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हड़प्पा सभ्यता, जिसकी खोज ने पूरी दुनिया को चकित कर दिया

हड़प्पाकालीन पुरास्थल राखीगढ़ी की हालिया खुदाई से यह दोबारा स्पष्ट हो गया है कि हड़प्पा सभ्यता के लोगों ने विज्ञान और प्रौद्योगिकी के मामले में कमाल की प्रगति की थी. राखीगढ़ी में मिले अवशेषों से हड़प्पावासियों की टाउनशिप प्लानिंग और इनोवेटिव जीवन-शैली की सुनियोजित रूपरेखा तो सामने आई ही है, साथ ही साथ तब की व्यापारिक गतिविधियों और औद्योगिक सेक्टर के भी प्रमाण मिले हैं. पुरातत्वविदों के अथक परिश्रम और प्रयासों की ही बदौलत हम ‘हड़प्पा सभ्यता’ जैसे इतिहास के उन भूले-बिसरे पन्नों को जान-समझ पाए हैं, जिनका हमें प्राचीन साहित्य में कोई भी उल्लेख नहीं मिलता.

कैसे हुई हड़प्पा सभ्यता की खोज ?

हड़प्पा सभ्यता की खोज की कहानी बेहद दिलचस्प है. वाकया कुछ यूं है कि 1856 में, दो ब्रिटिश इंजीनियरिंग ठेकेदार (जेम्स बर्टन और विलियम बर्टन) कराची से लाहौर के बीच एक रेलवे ट्रैक बिछाने के काम में जुटे हुए थे. जब वे पंजाब के मोंटगोमरी जिले के हड़प्पा (वर्तमान पाकिस्तान) क्षेत्र में रेल की पटरियां बिछा रहे थे, तब उन्हें खुदाई के दौरान कई ईंटें और पुरावशेष मिले. इन पुरावशेषों को उन्होंने किसी पुराने निर्माण (construction) का हिस्सा मानकर रेललाइन बिछाने के काम में ले लिया.

हड़प्पा में ईंटें और अन्य पुरावशेषों के निकलने की घटना के बारे में जब आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (एएसआई) के तत्कालीन प्रमुख अलेक्जेंडर कनिंघम को पता चला तो उन्होंने धरातल के नीचे किसी प्राचीन सभ्यता के दबे होने की संभावना व्यक्त की. आगे के तीन दशकों में, हड़प्पा की खुदाई से काफी मात्रा में पुरावशेष मिले.

1920 के आसपास, दयाराम साहनी ने हड़प्पा में अपनी खुदाई शुरू की, और 1922 में आरडी बनर्जी ने मोहनजोदड़ो में खुदाई शुरू की. जॉन मार्शल, जो उस समय एएसआई के महानिदेशक थे, ने 1924 में ‘इलस्ट्रेटेड लंदन न्यूज’ में इन उत्खननों के बारे एक लेख प्रकाशित करवाया. इस तरह उन्होंने पहली बार सिंधु घाटी में एक प्राचीन सभ्यता के खोज की घोषणा की. इस सभ्यता को अन्य दो प्राचीन सभ्यताओं – मिस्र और मेसोपोटामिया के साथ एक नया लेकिन विशिष्ट स्थान मिला.

हड़प्पा सभ्यता की विशिष्टता

सुनियोजित और तमाम सुख-सुविधाओं से संपन्न सभ्यता
रेडियोकार्बन C-14 के जरिए पुरातत्वविदों ने हड़प्पा सभ्यता की तिथि 2400 ईसा पूर्व से 1700 ईसा पूर्व निर्धारित की है. भारत में इससे पुरानी किसी अन्य सभ्यता के पुरावशेष नहीं मिले हैं. यह सभ्यता इतनी विकसित और सुनियोजित थी कि उस समय के लोग पर्याप्त सुख और शांति के साथ अपना जीवन निर्वाह कर सकते होंगे.

नगर योजना सुनियोजित और वैज्ञानिक दृष्टि से उत्कृष्ट थी, कृषि, पशुपालन, वाणिज्य और व्यवसाय उन्नत थे, शिल्प और तकनीकी ज्ञान उन्नत था, जिन पर हमें आज भी आश्चर्य होता है. जो चीज सबसे ज्यादा प्रभावित करती है वह है इस सभ्यता का विस्तार, जो कश्मीर की तराई से बलूचिस्तान, महाराष्ट्र और गुज़रात तक और अफगानिस्तान से गंगा-यमुना दोआब तक फैला हुआ है, और जिसके मेसोपोटामिया (मौजूदा इराक) तक से व्यापारिक और सांस्कृतिक संबंध होने के साक्ष्य मिलते हैं.

