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Outbrust : क्या सच में पृथ्वी पर नूह वाली बाढ़ आई थी ?

Sun Storm : क्या सच में पृथ्वी पर नूह वाली बाढ़ आई थी ?
Sun Storm : क्या सच में पृथ्वी पर नूह वाली बाढ़ आई थी ?
अशफ़ाक़ अहमद

अगर दुनिया के नक्शे को फैला कर देखें तो मुख्य आबादियों के चार बिंदु नजर आयेंगे. सबसे मुख्य तो युरोप और मिडिल ईस्ट की जिसे आप मेडेटेरेनियन सी के आसपास रख सकते हैं. पूर्व की तरफ फैलाव के साथ. दूसरी जो भारत कहे जाने वाले संपूर्ण क्षेत्र की तरफ फैली थी. तीसरी जो हिमालय के पार, एशिया के सबसे पूर्व में थी और पैसिफिक तक फैली थी और चौथी जो बाकी आबादियों के साईज की तो नहीं थी, पर इस लिहाज से मुख्य थी कि वह दो तरफ विशाल महासागरों से घिरे अमेरिकी कांटीनेंट में थी.

इन चारों जगहों पर जनश्रुतियों से चली आई बाढ़ की एक कहानी मिलेगी जो बहुत पहले के अतीत से जुड़ी है, और जिसकी ऐतिहासिकता के तो सबूत नहीं, पर चूंकि वह धर्म की चाशनी के साथ परोसी गयी है तो लगभग पहुंची सभी आबादियों तक उसकी पहुंच है. एशिया के पूर्वी किनारे पर बसे चीनियों के पास उनके किसी महापुरुष के साथ दर्ज है तो अटलांटिक और पैसिफिक से घिरे अमेरिका में एज्टेक लोगों के पास उनके किसी देव पुरुष के साथ. दक्षिण एशिया में पूरे भारत को रखें तो यह सातवें मनु वैवस्वत के साथ जुड़ी है और युरोप और मिडिल ईस्ट में यह नूह के साथ जुड़ी है.

अब चूंकि इन दो जगहों के धर्म और इनके फाॅलोवर्स पूरी दुनिया में फैले हैं तो यह कहानी पूरी दुनिया में मिलेगी, जिस पर हाॅलीवुड वाले रसेल क्रो के साथ फिल्म भी बना चुके हैं. कहानी मूल रूप से बाइबिल की थी, जिसे बाद में मुसलमानों ने अडाॅप्ट किया तो सहज रूप से यह थोड़ी एडिटिंग के साथ कुरान में भी उपलब्ध है. कहानी के ज्यादा गहरे में उतरने की जरूरत नहीं. वह शायद सभी ने सुन रखी होगी कि धरती पर पाप बहुत बढ़ गया तो ईश्वर ने पापियों को सजा देने के लिये एक विश्व व्यापी बाढ़ पैदा की. और नूह को इस बात की खबर पहले से थी तो उन्होंने एक बड़ी कश्ती बनाई जिसके जरिये, जानवरों, परिंदों और अपनी अगली पीढ़ी को बचाया.

चलिये कहानी के व्यावहारिक पहलू पर फोकस करते हैं. क्या ऐसा हो सकता है कि मात्र कुछ दिन (सात दिन) के अल्टीमेटम पर नूह आस्ट्रेलिया न्यूजीलैंड में पाये जाने वाले कंगारू या कीवी पकड़ लायें ? या सुदूर अमेरिका से ले कर चीन तक खास क्षेत्र में पाये जाने वाले कैपिबारा से ले कर कुआला जैसे पशु पक्षी पकड़ लायें ? या उनके बस में था कि वे आर्कटिक पर पाये जाने वाले पोलर बियर या अंटार्कटिका में पाये जाने वाले पेंग्विन पकड़ लायें ?

चलिये किसी चमत्कार से मान लेते हैं कि ऐसा कर भी लिया गया तो भी उससे बड़ा सवाल यह है कि अलग-अलग जमीन और तापमान के रहने वाले पशु पक्षी किसी एक जगह पर कैसे रह सकेंगे ? आप उम्मीद करते हैं कि उत्तरी ध्रुव की बर्फ में रहने वाला भालू किसी गर्म जगह पर रह लेगा ? या रेगिस्तान में रहने वाले ऊंट, शुतुरमुर्ग किसी बर्फीली जगह पर रह लेंगे ? कोई एक वातावरण कुछ जानवरों और परिंदों के लिये तो सूटेबल हो सकता है लेकिन सबके लिये नहीं.

