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ब्लैक होल : बदलती अवधारणाएं और मान्यताएं

ब्लैक होल : बदलती अवधारणाएं और मान्यताएं
ब्लैक होल : बदलती अवधारणाएं और मान्यताएं (प्रतीकात्मक तस्वीर)

वैज्ञानिक अभी तक ब्लैक होल (Black Hole) के बनने की प्रक्रिया को समझ नहीं सके थे. पिछले कुछ सालों में ब्लैक होल (Black Hole) के बारे में वैज्ञानिकों ने बहुत-सी नई जानकारियां खोज निकाली है. हाल ही में हमारे पास ब्लैक होल की वास्तविक तस्वीर आ पाई है. हम अब स्पेस टाइम में तैरती गुरुत्व तरंगों को पहचान कर उन्हें माप सकते हैं, जो इनके टकराव या विलय से निकलती हैं. फिर भी अभी हम ब्लैक होल के बारे में काफी नहीं जानते हैं. इसमें सबसे प्रमुख बात यह है कि हम यह नहीं जान सके हैं कि उनकी उत्पत्ति (Origin of Black Hole) कैसे होती है. नए अध्ययन में शोधकर्ताओं का मानना है कि उन्होंने ब्लैक होल के निर्माण की प्रक्रिया (Process of Formation of Black Hole) ‘देखी’ है.

नेचर और एस्ट्रोफिजकल जर्नल में प्रकाश दो शोधपत्रों में शोधकर्ताओं ने ऐसी प्रक्रिया देखने का दावा किया है जो ब्लैक होल के निर्माण की प्रक्रिया के बारे में सबसे अच्छे संकेत दे रही है. शोधकर्ताओं का मानना है कि अवलोकन और सैद्धांतिक दोनों ही आधार पर बहुत सारे ब्लैक होल तब बनते हैं, जब विशाल भारी तारे के मरते समय उसका केंद्र सिकुड़ जाता है.

सामान्यतः तारों का क्रोड़ तीव्र नाभिकीय प्रतिक्रियाओं की वजह से निकली ऊष्मा के कारण दबाव पैदा करता है. लेकिन जैसे ही तारे का ईंधन खत्म होता है और नाभिकीय प्रतिक्रियाएं रुक जाती हैं, तारे की आंतरिक परतें गुरुत्व के प्रभाव से अंदर की ओर सिकुड़ने लगती हैं और असामान्य घनत्व हासिल करने लगती हैं.

ब्लैक होल (Black Hole) के निर्माण की प्रकिया मरते हुए तारे के सिमटते क्रोड़ में शुरू होती है. (प्रतीकात्मक तस्वीर)

ज्यादातर होता यह है कि यह संकुचन तब रुकता है जब तारे का क्रोड़ संघनित हो कर पदार्थ के ठोस गोले में बदल जाता है, जिसमें न्यूट्रॉन की बहुतायत होती है और संकुचन के बाद इसमें शक्तिशाली विस्फोट होता, जिसे सुपरनोवा कहते हैं और तब जो बचता है उसे न्यूट्रॉन तारा कहा जाता है.

मरते तारों के प्रतिमान बताते हैं कि यदि मूल तारा सूर्य के भार से 40-50 गुना ज्यादा हो, तो संकुचन जारी रहता है और विचित्र स्थिति बन जाती है, जिसे गुरुत्व सिंग्युलैरिटी और आम बोलचाल में ब्लैक होल (Black Hole) कहते हैं. कई उन्नत उपकरणों से अवलोकन करने के बाद भी वैज्ञानिक तारों के क्रोड़ की प्रक्रियाएं अच्छे से समझ नहीं सके हैं.

न्यूट्रॉन तारों के बनने की प्रक्रिया तो पूरे ब्रह्माण्ड में हर जगह दिखाई देती हैं. खगोलविद यह सुनिश्चित नहीं कर सके है क्या होता है जब संकुचन ब्लैक होल की स्थिति तक जाता है ? कुछ निष्क्रिय प्रतिमान सुझाते हैं कि ऐसी स्थिति में तो पूरा का पूरा तारा ही खत्म हो जाता होगा. वहीं कुछ का कहना है कि ब्लैक होल बनने से कुछ दूसरे तरह का विस्फोट होता होगा.