शुरुआत में पुरातत्वविदों की यह मान्यता थी कि यह सभ्यता अनिवार्य रूप से सिंधु घाटी तक सीमित थी, इसलिए इसे ‘सिंधु घाटी सभ्यता’ नाम दिया गया. काफी बाद में इसके विस्तार क्षेत्र के बारे में पता चला. हड़प्पा सभ्यता के प्रमुख पुरास्थल ये हैं: मोहनजोदड़ो, हड़प्पा, गणवारीवाला, राखीगढ़ी, कालीबंगन और धौलावीरा.

हड़प्पा के लोगों को सिविल इंजीनियरिंग में महारत हासिल थी

खुदाई में मिले पुरातात्विक ढांचों से यह पता चलता है कि हड़प्पावासियों की नगर योजना इतनी सुसंबद्ध और योजनाबद्ध (cohesive and planned) थी कि जिसको देखकर ऐसा लगता है कि नियमानुसार नक्शा बनवाकर और वर्तमान नगरपालिका जैसी किसी तत्कालीन प्रशासनिक इकाई द्वारा उसे मान्यता दिलवाकर ही मकानों का निर्माण किया गया होगा. इससे पता चलता है कि उन्हें सर्वेक्षण-सर्वेइंग का अच्छा ज्ञान रहा होगा.

हड़प्पा की ज़्यादातर सड़कें सीधी और चौड़ी थीं, और वे एक-दूसरे को समकोण पर काटती थी. हड़प्पा शहरों में सुनियोजित जल निकास प्रणाली भी थी, जिसके प्रमाण सड़कों और गलियों के किनारे बनीं पक्की नालियों से मिलते हैं. सड़क के दोनों किनारों पर पक्की ईंटों से पंक्तियों में घर बने होते थे. कुछ मकान दुमंजिले भी होते थे. ईंटें धूप में सुखाकर या भट्ठी में पकाकर बनाई जाती थीं, जो एकदम निश्चित 4:2:1 के अनुपात में होती थीं. ठीक इसी अनुपात या मानक की ईंटें सभी नगरों में प्रयोग की जाती थीं. इन ईंटों को बिछाने और जोड़ने की प्रक्रिया में यह अनुपात बहुत उपयोगी था. उस समय अपनाई गई तकनीक को आज इंग्लिश ब्रांड कहते हैं जहां हर दूसरी पंक्ति में ईंट का जोड़ सिधाई में होता है. यह तकनीक दीवार को ज्यादा मजबूत बनाती है.

राखीगढ़ी में हुई हालिया खुदाइयों में सड़क के दोनों किनारों पर बड़े-बड़े गड्ढे मिले हैं. इनके अंदर कचरे के अवशेष मिलने से सिद्ध होता है कि हड़प्पावासी साफ-सफाई का विशेष ख्याल रखते थे. कुछ घरों में निजी स्नानघर और शौचालय भी थे. वर्षा जल संग्रहण की व्यवस्था भी थी. एएसआई अधिकारियों के मुताबिक हड़प्पा सभ्यता के लोगों के हाउस-कॉम्पलेक्स इतने सुनियोजित थे, जिसकी तुलना नोएडा-चंडीगढ़ जैसे शहरों के मौजूदा इमारतों से की जा सकती है. इन सबके अलावा सैकड़ों ऐसे साक्ष्य मिले हैं, जिससे कहा जा सकता है कि हड़प्पावासियों को सिविल इंजीनियरिंग का उत्कृष्ट ज्ञान रहा होगा.

हड़प्पा सभ्यता में गणित, मापन कला और धातु विज्ञान (Metallurgy) का ज्ञान

निश्चित रूप से हड़प्पा के लोगों को गणित का अच्छा ज्ञान रहा होगा. उन्होंने गणित के ज्ञान की बदौलत निर्माण की कला में निपुणता हासिल की होगी. ज्यामितीय गणनाओं से बिलकुल सही-सही ईंटें बनाना तथा उन्हें विभिन्न आकार में तथा और तरह-तरह की बनावटों में एक साथ जोड़ना, सड़कों और मकानों में सिधाई बनाए रखना और सही जगह पर बिलकुल सही मोड़ देना उनके गणितीय और तकनीकी कौशल से ही मुमकिन हुआ होगा. हालांकि उनकी अंक पद्धति के बारे में अभी तक हम ज्यादा जानकारी नहीं जुटा पाएं हैं क्योंकि उनकी लिपि (लिखावट) को अभी तक नहीं पढ़ा जा सका है.