फिर मांस पर जिंदा रहने वाले शेर, भेड़िये, लकड़बग्घे को इस तरह पकड़ना ही नामुमकिन है और न उन्हें यूं एक जगह रखना. फिर इतनी बड़ी भीड़ एक जहाज पर (चाहे वह कितना भी बड़ा हो) एक लंबे वक्त के लिये (लगभग छः महीने तक) रखना है तो उसके लिये बहुत सारे खाने का प्रबंध भी करना पड़ेगा, खास कर मांसाहारी जानवरों के लिये. अब इतना बंदोबस्त एक जहाज पर व्यवहारिक रूप से मुमकिन नहीं, बाकी आस्था में दिमाग बंद करके चमत्कार मान लीजिये तो अलग बात है !

अब दिमाग वाली बात यह है कि अगर चमत्कार को किनारे रखते हैं तो कोई साधारण समझ का इंसान भी बता देगा कि कहानी असली नहीं है, क्योंकि इसे सच बनाने के लिये काफी चमत्कार चाहिये होंगे. लेकिन इस सबसे परे एक चीज जो सोचने वाली है कि अगर इसे धार्मिक चमत्कार से दूर रखें तो भी पृथ्वी पर एक बड़ी बाढ़ का जिक्र तो मिलता है क्योंकि इससे सम्बंधित कहानी अलग-अलग उन संस्कृतियों में मौजूद हैं जो भौगोलिक रूप से पूरी दुनिया को कवर करती हैं. तो ऐसी किसी बाढ़ की क्या वजह हो सकती है और क्या ऐसी कोई बाढ़ संभव थी ?

अपने समय से आगे की सभ्यतायें कहां लुप्त हो गयीं ?

अगर टाईम स्केल पर हम साढ़े चार हजार साल पीछे जायें तो दुनिया की अधिकांश सभ्यतायें छोटे-छोटे समूहों में बंटी थीं और विकास के मामले में उन्होंने कोई उल्लेखनीय प्रगति नहीं की थी बल्कि ब्रोंज एज (कांस्य युग) को जीते हुए धीरे-धीरे आगे बढ़ रही थी. लेकिन उसी दौर में इजिप्ट और इंडस वैली की सभ्यतायें अपने समय से बहुत आगे थीं. उनके और ग्लोब की दूसरी सभ्यताओं के बीच विकास के पैमाने पर काफी फर्क था. वे सभ्य थीं, आधुनिक थीं, उनके पास नगरों को बसाने का सही प्लान था और वे इंजीनियरिंग कर रही थी.

हड़प्पा के उन्नत होने के पुरातत्विक प्रमाण उनके नगरों के अवशेष से मिलते हैं जबकि इजिप्ट की उस आधुनिक सभ्यता की झलक ग्रेट पिरामिड, स्फिंक्स, हैथोर के डंडेरा लाईट कांप्लेक्स और एबिडस के हायरोग्लिफ्स से मिलती है. यह पिरामिड किस तरह उस जमाने में बनाया गया होगा, जब लोहे तक की खोज नहीं हुई थी, न पहियों का इस्तेमाल शुरू हुआ था, न कोई टेक्नोलॉजी ही थी उस वक्त बाकी दुनिया में, यह अपने आप में एक रहस्य है और आज भी इस पर माथापच्ची होती है.

इसमें ज्योग्राफी से लेकर ज्योमेट्री, वातानुकूलन से ले कर स्टार कांस्टिलेशन तक सबकुछ एक रहस्य है जो उस दौर में बेहद मुश्किल चीज थी।श. यह ओरायन बेल्ट के तीन सितारों के साथ अलाइन है, नार्थ पोल के साथ अलाइन है और इसके स्ट्रक्चर से इस बात की झलक भी मिलती है कि एरियल व्यू का भी ध्यान रखा गया है जो उस दौर में संभव नहीं था. इसके बारे में ज्यादा जानने के लिये यूट्यूब पर इससे सम्बंधित वीडियो देख सकते हैं.