विशालकाय तारों में मरने के दौरान सिमटते क्रोड़ के ब्लैक होल (Black Hole) में बदलने की संभावना ज्यादा होती है. (प्रतीकात्मक तस्वीर)

ब्लैक होल से पदार्थ निकलना और आसपास का वातावरण

लीवरपूल की जॉन मूर्स यूनिवर्सिटी के एस्ट्रोफिजिस्क के रीडर डेनियल पर्ले के इस शोध में बताया है कि उन्होंने हाल ही में दो ऐसी घटनाएं देखी हैं जो ब्लैक होल के निर्माण के बेहतर उम्मीदवार हैं. 2019 और 2021 में देखी गई इन घटनाओं में गामा रे प्रस्फोट की तरह बहुत ही तेज विस्फोट देखा जो एक बहुत ही तेजी से घुमते हुए छोटी मात्रा के पदार्थ निकल रहा था. इससे निकलने वाला पदार्थ पास के वातावरण में गैस में तब्दील हो रहा था.

इसके बाद इस प्रक्रिया को तब रुक जाना चाहिए जब पदार्थ का बाहर निकलना बंद हो जाए. शोधकर्ताओं का लगता है कि तारे कि विशालता को देखते हुए इससे गामा रे प्रस्फोट जैसा कुछ नहीं निकलना चाहिए. उनका मानना है कि तारे के क्रोड़ में सिकुड़न के दौरान वह कुछ छोटी मात्रा में ही पदार्थ बाहर निकालेगा और बाकी ब्लैक होल में सिमट जाएगा.

लेकिन शोधकर्ता मानते हैं कि इसके अलावा और भी संभावनाएं हो सकती हैं. अपने नतीजों की पुष्टि के लिए शोधकर्ताओं इस तरह की और भी घटनाओं का अध्ययन कर रहे हैं. फिर उन्होंने विश्वास है कि उन्होंने जो देखा वह ब्लैक को उत्पत्ति की घटनाएं ही हैं. यह लेख कन्वरसेशन में प्रकाशित हुआ है.

ब्लैक होल भी क्यों उगलते हैं ज्वाला ?

कई बार ब्लैक होल (Black Hole) से तीव्र ज्वाला निकलती है, जो अब तक एक रहस्य बना हुआ था. (तस्वीर: Wikimedia Commons)

ब्लैक होल (Black Hole) के बारे में काफी पता होने के बाद भी बहुत कुछ रहस्य ही है. इनसे संबंधित कई बातें अभी तक पता नहीं चल सकी है जिसमें विशालकाय ब्लैक होल की उत्पत्ति का रहस्य भी शामिल है. इसके अलावा ब्लैक होल के बारे में कई धारणाएं भी बदली है. इनमें से एक है कि ब्लैक होल के अंदर जाने के बाद कुछ बाहर नहीं निकलता है. लेकिन बाद में ब्लैक होल से चमकीले जेट प्रवाह भी निकलते हैं और कई बार तो वे इवेंट होराइजन (Event Horizon) से तीव्र प्रकाशीय ज्वाला भी निकालते हैं. अब सुपरकम्पूटर सिम्यूलेशन (Supercomputer Simulation) के जरिए इस पहले को सुलझाने का दावा किया गया है.

हाल ही  शोधकर्ताओं की  एक टीम ने पहली बार सुपरकम्प्यूटर की शृंखला के जरिए ब्लैक होल के मैग्नेटिक फील्ड की इतने विस्तार से मॉडलिंग की. इस प्रतिमान से अतिशक्तिशाली मैग्नेटिक फील्ड के बनने और टूटने की जानकारी मिली है. यह मैग्नेटिक फील्ड ही अत्याधिक चमकदार ज्वलाओं के स्रोत पाए गए.

