पृथ्वी जीवन का ग्रह है. पर जीवन क्या है ? हम अपने व्यक्तिगत अनुभव तथा सारी मानवजाति के ऐतिहासिक अनुभव के आधार पर यह कह सकते हैं कि, परन्तु, जीवन के बारे में हमारी समसामयिक धारणाएं अभी वांछनीय पूर्णता से दूर ही है. 19वीं सदी के के उत्तरार्द्ध में तत्कालीन विज्ञान के स्तर के अनुरूप एंगेल्स ने जीवन की निम्न व्याख्या प्रस्तुत की थी – जीवन प्रोटीन पिंडों के अस्तित्व का रूप है.
इस परिभाषा में जीवन के एक आधारभूत गुण पर बल दिया गया है. अपने रूपों और अभिव्यक्तियों की सारी विविधता के बावजूद पृथ्वी की परिस्थितियों में जीवन उन हाइब्रिड अणुओं की अन्योन्यक्रिया पर ही आधारित होता है, जिनके प्रमुख रासायनिक घटक कार्बन और ऑक्सीजन होते हैं.
मानव द्वारा पृथ्वी की सीमा लांघे जाने की पृष्ठभूमि में जीवन की आधारभूत समस्याओं पर हुए सैद्धांतिक कार्यों में यह प्राक्कलपना प्रस्तुत की गई है कि सजीवन प्रणालियां सिद्धांततः भिन्न आधार पर भी काम कर सकती है.
उदाहरणतः, ऐसे अणुओं की अन्योन्यक्रिया के आधार पर जिनमें कार्बन के स्थान पर सिलिकन हो सकता है (ज्ञात हो कि सिलिकन के हाइब्रिड यौगिक बनते हैं). नये अनुसंधानों से इस विचार की पृष्टि हुई है कि हाइब्रिड अणुओं की जो जीवन के हमें ज्ञात सभी रूपों के आधार – प्रोटीन यौगिक – का निर्माण करते हैं, अन्योन्यक्रिया होती है.
इसलिए एंगेल्स द्वारा दी गई जीवन की परिभाषा काफी हद तक पूर्ण है, इसलिए भी कि जीवन के प्रोटीन-इतर रूपों की संभावना की जो सैद्धांतिक कल्पना की गई है , उसकी अभी तक न तो खगोलवैज्ञानिक प्रेक्षणों से और न ही प्रयोगों द्वारा ही पुष्टि हुई है.
जब सैद्वान्तिक तौर पर एंगेल्स की प्रस्थापनाएं सही साबित हो गई है तब वैज्ञानिकों में इस बात की खोज होने की जिज्ञासा का होना भी जरूरी है कि आखिर प्रोटीन के वह कौन-सी रूप है, जिनमें सर्वप्रथम जीवन को उत्पन्न किया.
पृथ्वी पर पहला जीवन लाने के लिए जिस प्रोटीन को जिम्मेदार माना जाता है, शायद उसकी खोज कर ली गई है. ऐसा वैज्ञानिकों का मानना है. अगर वैज्ञानिक सही हैं तो धरती पर जीवन की शुरुआत को लेकर एक नए रहस्य से खुलासा होगा. साथ ही यह पता चलेगा कि धरती पर जीवन की शुरुआत कैसे और किन परिस्थितियों में हुई थी. (फोटोः गेटी)
धरती पर पहले जीवन की शुरुआत को लेकर कई तरह की परिभाषाएं, थ्योरी और विवाद हैं. जिसमें सबसे पहले तीन विषयों पर चर्चा होती है. डीएनए, आरएनए या इन दोनों का मिश्रण. रटगर्स यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक अलग-अलग एंगल से इस रहस्य को खोलने का प्रयास कर रहे हैं. वो उस प्राचीन प्रोटीन की खोज में लगे हैं, जिसने पृथ्वी पर जीवन की शुरुआत की थी. यह स्टडी हाल ही में साइंस एडवांसेस जर्नल में प्रकाशित हुई थी. (फोटोः गेटी)