वहीं हैथोर मंदिर में डंडेरा कांप्लेक्स नाम की जगह है जहां दीवारों पर उकेरे डंडेरा लाईट के चित्र इस बात की गवाही देते हैं कि उन लोगों को बिजली के इस्तेमाल की जानकारी थी. इसकी झलक कुछ और पेट्रोग्लिफ्स में मिलती है जहां लोगों के हाथ में टाॅर्च जैसी कोई चीज दर्शाई गयी है और इसी को लेकर शोधकर्ताओं का नया दावा है कि यह पिरामिड असल में वायरलेस इलेक्ट्रिसिटी प्रोडयूस करने के लिये बनाये गये पाॅवर प्लांट थे और इससे सम्बंधित सुराग और थ्योरी विस्तार से यूट्यूब पर देख समझ सकते हैं.

वहीं एबिडस में मौजूद हायरोग्लिफ्स में कुछ आकृतियां हेलीकाप्टर, यूएफओ और सबमरीन को दर्शाती नजर आती हैं, जिसकी वजह से बहुत से लोगों का यह मानना है कि उस वक्त एलियन वहां आते थे, और वही वहां के लोगों को ज्ञान देते थे. उस दौर में तकनीकी लिहाज से असंभव लगते पिरामिड उन्हीं की मदद और सुपरविजन से बने थे. अब ऐसा नहीं भी है तो भी इस तरह की आकृतियां उन मिस्रवासियों के दिमाग में थी तो इससे कम से कम एक अंदाजा तो लगाया जा सकता है कि तकनीकी मामलों में उनकी समझ बाकी ग्लोबवासियों से कहीं ज्यादा थी और यही उनके उन्नत होने का सबूत थी.

उसी काल खंड में हड़प्पा सभ्यता थी जो तकनीकी तौर पर उन जैसी तो नहीं थी लेकिन इंजीनियरिंग की समझ उनमें भी बहुत जबरदस्त थी और उन्होंने बेमिसाल इंजीनियरिंग का प्रयोग करते हुए आधुनिक तर्ज के शहर बसाये हुए थे, जो उन्हें ज्ञात इतिहास में तब आस-पास पाई जाने वाली आबादियों से आगे करता था. इस सभ्यता का अरब सागर के किनारे से लगा एक बेहतरीन शहर था धोलावीरा, जो वहां आबाद था जहां आज गुजरात का रण है और दूर-दूर तक सिवा नमक के और कुछ नहीं दिखता. लेकिन कभी यहां हड़प्पा सभ्यता का एक बंदरगाही शहर हुआ करता था.

फिर करीब चार हजार साल पीछे यह सभ्यता लुप्त हो गयी. किसी जगह कोई बड़ी आपदा आये तो वह जगह बर्बाद हो जाती है और लोग इधर-उधर चले जाते हैं लेकिन पूरी सभ्यता को तो लुप्त नहीं कहा जाता, फिर इनके लिये क्यों यह माना गया कि यह खत्म हो गये ? क्योंकि इंसान जगह छोड़ सकता है, मगर उसका ज्ञान तो उसके साथ ही रहेगा. अगर वे इस रीजन को छोड़ कर किसी और जगह बसे होते तो उस ज्ञान का इस्तेमाल वहां करते और उनकी इंजीनियरिंग की एक कंटीन्युटी बनती, जिसकी झलक वर्तमान तक मिलती लेकिन चूंकि इनके मामले में ऐसा नहीं हुआ और न उस दौर में किसी नगर में इनके ज्ञान और भाषा की पुनरावृत्ति मिलती है तो यह मान लिया गया कि यह पूरी सभ्यता ही लुप्त हो गयी.

उनके बारे में कोई सटीक जानकारी नहीं कि वे कौन थे, क्या भाषा बोलते थे, सारे मारे गये या बच कर कहीं और चले गये, हमें कुछ पता नहीं. ऐसा होना तो मुश्किल है कि किसी आपदा या आफत में इतने लंबे चौड़े क्षेत्र में फैली पूरी सभ्यता ही खत्म हो जाये, मगर यह माना जा सकता है कि उनकी जगह पूरी तरह खत्म हो गयी थी. वे छुटपुट इधर-उधर सालों साल जूझते बचे भी होंगे तो पूर्वी भारत की तरफ आबादियों में आ मिले होंगे या अब के पश्चिमी पाकिस्तान की. उस दौर के लोग संभल ही न पाये होंगे और नई पीढ़ी वह ज्ञान वहन न कर सकी होगी, जिससे इस उन्नत सभ्यता के बचे खुचे लोग वहीं जा खड़े हुए होंगे, जहां उस वक्त बाकी दुनिया की आबादियां खड़ी थी.

