हिन्दू पौराणिक कथाओं में एक पात्र का नाम आता है शिव. कहा जाता है शिव को तीन आंखें थी. तीसरी आंख तब खुलती थी जब शिव क्रोधित होते थे. इस तीसरी आंख से भयानक आग की लपटें उठती थी, जिससे प्रलय आ जाता था. खैर, यह कहानी कितना सच है यह तो पता नहीं, लेकिन धरती पर एक ऐसा जीव पाया जाता है, जिसे सचमुच तीन आंखें होती है.
छिपकली प्रजाति का यह जीव न्यूजीलैंड में पाया जाता है, जिसका नाम तुआतारा (Tuatara) है. इसके तीसरी आंख से कोई आग की लपटें नहीं उठती है बल्कि तीसरी आंख, जो कि सिर के ऊपर बीचों-बीच त्वचा की परतों के नीचे छिपी होती है, जो सूरज की रोशनी को ट्रैक करने में मदद करती है.
न्यूजीलैंड में तुआतारा (Tuatara) नामक एक छिपकली पाई जाती है. यह धरती की सबसे रहस्यमयी छिपकली (Most Mysterious Reptile) है. इसके साथ ही वैज्ञानिक इसे जीवित जीवाश्म (Living Fossils) भी कहते हैं क्योंकि इसका सम्बन्ध 19 करोड़ साल पुराने इसके पूर्वज से हैं, जिनसे इनके अंदर बेहद कम बदलाव हुआ है. या फिर ऐसे कहें कि यह अब भी 19 करोड़ साल पुराने तुआतारा ही हैं.
A new fossil helps prove that the tuatara of New Zealand really are “living fossils” https://t.co/6X7YzjU9T5
— NYT Science (@NYTScience) March 13, 2022
न्यूजीलैंड के तुआतारा (Tuatara) किसी साधारण इगुआना (Iguana) की तरह दिखते हैं लेकिन असल में ये छिपकली नहीं है. वैज्ञानिक तो इसे सिर्फ सरिसृप (Reptiles) बुला रहे हैं. ये कांटेदार जीव प्राचीन और रहस्यमयी सरिसृपों रिंचोसिफैलिंयस (Rhynchocephalians) के वंशज हैं. ज्यादातर रिंचोसिफैलियंस डायनासोरों के समय में ही खत्म हो गए थे. लेकिन कुछ बच गए, जिनके वंशज आज भी बिना ज्यादा बदलाव के न्यूजीलैंड में पाए जाते हैं, जिसे आज हम तुआतारा (Tuatara) कहते हैं.
सरिसृपों (Reptiles) की दुनिया के बेहद अजीबो-गरीब प्राणी हैं तुआतारा (Tuatara). तुआतारा (Tuatara) बेहद आराम से सौ साल जी लेते हैं. ये ठंडी से ठंडी जगह और विपरीत परिस्थितियों को भी बर्दाश्त कर लेते हैं. इनके जबड़े पीछे से आगे की ओर खिसकते हैं, जिनसे ये कीड़ों और समुद्री पक्षियों आदि का शिकार करते हैं. इनकी सबसे बड़ी खासियत होती है इनकी तीसरी आंख, जो कि सिर के ऊपर बीचों-बीच त्वचा की परतों के नीचे छिपी होती है, जो सूरज की रोशनी को ट्रैक करने में मदद करती है.
अब तुआतारा (Tuatara) की इन्हीं खासियतों की वजह से जैविक पुरातत्वविद यानी प्राचीन समय के जीवों का अध्ययन करने वाले वैज्ञानिक हैरान हैं क्योंकि ये खासियतें डायनासोर के समय में पाई जाती थी. बांकी सरिसृप, छपकलियां और सांप ने समय के साथ बदलाव किया और खुद को विकसित करते चले गए लेकिन इसकी ज्यादातर प्रजाति खत्म हो गई. ये बात मिसोजोइक काल (Mesozoic Era) की है.