इतिहासकर इरफान हबीब के मुताबिक, ‘उनकी नाप-तौल की प्रणाली को देखकर ऐसा लगता है कि वे लोग द्विआधारी (binary) प्रणाली (2, 4, 8, वगैरह पर आधारित) का और दशमलव प्रणाली (decimal system) दोनों का इस्तेमाल करते थे. बड़ी संख्याओं के लिए वे विशेष रूप से दशमलव प्रणाली का और छोटी संख्याओं के लिए द्विआधारी प्रणाली का इस्तेमाल करते थे.’

हड़प्पा सभ्यता के लोगों ने अपनी विभिन्न गतिविधियों को सम्पन्न करने के लिए मानक भारों और मापों का उपयोग किया था. हड़प्पा के विभिन्न पुरास्थलों में खुदाई से तराजुओं के लिए बटखरें, पकी मिट्टी से बने बालू घड़ी और साहुल मिले हैं. मोहनजोदड़ो से लंबाई मापने का एक मापदंड भी मिला है, जिससे निर्मित करने और परिशुद्धता की प्रक्रिया का पता चलता है.

हड़प्पा सभ्यता के लोग सोना, चांदी, तांबा, सीसा, रांगा आदि धातुओं से पूरी तरह से वाकिफ थे और अपने जीवन में उनसे बनी चीजों का इस्तेमाल करते थे. हड़प्पा सभ्यता के लोगों ने कांसा, मिश्र धातु निर्मित करने के लिए सोच-समझकर तांबे के साथ टिन को मिश्रित किया जो ज्यादा आघातवर्धक और कठोर होता है. इस तरह उन्होने ज्यादा अच्छे और टिकाऊ औज़ार, बर्तन, मूर्तियां, आभूषण, दर्पण, हथियार आदि बनाएं.

हड़प्पा सभ्यता में चिकित्सा विज्ञान

हड़प्पा सभ्यता के लोग इलाज करने के लिए विभिन्न जड़ी-बूटियों और औषधियों का इस्तेमाल करते थे. हड़प्पा से मिले पुरावशेषों में हिरण, चीतल, सांभर, कश्मीरी बरहसिंहा आदि की सींगे मिली हैं. वे लोग संभवत: इन सींगों का चूर्ण बनाकर कुछ बीमारियों का इलाज करते थे. इसके अलावा मोहनजोदड़ो में शिलाजीत भी मिला है, जिसका इस्तेमाल आज भी आमतौर पर आयुर्वेदिक चिकित्सा में किया जाता है. हड़प्पा सभ्यता में शल्य चिकित्सा अथवा सर्जरी का एक उदाहरण कालीबंगन में मिलता है. कालीबंगन में एक बच्चे की खोपड़ी में 6 छेद मिले हैं. फोरेंसिक जांच से पता चला है कि ये छेद कुछ भर गए थे.

ज़ाहिर है बच्चे की खोपड़ी की सर्जरी की गई थी और वह कामयाब हुई थी. और बच्चा कम से कम उतने वक्त तक जरूर जीवित रहा जितना वक्त छेदों को भरने में लगा होगा. इतिहासकारों के मुताबिक खोपड़ी की सर्जरी (Trephination) सिर दर्द और मस्तिष्क विकारों के इलाज के लिए की गई होगी. निश्चित रूप से इस तरह की सर्जरियों से काफी लोगों की असामयिक मृत्यु भी हुई होगी. फिलहाल, हड़प्पा सभ्यता के लोगों के चिकित्सा संबंधी ज्ञान के बारे हमें बस इतनी ही जानकारी मिली है.

हड़प्पावासियों का तारों भरा आकाश

पुरावशेषों में मिले एक मुहर में मछली का चिह्न एक चित्रात्मक लिपि के रूप में नक्षत्र के लिए भी उपयोग किया गया है. मुहर में मछली के निशान के साथ 7 छोटी खड़ी लाइनों के चिन्ह हैं. इसका अर्थ ‘सात नक्षत्र’ या आधुनिक ‘सप्तऋषि तारामंडल’ है. इतिहासकर इरफान हबीब के अनुसार हड़प्पावासी जब रात में नौकायन करते थे तो संभवत: वे केवल तारामंडल की पहचान से ही दिशा नहीं निर्धारित करते थे बल्कि दिशा निर्धारित करने के लिए अपने कम्पास का भी इस्तेमाल करते थे.

टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (टीआईएफआर) और मणिपाल स्कूल ऑफ आर्किटेक्चर एंड प्लानिंग (कर्नाटक) के शोधकर्ताओं ने 2012 में हड़प्पा सभ्यता से संबंधित पहली खगोलीय वेधशाला का पता गुजरात के धोलावीरा में लगाया. शोधकर्ताओं ने हड़प्पा के लोगों द्वारा खगोलीय अवलोकन के लिए उपयोग की जाने वाली दो गोलाकार संरचनाओं की पहचान की थी. प्राचीन भारत के गौरवमयी इतिहास का स्वर्णिम अध्याय ऊपर दिए गए संक्षिप्त विवरण से जाहिर है कि हड़प्पावासियों ने अपनी विशिष्टता का परिचय विज्ञान सहित अनेक क्षेत्रों में दिया था.

हड़प्पा सभ्यता की कला

हड़प्पा सभ्यता की कला के अन्तर्गत प्रस्तर मूर्तियां, धातु मूर्तियां, मृण्मूर्तियां, मुहरें, मनके, मृद्भांड आदि का उल्लेख किया जाता है –

1. प्रस्तर मूर्तियां

मोहनजोदड़ो से एक दर्जन तथा हड़प्पा से तीन प्रस्तर मूर्तियां प्राप्त हुई हैं. अधिकांश मूर्तियां खण्डित है. प्रस्तर मूर्तियों में मोहनजोदड़ो से प्राप्त योगी अथवा पुरोहित की मूर्ति महत्वपूर्ण है. योगी के मूंछें नहीं हैं किंतु दाढ़ी विशेष रूप से संवारी गयी है. योगी के नेत्र अधखुले हैं तथा उसकी दृष्टि नाक पर टिकी हुई है. ये बायें कंधे को ढ़कते हुए तिपतिया छाप वाली साल ओढ़े हुए हैं. यह मूर्ति सेलखड़ी की बनी हुई है.

मोहनजोदड़ो से प्राप्त कुछ अन्य पाषाण निर्मित पशुमूर्तियां भी कलात्मक दृष्टि से उच्च कोटि की हैं. इसमें चुना पत्थर से बनी भेड़ा की मूर्ति तथा भेड़ा और हाथी की संयुक्त मूर्ति प्रमुख है. इस मूर्ति में शरीर और सींग भेड़ा का तथा सूंड हाथी का है. हड़प्पा से मिली तीन प्रस्तर मूर्तियों में से एक मूर्ति नृत्यरत युवक की है.

धातु मूर्तियों में ढलाई की जिस विधि का प्रयोग किया जाता था. उसे प्राचीन साहित्य में ‘मधूच्छिष्ट विधि’ कहा जाता था. मोहनजोदड़ो के H. R. क्षेत्र से प्राप्त 11.5 सेमी. लम्बी नर्तकी की कांस्य मूर्ति अत्यन्त प्रसिद्ध है. आभूषणों को छोड़कर यह मूर्ति बिल्कुल नग्न है. मोहनजोदड़ो से कांसे की भैंसा और भेड़ा की मूर्तियां भी मिली हैं.

चन्हूदड़ो से बैलगाड़ी व इक्का गाड़ी की मूर्तियां मिली हैं. कालीबंगा से मिली तांबे की वृषभ मूर्ति उल्लेखनीय है. लोथल से तांबा धातु से निर्मित कुत्ते की मूर्ति मिली है. इसी प्रकार दैमाबाद से कांसे का एक रथ प्राप्त हुआ है.

3. मृण्मूर्तियां

सिन्धु सभ्यता में मृण्मूर्तियों का निर्माण ज्यादातर ‘चिकोटी विधि’ से किया जाता था. मृण्मूर्तियां पुरुषों, नारियों और पशु-पक्षियों की प्राप्त हुई हैं. मानव मृण्मूर्तियां ठोस हैं जबकि पशु-पक्षियों की मूर्तियां प्रायः खोखली हैं. सबसे ज्यादा मृण्मूर्तियां पशु-पक्षियों की प्राप्त हुई हैं. मानव मूर्तियों में सबसे ज्यादा मूर्तियां स्त्रियों की हैं. नारी मृण्मूर्तियों में भी कुंवारी नारी मृण्मूर्तियां सर्वाधिक प्राप्त हैं.

सिन्धु सभ्यता की मूर्तियां

नारी मृण्मूर्तियां अधिकांशतः भारत के बाहर के स्थलों जैसे मोहनजोदड़ो, हड़प्पा, चन्हूदड़ो आदि से प्राप्त हुई हैं. केवल हरियाणा के बनावली से दो नारी मृण्मूर्तियां प्राप्त हुई हैं. मोहनजोदड़ो के D. K. क्षेत्र से पुरुष मृण्मूर्तियां प्राप्त हुई हैं.

