वी का अपनी धुरी पर इतने लंबे समय से घूमते रहना हैरानी की बात लगती है. लेकिन इसकी शुरुआत सौरमंडल के निर्माण के दौरान ही होने लगी थी जब ग्रहों के आकार लेने से पहले ही ग्रहनिर्माण के पूर्व के पदार्थों का मिलना शुरू हुआ, तभी से वे घूमते रहे हैं और पदार्थ के जमा होते-होते और भी तेजी से घूमने लगे.

आज से 4.57 अरब साल पहले जब हमारे सौरमंडल का निर्माण हो रहा था, तब वह केवल एक गैस के बादल से बना था, जिसे नेबुला कहते हैं. ये धूल और गैस गुरुत्व के बल के कारण जमा होते गए. यह पहले से ही वृत्ताकार में घूम रहे थे लेकिन जैसे ही ये सब एक जगह पर जमा होने लगे और वे सूर्य और और ग्रहों का निर्माण करने लगे.

पिण्डों के निर्माण के दौरान ही ये अपना कोई आकार लेने से पहले ही घूर्णन करने लगे थे. जैसे जैसे यह पिण्ड सघन होता गया वैसे वैसे ही घूर्णन की यह गति तेज होने लगी थी. जब आप किसी घूमते हुए पिंड को और भी सघन करते हैं तो उसकी घूमने की गति और भी तेज हो जाती है, यह बिलकुल ऐसा ही है जब आइस स्केटर घूमती है तो अपनी गति को बढ़ाने के लिए अपने हाथ समेट लेती है और उसकी गति अपने आप बढ़ जाती है.

जब धूल और गैस के झुंड में सभी चट्टानें एक साथ आना शुरू हुईं, उससे ग्रह या हमारी पृथ्वी भी और तेजी से घूमने लगी. इस तरह से पृथ्वी अपने निर्माण के दौरान से ही घूम रही है और तब से अब तक लगातार घूम ही रही है. लेकिन सवाल यह है कि आखिर वह अब भी क्यों घूम रही है ? सैद्धांतिक रूप से कोई भी घूमने वाला पिंड हमेशा के लिए ही घूमता रहेगा, जब तक हम या तो उसमें कोई ऊर्जा ना जोड़ दें या फिर उससे कोई ऊर्जा निकाल ना लें.

जब कोई लट्टू घूमता है तो हम शुरुआत में उसमें ऊर्जा जोड़ कर उसकी घूर्णन शुरू करते हैं, जो पृथ्वी और वायुमंडल से हो रहे घर्षण के कारण उसकी ऊर्जा कम होती जाती है और धीरे धीरे उसका घूर्णन बंद हो जाता है. घर्षण ही के कारण पिंड से घिस कर या फिर खिंच कर ऊर्जा चली जाती है. गाड़ियों में ब्रेक से गति धीमी होने का कारण भी यही घर्षण ही है.

इसी तरह की अवधारणा पर फिजिट स्पिनर खिलौने में भी उपयोग में लाई जाती है. उन्हें बनाते समय इस बात का ध्यान रखा जाता है कि जब वे घूमें तो घर्षण कम से कम हो इसीलिए वे इतना लंबे समय तक घूम पाते हैं. अब पृथ्वी अंतरिक्ष में तैरता हुआ पिंड है. वह अब भी घूमता ही रहेगा जब तक कि कोई बाहरी बल उसे धीमा नहीं करता. लेकिन पृथ्वी इतनी बड़ी है कि उसकी घूर्णन को रोकने के लिए बहुत ही ज्यादा ऊर्जा की जरूरत होगी.

पृथ्वी की घूमने की गति इतनी तेज है कि उससे जमीन तो उसके साथ घूम ही रही है, इतना भारी वायुमडंल भी उसके साथ ही घूम रहा है और उसका घर्षण उसे धीमा नहीं कर सकता है. यही वजह है कि पृथ्वी इतने समय से लगातार घूर्णन करती जा रही है और रुकने का नाम नहीं ले रही है. लेकिन फिर भी चंद्रमा का गुरुत्वाकर्षण बल जो महासागरों में ज्वार भाटा पैदा करता है, बहुत ही धीमी गति से पृथ्वी के घूर्णन को धीमा कर रहा है.

हमारी मिल्की वे गैलेक्सी (Milky Way Galaxy) की घूमने की गति 200 किलोमीटर प्रति सेंकेड से घूर्णन कर रही है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: shutterstock)

इसी तरह से सूर्य का गुरुत्वाकर्षण भी धरती को धीमा कर रहा है. वहीं अगर कोई क्षुद्रग्रह जैसे विशाल पिंड पृथ्वी से टकरा जाए तो पृथ्वी का घूर्णन धीमा कर देगा. वैज्ञानिकों को लगता है कि यूरेनस ग्रह के साथ ऐसा ही हुआ था. पृथ्वी के अलावा सौरमंडल के बाकी ग्रह भी घूमते हैं और उनकी घूर्णन की गति अलग अलग होती है इसलिए उनके दिन की लंबाई भी अलग-अलग होती है.

पृथ्वी ही क्यों, यह समूचा सौरमंडल और ब्रह्मांड के तमाम आकाशगंगाएं लगातार घूम रही है. आज की जितनी भी गैलेक्सी देखी जाती हैं, जिसमें हमारी मिल्कीवे गैलेक्सी भी शामिल है, उनकी घूमने की गति काफी तेज होती है. यानि तेज गति से घूमना सभी आकाशगंगाओं में देखा जाता है. खुद मिल्की वे 200 किलोमीटर प्रति सेंकेड की रफ्तार से घूमती हैं. लेकिन खगोलविद अभी तक यह समझ नहीं सके है कि आखिर गैलेकसी अपनी इतनी गति हासिल कैसे करती हैं ? वैज्ञानिकों का इस पर रिसर्च जारी है.

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