वैज्ञानिकों को पहले से पता है कि ब्लैक को आसपास कुछ समय के लिए बहुत ही शक्तिशाली मैग्नेटिक फील्ड होती है. यह वास्तव में ब्लैक होल के आसपास विभिन्न प्रकार के बलों, पदार्थों और दूसरी प्रणालियों का मिला जुला प्रभाव होता है. अभी तक इस जटिल प्रभाव का उन्नत सुपरकम्प्यूटर से भी मॉडल या प्रतिमान बनाना बहुत मुश्किल काम था. इसीलिए ब्लैक होल के आसपास क्या हो रहा है, यह जानना बहुत ही ज्यादा मुश्किल हो रहा था.

ब्लैक होल (Black Hole) के इवेंट होराइजन के बाहर कई बार तीव्र ज्वाला दिखाई देती है. (प्रतीकात्मक तस्वीर)

शक्तिशाली कम्प्यूटर जटिल कम्प्यूटिंग समस्याओं से निपट सकते हैं और मूर नियम की वजह से यह संभव भी हो सका. प्रिंसटन यूनिवर्सिटी के फ्लैटिरॉन इंस्टीट्यूट के पोस्ट डॉक्टोरल फैलो और इस अध्ययन के सहलेखक डॉ बार्ट रिपेर्दा और उनके साथियान ने तीन अलग-अलग सुपरकम्पयूटिंग क्लस्टर का उपयोग कर ब्लैक होल के इवेंट होराइजन की बहुत ही विस्तृत तस्वीर बनाई.

इस तरह की भौतिकी में मैग्नेटिक फील्ड की अप्रत्याशित रूप से बहुत बड़ी भूमिका होती है. लेकिन उससे भी ज्यादा संवेदनशील भूमिका ज्वालाओं के विकास में होती है. ऐसी ज्वालाएं बनती हैं जब मैग्नेटिक फील्ड टूटती हैं और फिर से जुड़ जाती हैं. आसपास के माध्यमों में अतिआवेशित फोटोन की प्रक्रियाओं में मैग्नेटिक ऊर्जा निकलती है और कुछ फोटोन ब्लैक होल के ईवेंट होराइजन में ही चले जाते हैं जबकि दूसरे बाहरी अंतरिक्ष में ज्वाला के रूप में निकल जाते हैं.

ह सब ब्लैक होल (Black Hole) की मैग्नेटिक फील्ड में बदलाव की वजह से होता है. (प्रतीकात्मक तस्वीर)

सिम्यूलेशन में दर्शाते हैं कि मैग्नेटिक फील्ड के कनेक्शन टूटने और बनने की प्रक्रिया पिछले  विभेदनों में दिखाई नहीं देते थे. रिपेर्दा और उनसे साथियों की तस्वीर का विभेदन पिछले उपलब्ध ब्लैक होल सिम्यूलेशन की तस्वीरों के विभेदन से हजार गुना ज्यादा था. पिछले सिम्यूलेशन में ब्लैक होल की कुछ मूलभूत अंतरक्रियाएं शामिल नहीं थी.

नई उच्च विभेदन की तस्वीर से स्थिति ज्यादा स्पष्ट हो सकी. नए सिम्यूलेशन ने बताया कि इवेंट होराइजन के आसपास मैग्नेटिक फील्ड की प्रक्रिया क्या होती है. पहले संचयन चक्र में जमा पदार्थ ब्लैक होल के ध्रुवों की ओर जाता है. इसके मैग्नेटिक फील्ड की रेखाओं पर निश्चित रूप से प्रभाव पड़ता है, जो पदार्थ के साथ चलती है.

इस दौरान कुछ मैग्नेटिक फील्ड रेखाएं टूट जाती हैं और दूसरी फील्ड रेखाओं से जुड़ जाती है. कुछ मामले में पदार्थ बाहरी बलों से अप्रभावित होता है, लेकिन या तो वह ब्लैक होल के अंदर ही फेंक दिया जाता है या फिर बाहर फेंक दिया जाता है. यहीं पर ज्वालाओं की भूमिका आ जाती है. यह पूरी प्रक्रिया का सिम्यूलेशन सुपरकम्प्यूटर के समूह के साथ भी बहुत ही मुश्किल है, लेकिन अभी तक के आंकड़ों से अधिकांश सिम्यूलेशन सटीक नतीजे दे रहे हैं.