लेकिन इसी आधार पर हम यही थ्योरी खुफू के दौर के उन प्राचीन मिस्रवासियों पर लागू नहीं करते जबकि वे भी अपने दौर में कुछ अलग ही और अपने वक्त से आगे के ज्ञान को जी रहे थे लेकिन फिर वह दौर भी आया कि इनका वह आधुनिक ज्ञान गायब हो गया. सारी आधुनिक टेक्नोलाजी खत्म हो गयी और वह सबकुछ इतिहास में दफन हो गया. इस दौर में एक 140 साल लंबे चले अकाल का जिक्र जरूर मिलता है जिसने उस वक्त की केंद्रीय व्यवस्था को ढहा दिया था. बाद के दौर में बिखरा-बिखरा मिस्र फिर एकत्र हुआ, साम्राज्य बना और फैरो कहे जाने वाले शासकों ने लंबे वक्त तक शासन किया लेकिन अपने उस गौरवशाली अतीत को रिपीट नहीं कर पाये. उन्होंने भी बहुत से निर्माण कराये मगर ऐसा कुछ न बना पाये जो उनके पुरखे बना गये थे. जिन्हें लेकर उपजे सवालों के जवाब आज भी लोग ढूंढ रहे हैं.

अगर इस ग्लिच को सही रूप में रेखांकित करते हुए यह माना जाये कि वह आबादी, जो उस ज्ञान को वहन कर रही थी, जिसे लेकर ठीक ठाक जवाब हम आज भी नहीं तलाश पाये हैं, चार हजार साल पूर्व के आसपास इंडस वैली की सभ्यता की तरह ही किसी तरह लुप्त हुई है तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी. ऐसे में सवाल यह बनेगा कि दो हजार ईसा पूर्व के आसपास ऐसा क्या हुआ होगा कि अपने समय से आगे चलती इन दोनों आबादियों को इतिहास में दफन हो जाना पड़ा. मिस्र के मामले में अगर उस डेढ़ सदी चले अकाल को रख सकते हैं जबकि सिंधु घाटी सभ्यता के विलोपन के पीछे भी एक वजह लंबे अकाल को माना जाता है तो यह भी कह सकते हैं कि उस दौरान एक बड़ा भौगोलिक क्षेत्र प्राकृतिक जलवायु के डिस्टर्बेंस का सामना कर रहा था. क्या इसकी वजह सूरज का वायलेंट आचरण हो सकता है ?

क्यों मिलते हैं समुद्र में डूबे हुए शहर ?

360 ईसा पूर्व में प्लेटो के लिखे ‘डायलाॅग’ में अटलांटिस का जिक्र मिलता है जो समुद्र में गर्क हो गया था. सदियों तक इस पर बात होती रही है और इसे एक माइथालाॅजिकल शहर माना जाता रहा है लेकिन 2009 के आसपास स्पेन के दक्षिण में एक समुद्र में डूबे शहर को खोजा गया था, जिसके बारे में शोधकर्ताओं का मानना है कि यह वह खोया हुआ शहर अटलांटिस हो सकता है. हालांकि इस साईट के अटलांटिस होने की गारंटी नहीं है मगर एक यह हकीकत है कि कोई शहर था वहां, जो समुद्र में डूबा और ज्ञात इतिहास में उसका जिक्र नहीं मिलता.

1967-68 में ग्रीस के दक्षिण में मेडेटेरेनियन सी में एक डूबे हुए शहर की खोज की गयी थी, जिसे नाम दिया था पाउलोपेट्री. अनुमानन इसे पांच हजार साल पुराना बताया गया जो कि आगे पीछे भी हो सकता है. मेडेटेरेनियन के आसपास सबसे पुरानी आधुनिक आबादी बसती थी और उन्नत आबादी के इस तरह के ज्यादातर पुरातात्विक प्रमाण इसी क्षेत्र में मिलते हैं. मेडेटेरेनियन में ऐसी और भी साइटें खोजी गयी हैं.

