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असलियत में इंसान गाय के बाप हैं, न कि गाय इंसान की मां !

असलियत में इंसान गाय के बाप हैं, न कि गाय इंसान मां !
असलियत में इंसान गाय के बाप हैं, न कि गाय इंसान की मां !

भारत में कुछ लोगों की मान्यता है कि गाय इंसान की मां है लेकिन असलियत यह है कि इंसान गाय का बाप है, न कि गाय इंसान की मां. चौंक गए ना ? आइए इंसान और गाय के रिश्ते के इतिहास पर नज़र डालते हैं. दस मिनट निकाल कर इत्मीनान से पढ़िए —

मनुष्य को साइंस में ‘homo sapiens’ नाम दिया गया है. Homo का मतलब होता है आदमी और sapiens का मतलब होता है समझ रखने वाला. अंग्रेज़ी की डिक्शनरी में sapient का अर्थ wise और intelligent दिया गया है.

साक्ष्य बताते हैं कि बंदर से मानव बनने की शुरुआत 70 लाख साल पहले हुआ, जब हमारे पूर्वजों ने चार पैर पर चलना छोड़ कर दो पैर पर चलना शुरू किया. अगली क्रांति हुई जब इन पूर्वजों ने पत्थर को नुकीला करके शिकार करना शुरू किया. इस दौर को Stone Age (पत्थर युग) कहा गया. अन्य बड़ी क्रांतियों में गुफ़ाओं में रहना, अपने हाथों से आग जलाना और खाना पकाना, और भाषा की उत्पत्ति शामिल है.

क़रीब 25-30 लाख साल पहले हमारे पूर्वजों के जीवन में एक नई शुरुआत हुई जब उन्होंने मांस खाना शुरू किया. बंदर पेड़ पर रह कर फल इकट्ठा करके खाता है इसलिए उसे gatherer कहा गया है, यानी इकट्ठा करने वाला. Stone Age के मांस खाने वाले पूर्वजों को हम hunter-gatherer कहते हैं क्योंकि वो फल इकट्ठा करते थे और मांस का शिकार करते थे. अन्य जानवरों के साथ वो जंगली गाय भी खाते थे.

जंगली गाय (Auroch) का शिकार करते

आपको जानकर हैरत होगी कि ये क्रांतियां करने वाले हमारे पूर्वज homo, यानी आदमी, ज़रूर थे लेकिन sapiens नहीं थे. वे सभी दूसरी species के थे. उनकी दिमाग़ी और शारीरिक संरचना हम homo sapiens से काफ़ी अलग थी. विशेषज्ञ बताते हैं कि पिछले 70 लाख सालों में homo की कम से कम 21 अलग अलग species हुईं जो बंदर से मानव बनने के सफ़र में लाखों साल लगी रहीं. है न मज़ेदार बात !

हम homo sapiens की उत्पत्ति तो महज़ दो लाख साल पुरानी बताई जाती है. क़िस्सा ये है कि उन इक्कीस पूर्वज homo species में से एक species का एक गुट किसी घटना के चलते अपने क़बीले से अलग हुआ और evolve होकर homo sapiens बना. और भी हैरत की बात ये है कि इतिहास में एक ही वक़्त पर कई-कई homo species एक साथ ज़िंदा थीं.

जब हम homo sapiens बने घूम रहे थे तब भी क़रीब आठ अलग अलग homo species घूम रही थी, जो हम से अलग DNA रखते हुए हमारे समानांतर बंदर से मानव बन रही थी. ऐसी दो species के साथ — जिनमें एक Neanderthal थी — हम homo sapiens के शारीरिक संबंध भी बने, जिसके चलते उनका थोड़ा बहुत DNA हमारे अंदर भी है. लेकिन धीरे-धीरे बाक़ी सभी मानव species लुप्त हो गईं — चालीस हज़ार साल पहले Neanderthal भी — और सिर्फ़ हम homo sapiens बचे. है न कमाल की बात !

तो इस तरह हम समझ सकते हैं कि जब दो लाख साल पहले homo sapiens उभरे तो वो अच्छे-ख़ासे hunter-gatherer थे और शर्तिया तौर पर.जम कर मांस खाते थे. साफ़ है कि भारत के हिंदुओं के hunter-gatherer पूर्वज भी मांस खाते थे, और जंगली गाय का मांस खाते थे.

ये तय है कि बंदरों की जो कई सारी species मानव बनने की होड़ में थी, उनमें homo sapiens — यानी हम — सबसे अक्लमंद और होशियार थे. जैसे जैसे हम और sapient — यानी और समझदार — होते गए वैसे-वैसे हमारा दिमाग़ अक्ल और आकार दोनों में बढ़ता गया. हाल ये हो गया कि अगर पेट में ही हमारे बच्चे का पूरा दिमाग़ बन जाता तो उसका आकार इतना बड़ा होता कि वो मां के गर्भाशय से बाहर ही नहीं निकल पाता. इसीलिए हमारी अगली बड़ी क्रांति ये हुई कि हमारा बच्चा अधकच्चा दिमाग़ लिए नौ महीने बाद ही मां के पेट से बाहर आने लगा और उसका दिमाग़ सालों तक बाहर ही बढ़ता रहा. इस मामले में हम बेजोड़ हैं क्योंकि दुनिया के अधिकतर जानवरों के बच्चों का दिमाग़ मां के पेट में ही पूरा विकसित हो जाता है.