ब्लैक होल के बारे में मिले अनोखे नतीजे

सुपरमासिव ब्लैक होल (Supermassive Black Hole) की पदार्थ निगलने की प्रक्रिया की नई समीक्षा से नई जानकारियां मिली है. (प्रतीकात्मक तस्वीर)

सुपरमासिव ब्लैक होल (Supermassive Black Hole) शुरू से ही हमारे वैज्ञानकों को लिए एक कठिन पहेली रहे हैं. इनके बारे में जानकारी अप्रत्यक्ष रूप से ज्यादा मिली है. इनमें पदार्थ (Matter) कितना समा सकता है, और जब इनसे ऊर्जा (Energy) निकलती है तो वह कैसे संचालित होती है ऐसे कई सवाल हैं जिनके उत्तर तलाशे जा रहे हैं. एक अध्ययन में शोधकर्ताओं ने सुपरमासिव ब्लैक होल की पदार्थ निगलने की प्रक्रिया का फिर से समीक्षा की है जिसके लिए उन्होंने कुछ नई तकनीकों का उपयोग किया. उनके नतीजे ब्लैक होल के पदार्थ निगलने की हमारी धारणा बदलने वाले साबित हो सकते हैं.

गैलेक्सी के केंद्र में स्थित सुपरमासिव ब्लैक होल सूर्य से करोड़ों अरबों ज्यादा भार वाले होते हैं. इनका विशाल गुरुत्वाकर्षण खिंचाव आस पास मौजूद भारी मात्रा में  गैस और धूल और यहां तक कि तारों तक को निगल लेता है. यह पदार्थ एक डिक्स का रूप ले लेता है जिसमें एक्रीशन की परिघटना के कारण डिस्क से पदार्थ ब्लैक होल में चला जाता है.

ये एक्रीशन डिस्क या अभिवृद्धि चक्र ब्रह्माण्ड के सबसे ज्वलंत क्षेत्रों में से एक हैं. यहां ब्लैक होल के ठीक बाहर मौजूद पदार्थ की गति प्रकाश की गति की ओर जा रही होती है और तापमान भी सूर्य की सतह से कहीं ज्यादा होता है. ऊष्मा ऐसे विकरण उत्सर्जित करती है जिससे निकला प्रकाश नाभकीय संलयन से 30 गुना ज्यादा होता है. वैज्ञानिक अभी तक यह नहीं समझ सके हैं कि ऐसा होता कैसे है ?

ब्लैक होल के पदार्थ निगलने की प्रक्रिया में काफी विविधता होती है. कुछ, जैसे की हमारी गैलेक्सी का ब्लैक होल बहुत ज्यादा भूखे नहीं होते हैं. ऐसे ब्लैक होल में एक्रीशन डिस्क ही दिखाई नहीं देती. लेकिन कुछ दूसरी गैलेक्सी भी होती हैं जिनके सुपरमासिव  ब्लैक होल ज्यादा ही भूखे दिखाई देते हैं जिनका अभिवृद्धि चक्र बहुत ही ज्यादा गर्म होता है, जो इतने चमकदार होते हैं कि उस चमक के आगे उनकी गैलेक्सी के तारों की चमक तक फीकी हो जाती है. वहीं हमारे खगोलविद पास के ही एक ब्लैकहोल की डिस्क की तस्वीर ले सके हैं.

अभिवृद्धि चक्र (Accretion Disk) के तापमान वितरण के बारे मे हमें अपनी जानकारी बदलनी होगी. (प्रतीकात्मक तस्वीर)

अभी हमारी वैज्ञानिक क्षमताओं के दायरे के मुताबिक हमें अभिवृद्धि चक्र के घटकों का अध्ययन नहीं कर सकते हैं. लेकिन समय के साथ इसकी तीव्रता में विविधता काफी कुछ बता सकती है. इससे चक्र की संरचना और आकार के बारे में भी पता चल सकता है. चक्र के प्रकाश की विविधता से हमें सुदूर गैलक्सी  के चक्रों के बारे में ज्यादा जानकारी हासिल कर सके हैं.

