Science Life

सौर मंडल के बाहर जन्म लेते ग्रह और अपने मृत तारे में गिरकर होता अंत

सौर मंडल के बाहर जन्म लेते ग्रह और अपने मृत तारे में गिरकर होता अंत
प्रतीकात्मक तस्वीर

हम सौर मंडल के बाहर लगभग 5,000 ग्रहों के बारे में जानते हैं. वैज्ञानिकों ने हाल में पता लगाया है कि जितना हमने सोचा था उससे कहीं अधिक ग्रह अपने आप अंतरिक्ष में भटक रहे हैं. ये बर्फीले ‘फ्री-फ्लोटिंग प्लैनेट’ अथवा एफएफपी हैं लेकिन वे अपने आप कैसे समाप्त हो जाते हैं और ऐसे ग्रह कैसे बनते हैं ? इसके बारे में हमें वे बता सकते हैं.

अध्ययन करने के लिए अधिक से अधिक ग्रह खोजने से जैसा कि हमने उम्मीद की होगी, हमारी समझ को व्यापक किया है कि ग्रह क्या है. विशेष रूप से ग्रहों और ‘ब्राउन ड्वार्फ्स’ के बीच की रेखा तेजी से धुंधली होती गई है. ‘ब्राउन ड्वार्फ्स’’ ऐसे ठंडे तारे होते हैं जो अन्य तारों की तरह हाइड्रोजन को ‘फ्यूज’ नहीं कर सकते.

यह कैसे तय होता है कि कोई वस्तु एक ग्रह है या ‘ब्राउन ड्वार्फ्स’, यह लंबे समय से बहस का विषय रहा है. क्या यह द्रव्यमान का सवाल है ? यदि वे परमाणु संलयन से गुजर रहे हैं तो क्या वस्तुएं ग्रह नहीं रह जाती हैं ? अथवा, जिस तरह से वस्तु का गठन हुआ वह सबसे महत्वपूर्ण है ?

लगभग आधे तारे और ‘ब्राउन ड्वार्फ्स’ अलग-थलग रहते हैं, बाकी कई तारा सौर मंडल में मौजूद हैं. हम आमतौर पर ग्रहों को एक तारे के चारों ओर कक्षा में अधीनस्थ वस्तुओं के रूप में सोचते हैं. दूरबीन तकनीक में सुधार ने हमें अंतरिक्ष में छोटी और अलगाव में रह रही वस्तुओं को देखने में सक्षम बनाया है, जिसमें एफएफपी भी शामिल है. ये एफएफपी ऐसी वस्तुएं हैं जिनका द्रव्यमान या तापमान बहुत कम होता है जिन्हें ‘ब्राउन ड्वार्फ’ माना जाता है.

हम अभी भी यह नहीं जानते हैं कि वास्तव में ये वस्तुएं कैसे बनी. तारे और ‘ब्राउन ड्वार्फ’ तब बनते हैं जब अंतरिक्ष में धूल और गैस का एक क्षेत्र अपने आप गिरने लगता है. यह क्षेत्र सघन हो जाता है, इसलिए गुरुत्वाकर्षण की एक प्रक्रिया में अधिक से अधिक सामग्री उस पर गिरती रहती है. आखिर गैस का यह गोला परमाणु संलयन शुरू करने के लिए काफी गर्म हो जाता है. एफएफपी एक ही तरह से बन सकते हैं, लेकिन फ्यूजन शुरू करने जितना आकार बड़ा नहीं होता है. यह भी संभव है कि ऐसा ग्रह किसी तारे के चारों ओर कक्षा में जीवन शुरू कर सकता है, लेकिन किसी बिंदु पर अंतरताराकीय स्थान से बाहर हो जाता है.

इस तरह के ग्रहों का पता लगाना मुश्किल होता है क्योंकि वे अपेक्षाकृत छोटे और ठंडे होते हैं. आंतरिक ऊष्मा का उनका एकमात्र स्रोत नष्ट होने की प्रक्रिया से बची शेष ऊर्जा है, जिसके परिणामस्वरूप उनका निर्माण हुआ. ग्रह जितना छोटा होगा, उतनी ही तेजी से ऊष्मा विकिरित होगी. अंतरिक्ष में ठंडी वस्तुएं कम प्रकाश उत्सर्जित करती हैं और वे जो प्रकाश उत्सर्जित करती हैं वह लाल रंग का होता है.