ऐसा ही एक डूबा हुआ शहर द्वारका है, जो गुजरात के पश्चिम में अरब सागर में जलमग्न है और जिसका सही मायने में व्यापक सर्वेक्षण 2005 और 2007 में किया गया और करीब 200 अवशेष एकत्र किये गये, जिसमें वहां मिले बर्तनों के बारे में अनुमान लगाया गया कि वे 3000 ईसापूर्व से 1528 ईसापूर्व के बीच के हो सकते हैं. हालांकि इस डूबे नगर की उम्र पर विवाद है और अगर आस्था वाले एंगल से हट कर सोचें तो एटलांटिस की तरह यहां भी गारंटी नहीं कि यह वही माइथालाॅजिकल द्वारका है मगर एक बात हकीकत है कि एक शहर था वहां जो शायद चार पांच हजार साल पहले डूब गया था.

इसी तरह 1987 में जापान के दक्षिण में रायक्यू आईलैंड के पास एक स्ट्रक्चर की खोज की गयी, जो समुद्र में डूबा था और आकृति के हिसाब से एक बड़ा पिरामिड था. इसे जापानी अटलांटिस भी कहा गया, पर नाम दिया गया योनागुनी मोनूमेंट. इसका निर्माण उत्तरी आयरलैंड के जायंट काॅजवे जैसा है. इसके बारे में एक थ्योरी यह भी है कि इसे वहां रहने वाली पैसिफिक सिविलाइजेशन के जोमां लोगों द्वारा बनाया गया जबकि कुछ लोग इसे नेचुरल फार्मेशन भी बताते हैं लेकिन यह जाहिरी तौर पर मानव निर्मित लगता है.

इसी तरह एक मरीन इंजीनियर पाउलीन जैलिट्ज्की और उनके पति पाॅल वींजवेग ने 2001 में क्यूबा के पास एक ऐसी ही साइट खोजी थी, जो एक डूबे हुए शहर का पता देती थी. यहां भी कई पिरामिड और सर्कुलर स्ट्रक्चर के साथ मिश्रित ढांचे मिले हैं. कुछ शोधकर्ताओं के अनुमान से कभी क्यूबा और मैक्सिको के बीच इस जगह लैंड ब्रिज था जो बाद में पानी में डूब गया. यह ढांचे उन ढांचों से सिमिलर हैं जो मायन्स और एज्टेक लोगों ने बनाये थे जबकि कुछ साइंटिस्ट इसे प्राकृतिक और लाखों साल पुराना मानते हैं.

यह वे चर्चित साइटें हैं जो अब तक खोजी गयी हैं और जिनकी जांच पड़ताल की गयी, जबकि हो सकता है कि ऐसी बहुत सी साइटें अभी खोजे जाने का इंतजार कर रही हों. इनकी एग्जेक्ट टाइमिंग पर बहस है मगर मोटे तौर पर इन्हें चार हजार साल पहले के आसपास का माना जा सकता है. बहरहाल इन समुद्र में डूबे शहरों से एक बात तो पता चलती है कि आज से हजारों साल पहले भी लोग समुद्र के किनारों पर नगरीय आबादियां बसा रहे थें, जो कालांतर में जलमग्न हो गयी. इसकी प्रमुख वजह समुद्र का बढ़ा जलस्तर हो सकता है लेकिन अगर इसे हिम युग की समाप्ति के हिसाब से जोड़ें तो यह दस हजार साल पुराने होने चाहिये जबकि यह बहुत बाद के हैं.

क्या इन सब तबाहियों के पीछे कोई सौर तूफ़ान था?

पिछली सदी में हालैंड में एक खोज हुई थी जमीन के अंदर दबी एक राख की परत की, जिसके बारे में तब आम मत था कि वह अतीत की किसी वाईल्ड फायर का नतीजा थी, फिर ऐसी ही लेयर अलग-अलग छः कांटीनेंट्स में 29 साइटों पर पाई गयी और जिसे अमेरिका में क्लोविस लेयर या योरप में यूसेलो होराइजन कहा गया. फिर 2018 में ग्रीनलैंड में कुछ क्रेटर की खोज हुई और इसे लेकर एक कास्मिक इम्पैक्ट की थ्योरी पेश की गयी, जिसे यंगर ड्रायस इम्पैक्ट हाइपोथेसिस कहा गया, जिसके हिसाब से कुछ कामेट्स नार्थ अमेरिका या ग्रीनलैंड में पृथ्वी से टकराये थे और इसकी वजह से एक बड़ी तबाही ट्रिगर हुई थी.