कॉस्मिक डॉन सेंटर के पीएचडी फैलो जॉन वीवर ने इसी तरह से अभिवृद्धि चक्र वाली 9 हजार गैलेक्सी के ब्लैक होल के पिछले अवलोकनों का अध्ययन स्लोआन डिजिटल स्काय सर्वे नाम के अवलोकन कार्यक्रम के तहत किया. ऐसे ब्लैक होल क्वेसार की अवस्था में हैं. अभी तक चक्रों के साथ आने वाली गैलेक्सी के तारों की रोशनी को नजरअंदाज किया जाता था. क्वेसार के प्रकाश में विविधता केलिए नया प्रतिमान का उपयोगकर वीवर और उसने साथियों ने गैलेक्सी से आने वाले प्रकाशों को अलग-अलग किया.

इससे प्रतिमान के जरिए शोधकर्ता अभिवृद्धि चक्र के प्रकाश को सीधे देख  पाए, भले ही गैलेक्सी अरबों प्रकाशवर्ष दूर ही क्यों ना स्थित हों. शोधकर्ताओं ने पाया कि चक्र या डिस्क के पास की खगोलीय धूल भी इस प्रकाश में बाधा डालती है. खगोलीय धूल के बहुत से प्रतिमानों का उपयोग कर वे  उस धूल के प्रभाव को भी हटाने में सफल रहे. वे यह पता लगा सके कि अभिवृद्धि चक्र ब्लैक होल से पास और उससे दूर कितने गर्म हैं.

मंथली नोटेसिस ऑफ द रॉयल एस्ट्रोनॉमिकल सोसाइटी में प्रकाशित अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पाया कि ब्लैक होल के पास स्थित अभिवृद्धि चक्र का हिस्सा पहले जितनी उम्मीद की जाती थी उससे कहीं ज्यादा गर्म था. अध्ययन में सुझाया गया है कि हमें ब्लैक होल को लेकर अपने अवधारणाएं और मान्यताएं बदलने की जरूरत है.

‘लावारिस’ ब्लैक होल

हमारे वैज्ञानिक लावारिस या दुष्ट या निष्किसित ग्रह (Rogue Planet) से सुदूर दिखाई ना देने वाले तारों की खोज करने लगे हैं. ऐसा वे पिछले कई सालों से कर रहे हैं. यह काम सीधे तौर से करना संभव नहीं है क्योंकि ना तो ऐसे ग्रहों की खुद की कोई रोशनी होती है और ना ही इनका कोई तारा होता है जिसके वे चक्कर लगाते हैं जिसकी रोशनी में बदलाव इनके बारे में कोई जानकारी दे सके. वहीं कई सुदूर तारों (Stars) की रोशनी भी हम तक नहीं पहुंच पाती है क्योंकि बीच में गैलेक्सी या दूसरे तारों की रोशनी बाधा डालती है. अब वैज्ञानिकों ने इसी तकनीक से एक नए पिंड की खोज की है जिसे लावारिस ब्लैक होल (Rogue Black Hole) कह सकते हैं.

लावारिस ब्लैक होल या निष्कासित अथ्वा दुष्ट ब्लैक होल का अस्तित्व लंबे समय से सैद्धांतिक तौर पर मौजूद है. साल 2009 में इसके अस्तित्व का जिक्र हुआ था, लकिन यह कभी ब्रह्माण्ड में ‘दिखाई’ नहीं दिया. इसकी पहचान छह साल के अवलोकन अभियान से हुई जिसमें दर्जनों लेखकों के योगदान के बाद आर्काइव में प्रकाशित हुआ है. (अभी तक इसका पियर रीव्यू नहीं हुआ है)

इस अध्ययन के लिए आंकड़े साल 2011 से जुटाए जाने लगे थे जब 20 हजार प्रकाशवर्ष दूर स्थित एक तारा अचानक चमकने लगा. वैज्ञानिक इसी तरह की घटना की तलाश में थे और इस तरह की कुछ घटनाएं पहले भी देख चुके थे, लेकिन उनसे उन्हें पर्याप्त आंकड़े नहीं मिल सके थे. इस घटना से उनकी काफी उम्मीद जाग गईं.