एफएफपी को सीधे देखने के लिए सबसे अच्छी रणनीति शुरुआती अवस्था में उनका पता लगाना है क्योंकि इस दौरान सबसे ज्यादा चमक रहती है. हाल के अध्ययन में शोधकर्ताओं ने इसी तरीके से भटकने वाले ग्रहों का पता लगाया है. इन भटकते ग्रहों को पूरी तरह से समझने के लिए हमें अभी भी एक लंबा रास्ता तय करना है. दूरबीन की नई तकनीक उपलब्ध होने के साथ ही ग्रहों को और अधिक विस्तृत जांच के लिए फिर से देखा जा सकता है. इससे ऐसे ग्रहों की उत्पत्ति के बारे में अधिक जानकारी मिल सकती है.

मृत तारे पर गिरता दिखा मृत ग्रह

मृत तारे पर गिरता दिखा मृत ग्रह

पहली बार खगोल वैज्ञानिकों ने एक मृत ग्रह (Dead Planet) को एक मृत स्टार (Dead Star) की सतह पर गिरते हुए देखा है. इससे वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि सौर मंडल के अंत से जुड़े रहस्यों का पर्दाफाश हो सकता है. दशकों से वैज्ञानिकों के मन में सवाल उठते रहे हैं कि सौर मंडल का अंत (End of the Solar System) कैसे होगा ?

ऐसे में संभावना जताई जा रही है कि सभी ग्रह अपनी उम्र को पूरा करने के बाद सूर्य या अपने नजदीक स्थित ज्यादा गुरुत्वाकर्षण वाले तारे में समा जाएंगे. इस घटना को अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के चंद्र एक्स-रे ऑब्जर्वेटरी ने रिकॉर्ड किया है. इस घटना का जिक्र नासा के रिसर्चर्स ने प्रसिद्ध साइंस मैगजीन नेचर में प्रकाशित एक अध्ययन में किया है.

यूके के यूनिवर्सिटी ऑफ वारविक में पोस्टडॉक्टरल फेलो और इस स्टडी के लीड राइटर टिम कनिंघम ने घटना से जुड़े ब्योरे को सार्वजनिक किया है. उन्होंने कहा कि हमें पहली बार सबूत मिला है कि वाइट ड्वार्फ तारा वर्तमान में पुराने ग्रह प्रणालियों के अवशेषों को जमा कर रहे हैं. इस तरह के सबूत से हमें अपने सौर मंडल सहित हजारों ज्ञात एक्सोप्लैनेटरी सिस्टम के संभावित भाग्य की एक झलक मिल सकती है.

वैज्ञानिकों ने बताया कि मिल्की-वे के सभी सितारों में से लगभग 97 फीसदी अपने जीवन के अंतिम क्षण में वाइट ड्वार्फ तारे में बदल जाएंगे. वाइट ड्वार्फ पृथ्वी के जितने छोटे आकार में सूरज के जितना द्रव्यमान (मास) रख सकते हैं. माना जाता है के जिन तारों में इतना द्रव्यमान नहीं होता के वे आगे चलकर अपना इंधन ख़त्म हो जाने पर न्यूट्रॉन तारा बन सकें, वे सारे वाइट ड्वार्फ बन जाते हैं.

सूर्य के द्रव्यमान से 10 गुना बड़े तारे अपने जीवन के अंत में एक हिंसक सुपरनोवा विस्फोटों का शिकार होते हैं. ये तारे तब बनते हैं, जब वे अपने हाइड्रोजन को पूर्ण रूप से जला देते हैं. यह हाइड्रोजन की तारे को ईंधन देता है. कुछ ऐसी ही घटना 5 अरब साल बाद हमारे सूर्य के साथ भी होनी तय है. ईंधन खत्म होने के बाद इन तारों से लाल लपटें काफी दूर तक सफर करती हैं. इन तारों का कोर तब भी बहुत गर्म होता है जो बौने तारे के नाम से जाना जाता है.

Donate on
Donate on
Science Life G Pay
Exit mobile version