उस वक्त सी लेवल बहुत नीचे था. ज्यादातर पानी बर्फ के रूप में जमा था और इस इम्पैक्ट से पैदा ऊर्जा ने बर्फ पिघला दी थी, ज्वालामुखी फूट पड़े थे, ज्यादातर पानी का वाष्पीकरण हो गया था जिसकी वजह से बाद में मुसलसल एसिड रेन हुई थी और सारे महाद्वीपीय किनारे डूब गये थे. इंसानी आबादियों का ज्यादातर हिस्सा खत्म हो गया था और ज्वालामुखियों से निकल कर वायुमंडल में पहुंची राख ही अमेरिका से आस्ट्रेलिया तक पहुंच कर बरसी थी जिससे वह लेयर बनी और संभवतः जिस विश्वव्यापी बाढ़ का जिक्र हम भिन्न संस्कृतियों में पाते हैं, उसकी वजह यही हो.

हालांकि बाद में जब यह पाया गया कि ज्यादातर सैम्पल की कार्बन डेटिंग इसे बारह हजार साल पहले की बता रही तो इन कहानियों को फिट करना मुश्किल हो गया. इसे उस दौर में हिम युग की समाप्ति का कारण जरूर माना जा सकता है. उस वक्त ग्रीनलैंड और नार्थ अमेरिका एक ही थे और बर्फ से जमे थे, इस इम्पैक्ट ने ही वह बर्फ पिघलाई और उस दौरान ही मैमथ से ले कर सेबरटूथ तक विलुप्त हुए. बेतहाशा बढ़े सी लेवल ने तमाम किनारों को निगल लिया. अगर उस दौर में किनारे पर कोई आधुनिक नगर रहा होगा, तो उसका डूबना निश्चित था लेकिन इसकी गुंजाइश कम ही है क्योंकि शिकारी और भोजन संग्रहकर्ता सेपियंस ने स्थाई बस्तियां इसके बाद ही बसानी शुरू की थी.

अब पृथ्वी पर परग्रहियों के अस्तित्व को साबित करने में लगे कुछ शोधकर्ताओं ने इसी तर्ज पर एक और थ्योरी सामने रखी है हाई एनर्जी सोलर स्टार्म की, ऐसा होना कोई बड़ी बात नहीं. यह तो हम सबको पता है कि सूरज से इस किस्म के तूफान आते रहते हैं, जिससे आमतौर पर हमारी मैगनेटोस्फियर और ओजोन हमें बचाते रहते हैं लेकिन अगर कभी इसकी तीव्रता बहुत ज्यादा हो तो इससे बचना मुश्किल है.

इसके एक्स्ट्रीम रूप को निकोलस केज अभिनीत हालीवुड मूवी “नोइंग” में दिखाया गया है. यह शोधकर्ता इस सन फ्लेअर या सौर तूफान को उस लेवल का तो नहीं मानते पर यह आउटबर्स्ट इतना शक्तिशाली तो जरूर था कि इसने अपने केंद्र पर अच्छी खासी तबाही मचाई थी, जो कि मिस्र और इंडस वैली के बीच होना चाहिये क्योंकि यहीं वह उन्नत आबादियां थीं जो लगभग एक समय ही इतिहास से गायब हो गयीं.

हो सकता है कि सूरज का असमान आचरण उस दौर में लंबे वक्त तक चला हो जिसने ग्लोब के अलग-अलग क्षेत्रों में सूखे, अकाल और बाढ़ की स्थिति बनाई हो और कुछ सी लेवल भी बढ़ाया हो लेकिन फिर सोलर फ्लेअर के फाईनल आउटबर्स्ट ने एकदम से वह इम्पैक्ट पैदा किया कि इससे बढ़ी गर्मी ने भी वही प्रभाव पैदा किया जो यंगर ड्रायस हाईपोथेसिस में सोचा गया था. इसने ग्लेशियरों को पिघला दिया, बड़े पैमाने पर पानी को वेपराईज कर दिया जिससे बाद में बेतहाशा बारिश हुई और ग्लेशियरों के पिघलने के कारण सी लेवल एकदम ऊपर उठ गया.

उस वक्त जो किनारों पर नगरीय आबादियां थीं, वह इसकी चपेट में आ गयीं. जो इन क्षेत्रों में ज्वालामुखी रहे होंगे, वह भी एक्टिव हो गये होंगे. यह इम्पैक्ट भले कुछ मिनट या घंटों के लिये और एक खास क्षेत्र में रहा हो मगर इसका प्रभाव पूरे ग्लोब पर पड़ा और समुद्र का लेवल बढ़ने और बेतहाशा बारिश से लगभग सभी संस्कृतियों ने एक भयानक बाढ़ का सामना किया. ग्रेट स्फिंक्स के भी पानी में डूबे रहने के सबूत मिले हैं.