पशु-पक्षियों की मृण्मूर्तियों में बैल, भैंसा, भेड़ा, बकरा, कुत्ता, हाथी, बाघ, भालू, सुअर, खरगोश, बन्दर, मोर तोता, कबूतर, बत्तख, मुर्गा, चील और उल्लू आदि की मृण्मूर्तियां मिली हैं. कूबड़ वाले बैल की तुलना में बिना कूबड़ वाले बैल की मृण्मूर्तियां अधिक संख्या में मिली हैं परन्तु यहां से एक भी गाय की मृण्मूर्ति प्राप्त नहीं हुई है.

4. मुहरें

सैन्धव मुहरें अधिकांशतः सेलखड़ी की बनी होती थी. कांचली मिट्टी, गोमेद, चर्ट की बनी हुई मुहरें भी मिलती हैं. लोथल और देशलपुर से तांबे की बनी हुई मुहरें भी मिली हैं. इन मुहरों का आकार, आयताकार या वर्गाकार होता था. मुहरों का सबसे प्रचलित आकर 2.8 सेमी.×2.8 सेमी. था.

यहां से प्राप्त मुहरों पर एक श्रृंगी पशु, कूबड़ वाला बैल, हाथी, भैंसा आदि का अंकन मिलता है. सबसे अधिक संख्या में श्रृंगी पशु का अंकन मिलता है लेकिन कला की दृष्टि से सबसे उत्कृष्ट मूर्ति कूबड़ वाले सांड़ की है.

हड़प्पा सभ्यता के मृदभांड

मोहनजोदड़ो से प्राप्त पशुपति शिव की मुहर महत्वपूर्ण है. इस मुहर में एक त्रिमुखी पुरुष को एक चौकी पर योग की मुद्रा में दिखाया गया है. उसके दाहिनी ओर एक हाथी तथा एक बाघ और बायीं ओर एक भैंसा तथा एक गैंडा खड़े हुए हैं. चौकी के नीचे दो हिरन खड़े हैं. लोथल तथा मोहनजोदड़ो की कुछ मुहरों पर नाव का चित्र भी अंकित है.

5. मनके

चन्हूदड़ो तथा लोथल से मनके बनाने के कारखाने प्राप्त हुए हैं. सर्वाधिक संख्या में सेलखड़ी पत्थर से निर्मित मनके प्राप्त हुए हैं. बेलनाकार मनके सैन्धव सभ्यता में सर्वाधिक लोकप्रिय थे.

6. मृद्भांड

मृद्भांड लाल या गुलाबी रंग के थे. इन पर काले रंग से अलंकरण किया गया था. अलंकरण में पेड़-पौधों, पशु-पक्षियों चित्रों तथा ज्यामितीय आकृतियों का प्रयोग किया जाता था. इन पर हड़प्पन लिपि भी मिलती है.

7. हड़प्पा सभ्यता की लिपि

सैन्धव सभ्यता का ज्ञान मुख्यता मुहरों, मृद्भांडों तथा ताम्र गुटिकाओं पर मिलता है. इस लिपि का सर्वाधिक पुराना नमूना 1853 में मिला पर स्पष्ट रूप से यह लिपि 1923 में प्रकाश में आयी. इस लिपि में लगभग 64 मूल चिन्ह हैं तथा 400 से 500 तक चित्राक्षर (पिक्टोग्राफ) हैं.

यह लिपि दायीं से बायीं ओर लिखी जाती थी. जब अभिलेख एक से अधिक पंक्ति का होता था तो पहली पंक्ति दायीं से बायीं ओर तथा दूसरी पंक्ति बायीं से दायीं ओर लिखी जाती थी. यह लिपि अभी तक पढ़ी नहीं जा सकी है. इसके न पढ़े जाने का कारण किसी भी द्विभाषिया लेख का न मिलना है. सिन्धु सभ्यता की लिपि चित्रात्मक थी.

वास्तव में हड़प्पा सभ्यता विज्ञान के उस उत्कर्ष पर पहुंच चुकी थी, जिसकी हम किसी आदिम सभ्यता के बारे में कल्पना भी नहीं कर सकते. ऊपर हमने उनकी विज्ञान और प्रौद्योगिकी संबंधी उपलब्धियों की एक छोटी-सी झलक भर दिखाई है, वास्तव में हड़प्पा सभ्यता की उपलब्धियां अद्भुत और अतुल्य हैं. इसके उत्तम दर्जे की टाउन प्लानिंग, पक्की ईंटों से बने घर, सुनियोजित रास्ते और नालियां, वैज्ञानिक व तकनीकी प्रगति, कृषि व्यवस्था आदि भारत के गौरवमयी इतिहास के स्वर्णिम अध्याय हैं.

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