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के म्यूजियम ऑफ कंपेरेटिव जूलॉजी में वर्टिब्रेट पैलियोंटोलॉजी की क्यूरेटर स्टेफनी पियर्स ने कहा कि हमने हाल ही में एक छिपकली के पूरे जीवाश्म की स्टडी की, जो हथेली के आकार का था. यह जीवाश्म 1982 में उत्तरी एरिजोना के कायेंटा फॉर्मेशन में मिला था. यहां पर डायनासोरों के जमाने के कई जीवाश्म दफन है. ऐसा माना जाता है कि उस दौर में डिलोफोसॉरस जैसे डायनासोरों ने मगरमच्छों जैसे जीवों के साथ सम्बन्ध बनाया होगा, जिससे ये रिंचोसिफैलिंयस (Rhynchocephalians) नाम के जीव पैदा हुए होंगे.
तुआतारा (Tuatara) बेहद प्राचीन जीव है. इसमें स्तनधारियों के भी गुण हैं और सरिसृपों के भी इसलिए इसे सबसे रहस्यमयी छिपकली (Most Mysterious Reptile) कहा जाता है. इसके जीवाश्म का अध्ययन करते समय डॉ. स्टेफनी पियर्स और उनके पोस्टडॉक्टोरल स्टूडेंट टियागो सिमोस ने देखा कि यह जीव छिपकलियों के शुरुआती सतत विकास यानी इवोल्यूशन की पहली कड़ी लगती है. यह स्टडी हाल ही में Communications Biology में प्रकाशित हुई है.
वैज्ञानिकों ने इस नए जीव को नाम दिया है – नावाजोसफेनोडोन सानी (Navajosphenodon sani). यह इसके जीनस और स्पीसीस दोनों का ही नाम है, जिसका मतलब होता है – ज्यादा उम्र. जहां पर यह जीवाश्म मिला था, वहां पर नावाजो (Navajo) आदिवासी रहते हैं. उनकी भाषा में नावाजो का मतलब होता है – ज्यादा उम्र. वैज्ञानिकों ने उस जीवाश्म के अध्ययन के लिए माइक्रो-सीटी स्कैन की मदद ली. उसके बाद उसका थ्रीडी मॉडल बनाया.
जब इस जीवाश्म के मॉडल का अध्ययन शुरू किया गया तो पता चला कि इसकी खोपड़ी (Skull) तुआतारा की तरह है. इसके दांत तीखे और इंटरलॉकिंग सिस्टम में सेट थे, जो कि उसके जबड़ों की हड्डियों के साथ खास तरीके से जुड़े थे. इसकी खोपड़ी में दोनों आंखों के पीछे तीन अतिरिक्त छेद भी थे. यह एक बड़ा अंतर है जो तुआतारा को अन्य छिपकलियों से अलग करता है. तुआतारा की तीसरी आंख भी होती है.
डॉक्टर सिमोस ने कहा कि आधुनिक तुआतारा और प्राचीन तुआतारा के बीच ज्यादा अंतर नहीं था. 19 करोड़ साल बाद भी इन जीवों में ज्यादा बदलाव नहीं हुए हैं. ये आज भी अपनी प्राचीनता को बरकरार रखे हुए हैं. यह जीवाश्म बताता है कि तुआतारा (Tuatara) आज भी जीवित जीवाश्म है. जो थोड़ा बहुत बदलाव हुआ है, वह सिर्फ इसके जबड़े में हुआ है. येल यूनिवर्सिटी में डॉक्टोरल स्टूडेंट केल्सी जेन्किंस ने कहा कि 19-20 करोड़ सालों से अगर कोई जीव बिना ज्यादा बदलाव के जीवित है, उसका वंश चला रहा है तो ये बहुत बड़ी बात है.
डॉक्टर सिमोस ने कहा कि यह कम बदलाव बताता है कि तुआतारा (Tuatara) का इवोल्यूसन बेहद धीमी गति से हो रहा है. अगर यह इवोल्यूशन टूटा नहीं है, तो इसका मतलब यह धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा है. कई करोड़ सालों में इस छिपकली में और कोई बदलाव देखने को मिलेगा.