वैज्ञानिक अब तक माइक्रोलेंसिंग (Microlensing) से लावारिस ब्लैक होल की जानकारी निकाल पा रहे हैं. जो ग्रेविटेशनल लेंसिंग का ही एक प्रकार है. (तस्वीर: NASA via Wikimedia Commons)

शोधकर्ताओं ने माइक्रोलेंसिंग तकनीक का उपयोग किया अगर कोई प्रकाशहीन पिंड किसी सुदूर तारे के आगे से गुजरता है तो वह तारा स्रोत हो जाता है जिसके आगे यह पिंड रहता है. इस पिंड का गुरुत्व इस स्रोत से आने वाले प्रकाश को मोड़ सकता है या फिर बड़ा सकता है.  इस वजह से पृथ्वी पर मौजूद अवलोकन करने पर इस स्रोत में एक अस्थायी चमक देखाई देती है. इसे ही हम ग्रैविटेशनल माइक्रोलेसिंग की घटना कहते हैं. और इसी का अध्ययन कर पिंड की उपस्थिति की पुष्टि होती है.

माइक्रोलेंसिंग से पता चलता है कि पृष्ठभूमि का पिंड, तारा या गैलेक्सी ज्यादा ही चमक रहा है. ऐसा ही 2011 में भी दिखा था. इसके अलावा स्थिति अनुकूल होने पर विशालकाय लेंसिंग करने वाला पिंड सामने से गुजरने पर पीछे का पिंड टेलीस्कोप में दूसरी जगह जाता दिखाई देता है. लेकिन अभी तक जगह बदलने जैसा कुछ नहीं दिखा था.

ब्लैक होल (Black Hole) के आसपास की गतिविधियों से ही ब्लैक होल के बारे में बहुत सारी जानकारी मिलती है. (प्रतीकात्मक तस्वीर)

कैलाश साहू और उनके साथियों ने हबल टेली स्कोप को इस तारे की ओर घुमाया इसके बाद उन्होंने अगले छह सालों तक इसकी चमक का अवलोकन किया और उसकी स्थिति के आंकड़े भी जुटाए, जिससे छोटे सी गतिविधि से भी माइक्रोलेंसिंग का पता चल सके. इससे उन्होंने तेज प्रकाश और स्थिति परिवर्तन दोनों  का तो पता चला, लेकिन यह स्पष्ट नहीं हो सका कि पिंड ब्लैक होल है.

शोधकर्ताओ ने लेंस, यानि जो पिंड प्रकाश पर लेंस जैसे प्रभाव दे रहा है, से आने वाले प्रकाश का स्तर जांचा. उन्होंने पाया है कि यह प्रभाव किसी भूरे बौने तारे या फिर छोटे पिंड का नहीं है. इसके अलावा लेंसिंग के प्रभाव कि अवधि भी ज्यादा लंबी थी जिससे पता चला कि पिंड का गुरुत्व बहुत ज्यादा होना चाहिए. 2011 की घटना 300 दिनों तक चली थी जिससे  इस ब्लैक होल का भार सूर्य से करीब 7.1 गुना ज्यादा था.

भार से वैज्ञानिक यह भी पता लगा सके कि यह ब्लैक होल 45 किलोमीटर प्रति सेंकड की गति से घूम रहा है जबकि आसपास के तारों की इतनी गति नहीं है. इससे भी इसके ब्लैक होल होने की पुष्टि हुई. शोधकर्ताओं का अनुमान है किएक अतिविशालकाय तारे के विस्फोट से यह  ब्लैक बना होगा और दूर चल गया होगा. यह घटना 10 करोड़ साल पहले हुई होगी. आने वाले दिनों में और अधिक अवलोकन होने से ऐसे और भी ब्लैक होल खोजे जा सकते हैं.

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