वैज्ञानिकों ने कहा कि किसी भी जीवन की शुरुआत के लिए जरूरी है ऊर्जा को जमा करना और उसका सही उपयोग करना. इस ऊर्जा का स्रोत चाहे कुछ भी हो. वह रसायनिक भंडारण हो सकता है. या फिर इलेक्ट्रॉन्स का ट्रांसफर. लेकिन इन दोनों ही प्रक्रियाओं से या इन्हें मिलाकर जीवन की शुरुआत हो सकती है. वैज्ञानिकों का मानना है कि जब जीवन की शुरुआत हुई तब उस समय मौजूद इलेक्ट्रॉन कंडक्टर्स का उपयोग किया गया, जो आज भी चल रहा है. (फोटोः गेटी)
प्राचीन समुद्र में ऐसे धातु थे जो पानी में दिन के समय खुद को घोल देते थे. इन्हें ट्रांसजिशन मेटल कहा जाता था. इसलिए वो प्रोटीन जो धातुओं को बांधते थे, उनकी वजह से ही धरती पर जीवन की शुरुआत हुई थी. इसमें सिर्फ रसायनों का ही उपयोग नहीं हुआ होगा, बल्कि साथ ही साथ जैविक प्रक्रियाएं भी चल रही होंगी. धातुओं को बांधने वाली वस्तुएं (प्रोटीन) आज भी जीवन में महत्वपूर्ण किरदार निभाती हैं. यही प्रोटीन हर जीव के पूरे जीवनकाल में जरूरी भूमिका निभाती हैं. (फोटोः गेटी)
स्टडी को करने वाली प्रमुख शोधकर्ता प्रोफेसर याना ब्रोमबर्ग ने अपने बयान में कहा कि आज भी धातुओं को बांधने वाली प्रोटीन के अंश मौजूद हैं. हो सकता है ऐसा ही कोई प्रोटीन प्राचीन समय में रहा हो. ये प्रोटीन किसी LEGO ब्लॉक्स की तरह होते हैं. जो अपना बाहरी स्वरूप समय के साथ बदल सकते हैं, लेकिन मौलिकता यानी रसायनिक प्रक्रिया नहीं बदलते. किसी भी प्राचीन प्रोटीन से लेकर आज तक के प्रोटीन की यही खास बात होती है. (फोटोः गेटी)
याना ब्रोमबर्ग ने बताया कि आज के प्रोटीन्स में भी प्राचीन प्रोटीन्स का सिंगल या उससे ज्यादा अंश मौजूद हो सकता है. इनकी जांच करना थोड़ा मुश्किल है, क्योंकि आज के समय में हजारों की संख्या में प्रोटीन्स मौजूद है. सबके रसायनिक अंशों की जांच करना आसान नहीं है. लेकिन जो प्रोटीन सबसे ज्यादा मौजूद हैं उन्हें ऑक्सीडोरिडक्टेसेस (Oxidoreductases) कहते हैं. ये खास तरह के एंजाइम होते हैं, जो दो मॉलीक्यूल्स के बीच में इलेक्ट्रॉन्स को ट्रांसफर करते हैं. ये धरती पर 380 करोड़ साल पहले से मौजूद हैं. (फोटोः गेटी)
याना कहती हैं कि ग्रेट ऑक्सीडेशन इवेंट (Great Oxidation Event) के बाद प्रोटीन विभाजित होते चले गए. विभाजन तो ठीक था लेकिन इनकी विभिन्नता और जटिलता भी बढ़ती चली गई. अब यह बात पुख्ता करना बड़ा मुश्किल है कि कौन सा प्रोटीन कितना पुराना या सबसे पहले प्रोटीन का वंश है. इनके सतत विकास की वंशावली को समझ पाना अब मुश्किल है. हालांकि, हम इन प्रोटीन से जुड़े पेप्टाइड्स यानी वो अमिनो एसिड्स जो प्रोटीन का बिल्डिंग ब्लॉक्स होती हैं, उनकी पहचान कर पाए हैं. ये पेप्टाइड्स ही किसी जैविक ढांचे का संतुलित निर्माण करते हैं. (फोटोः गेटी)
याना ब्रोमबर्ग ने कहा कि हमें यह आयडिया तो लग गया कि किस तरह के प्रोटीन से जीवन की शुरुआत हुई थी लेकिन यह पता करना बड़ा मुश्किल है कि कौन सा प्रोटीन इसके लिए जिम्मेदार रहा होगा. क्योंकि अब प्रोटीन का वंश वृक्ष इतना बड़ा और जटिल है कि उसकी असली शाखा या जड़ खोजना बेहद मुश्किल है. लेकिन भविष्य में ऐसे ही प्रोटीन्स की मदद से सिंथेटिक बायोलॉजी को अपनाते हुए नए जीवों का निर्माण किया जा सकता है. (फोटोः गेटी)