हड़प्पा के निचले क्षेत्र में बसा धोलावीरा समुद्र की भेंट चढ़ा होगा और बाद में कभी पानी उतरा होगा तो वह नमक का रेगिस्तान बन के रह गया. ऊपरी क्षेत्र के शहरों ने उस आग को झेला होगा और कुछ लोग बचे भी होंगे तो उन्होंने भूख और अकाल से दम तोड़ दिया होगा. उनकी तरह ही यह अजाब मिस्र के लोगों ने भी झेला होगा.

अब उस वक्त भौगोलिक स्थितियां कितनी भी डांवाडोल और एक खास क्षेत्र के लिये विनाशकारी क्यों न हुई हों मगर बाकी आबादियों ने किसी तरह खुद को संभाला ही था और इस आपदा के गुजर जाने के बाद नई शुरुआत की थी. बाद में पानी वापस बर्फ के रूप में जमा होगा, समुद्र का लेवल कम हुआ भी होगा तो वह पहले जितना न हो पाया और अब तो लगातार बढ़ ही रहा है.

अब उस वक्त लोगों को कौन सा सौर तूफान या इसके इफेक्ट की समझ रही होगी ! जिन्होंने डायरेक्ट झेला, वे गुजर गये और जिन्होंने इसके प्रभाव को झेला उन्हें बस बाढ़ समझ में आई और जब जनश्रुतियों में इसकी यादें संजोई गयीं तो ऐसे में बचाव का एकमात्र सहारा कश्ती ही समझ में आती है. और चूंकि अनदेखी ताकतों पर उन्हें विश्वास रहता था तो इसे ईश्वरीय शेड दे कर किसी अवतार पुरुष के हाथ बचाव की बागडोर थमा दी गयी, जो आगे चल कर कहानियों में दर्ज हो गयी. यूसेलो लेयर जैसी और भी परतें कहीं जमीन में दबी हो सकती हैं.

बहरहाल, यह सामने आई एक लेटेस्ट थ्योरी है जो सबसे सटीक लगती है, यंगर ड्रायस हाईपोथेसिस के मुकाबले क्योंकि वह जिस स्तर की तबाही की बात करती है, उस काल खंड में उतनी बड़ी तबाही के दूसरे सबूत नहीं मिलते जबकि इस थ्योरी के साथ इन तीनों सवालों के जवाब मिल सकते हैं कि गीजा जैसा पिरामिड बनाने वाली और साढ़े चार हजार साल पहले इंजीनियरिंग के हिसाब से शहर बसाने वाली उन दो उन्नत आबादियों के साथ क्या हुआ होगा ? कैसे ग्लोब के हर हिस्से में एक बहुत बड़ी बाढ़ की कहानी मिलती है और कैसे किनारों पर बसे वे आधुनिक नगर समुद्र में डूब गये ? यह आज भी हो सकता है. एक हाई एनर्जी वाला सौर तूफान पूरी दुनिया को ठीक इसी तर्ज पर प्रभावित कर सकता है बल्कि ‘Knowing’ में दिखाये गये इफेक्ट की तरह पूरे प्लेनेट को भी खत्म कर सकता है.

तो जिस ग्लोबल बाढ़ का जिक्र लेख के शुरुआत में किया, वह यंगर ड्रायस इम्पैक्ट का परिणाम भी हो सकती है और इस बाद वाले आउटबर्स्ट का भी. इनसे सम्बंधित कहानियां एक ही वक्त से ली गयी भी हो सकती हैं और इन दो अलग मौकों से भी ली गयी हो सकती हैं या किसी संस्कृति की कहानी बस एक रूपक के तौर पर भी रची गई हो सकती है. अभी तक यह दो थ्योरी आई हैं सामने, आगे हो सकता है कि कोई और भी आयें. न पृथ्वी के अतीत पर होता शोध अभी थमा है और न अभी कोई फाइनल स्टैंड तय किया गया है. बस चीजें सामने रखी गयी हैं और यह आप पर निर्भर करता है कि आप क्या मानते हैं ?

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