इस तरह बड़े दिमाग़ के ज़रिए तेज़ी से बढ़ते sapiens की वजह से इंसान ने तमाम कामों में महारत हासिल करनी शुरू की. जल्द ही लाखों सालों का hunter-gatherer दौर ख़त्म हुआ.

आज से बारह हज़ार साल पहले एक और ऐतिहासिक क्रांति आई जब homo sapiens ने खेती की शुरुआत की. दुनिया की पहली खेती मध्य एशिया के उस इलाक़े में हुई जहां आज इज़रायल, फ़िलिस्तीन, सीरिया, लेबनान और तुर्की हैं. खेती की शुरुआत के साथ ही इंसान ने जानवरों को पालतू बनाना शुरू किया. इस तरह इंसान के जीवन में आज की गाय का पदार्पण हुआ.

इस पृथ्वी पर जंगली गाय की उत्पत्ति क़रीब ढाई लाख साल पहले हुई. इस जंगली गाय को अंग्रेज़ी में Auroch (औरॉक) नाम दिया गया है. इस जंगली Auroch का क़द-काठी आज की पालतू गाय से कहीं बड़ा था. इसे क़ाबू करना आसान नहीं था. Stone Age के लंबे दौर में hunter-gatherer इसे मार कर खाता था लेकिन जब खेती शुरू हुई तो इंसान को मवेशी की ज़रूरत पड़ी.

इंसान ने सबसे पहले भेड़, फिर बकरी, और फिर सूअर और गाय को पालतू बनाया. सबसे पहले Auroch को क़रीब नौ हज़ार साल पहले तुर्की में पालतू बनाया गया. फिर आज से 6 हज़ार साल पहले भारतीय उपमहाद्वीप पर जहां आज पाकिस्तान है, वहां Auroch को पालतू बनाया गया. यही हमारी आज की भारतीय गाय है, जिसे हम ज़बरदस्ती मां कहते हैं.

जब हम homo sapiens 2 लाख साल पहले हुए और गाय महज़ 6 हज़ार साल पहले हुई और वो भी हमारे पालतू बनाए जाने पर, तो साफ़ है कि हम गाय के बाप हैं, न कि गाय हमारी मां !

ध्यान रहे कि ऋग्वेद की संरचना गाय को पालतू बनाए जाने के तक़रीबन ढाई हज़ार से तीन हज़ार साल बाद हुई. ऋग्वेद हिंदू धर्म का पहला धार्मिक ग्रंथ माना जाता है. ऋग्वेद में लिखा है कि गाय को नहीं काटा जाना चाहिए. इसका मतलब ये हुआ कि गाय को पालतू बनाए जाने के क़रीब ढाई हज़ार साल बाद तक गाय को काटने और उसके ख़ाने पर रोक नहीं थी !

एक बात और जान लीजिए. लाखों साल के इतिहास में homo sapiens या किसी और homo species ने कभी भी गाय या बकरी का दूध नहीं पिया. उसकी वजह ये है कि दूध में एक प्रकार की चीनी होती है जिसे पचाने का enzyme पहले सिर्फ़ दुधमुंहे बच्चे में होता था इसलिए वो अपनी मां का ही दूध पीता था. बड़े होने पर इंसान के शरीर में ये enzyme ख़त्म हो जाता था और इंसान lactose intolerant हो जाता था.

बड़े होकर दूध पीने का सिलसिला भी गाय के पालतू बनाए जाने के बाद शुरू हुआ. आधिकारिक तौर पर तो इसकी वजह पक्की नहीं है लेकिन विशेषज्ञों का अनुमान है कि मध्य एशिया के गरम इलाकों की तर्ज़ पर जब homo sapiens ने यूरोप के ठंडे इलाक़ों में खेती शुरू की तो वो खेती फ़ेल होने लगी. अकाल और भुखमरी की नौबत आ गई. ऐसे में इंसान ने मवेशी का दूध पी कर गुज़ारा करने की कोशिश की.

Lactose interlant होने की वजह से जनसंख्या में कई लोग मरे भी होंगे लेकिन दूध पीते-पीते धीरे-धीरे इंसान का lactose tolerance बढ़ गया. यही वजह है कि आज भी यूरोप के लोग बेहतर दूध पचा पाते हैं जबकि मध्य एशिया व अफ़्रीका में lactose intolerance का फैलाव है.

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