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चंद्रयान -3 की चंद्रमा यात्रा

चंद्रयान -3 की चंद्रमा यात्रा
चंद्रयान -3 की चंद्रमा यात्रा
मुनेश त्यागी

कल भारतवर्ष ने अपने ज्ञान विज्ञान का इस्तेमाल करके, एक बहुत बड़ा कदम उठाया, जब हमारे वैज्ञानिकों ने चंद्रयान -3 को चंद्रमा की यात्रा के लिए भेज दिया. चंद्रयान-3 ने अपनी यात्रा शुरू कर दी है और उसे हमारे वैज्ञानिकों ने पृथ्वी के चारों ओर सटीक कक्षा में स्थापित कर दिया है.

अब यह चंद्रयान पहले पृथ्वी के पांच चक्कर लगाएगा और उसके बाद पांच चक्कर चंद्रमा के लगाएगा और उसके बाद चांद की सतह पर उतरेगा और वहां से तरह-तरह की नई जानकारियां धरती पर भेजेगा. भारत के अंतरिक्ष के इतिहास में यह एक बहुत बड़ा कदम है जिसकी तैयारियां काफी समय से चल रही थीं.

अब यहां पर अपने चंद्रमा के बारे में जानना बहुत जरूरी है. हमारे देश के प्राचीन ग्रंथों में नौ ग्रहों के नाम मिलते हैं. पुराने जमाने के ये ग्रह इस प्रकार हैं – सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु और केतु. इन ग्रहों को देवता मानकर, कई धार्मिक लोग आज भी इनकी पूजा-अर्चना करते हैं.

ज्ञान विज्ञान के प्रचार प्रसार के बाद, आज हम जानते हैं कि सूर्य ग्रह नहीं है, यह एक तारा है. चंद्र ग्रह नहीं है, यह पृथ्वी का उपग्रह है. राहु और केतु कोई ग्रह नहीं हैं, ये सिर्फ काल्पनिक बिंदु हैं. इस प्रकार पुराने जमाने के ग्रहों में असली ग्रह केवल पांच ही थे. अभी तक की प्राप्त जानकारी के अनुसार सौर मंडल यानी सूर्य के असली नौ ग्रह इस प्रकार हैं – बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, बृहस्पति, शनि, यूरेनस, नेप्चून और प्लेटो.

इनमें से अंतिम तीन ग्रह यूरेनस, नेप्चून और प्लेटो तो हमसे बहुत दूर हैं, इन्हें केवल दूरबीन से ही देखा जा सकता है. इसलिए पुराने जमाने के ज्योतिषी इन्हें खोज नहीं सकते थे. इन तीनों ग्रहों की खोज पिछले 200 साल में हुई है. प्लेटो को तो इसी सदी में सन 1930 में खोजा गया है. अभी तक की जानकारी के अनुसार प्लेटों को ग्रहों के दर्जे से बाहर कर दिया गया है.

हमारे देश के महान ज्योतिषी आर्यभट्ट ने अपने ग्रंथ में स्पष्ट किया है कि पृथ्वी अपनी धुरी पर चक्कर काटती है. आर्यभट्ट ने यह भी लिखा है कि पृथ्वी की छाया जब चांद को ढ़ंक लेती है तो चंद्रग्रहण होता है और जब चंद्रमा सूर्य को ढक लेता है तो सूर्य ग्रहण होता है. इस प्रकार हम देखते हैं कि चंद्र ग्रहण और सूर्य ग्रहण में राहु और केतु का कोई रोल नहीं है.

आज हम जानते हैं कि हमारी यह पृथ्वी किसी चीज पर खड़ी नहीं है, यह स्थिर भी नहीं है. पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है और चांद पृथ्वी की परिक्रमा करता है. हमारी पृथ्वी एक ग्रह है और चंद्रमा उसका एक उपग्रह. हमारी पृथ्वी, हमारे चांद से 81 गुना भारी है. पृथ्वी का व्यास चांद के व्यास से करीब 4 गुना बड़ा है. हमारी पृथ्वी अपने उपग्रह यानी चांद को लेकर सूरज की परिक्रमा करती है. अतः पृथ्वी और चांद सौरमंडल में ग्रह उपग्रह का एक अद्भुत जोड़ा है.

आकाश में जितने भी पिंड हैं, उनमें सूर्य के बाद चंद्रमा ने ही पृथ्वी के प्राणियों को सबसे ज्यादा प्रभावित किया है. चांद की अपनी कोई रोशनी नहीं है, वह सूर्य के प्रकाश से चमकता है, चांद की सतह पर बर्फ जमी हुई है. इसी वजह से रात के समय में चांद की चांदनी हमें ठंडक प्रदान करती है. रात के अंधेरे में यही प्रकाश यानी चांदनी, हमें सुख और शांति देता है.

धरती के मानव ने हजारों साल तक, चंद्रमा के बारे में तरह-तरह की कल्पनाएं की हैं. उसने चंद्रलोक की कल्पना की और चंद्र की यात्रा के लिए कथाएं भी गढ़ीं लेकिन चंद्र यात्रा के सपने हमारे समय में ही पूरे हो गए. आज धरती का मानव, चंद्रमा की यात्रा करके लौट आया है.

पृथ्वी से चंद्रमा की औसत दूरी 3,84,400 किलोमीटर है. चंद्रमा भी वृत्ताकार कक्षा में नहीं, बल्कि दीर्घ वृत्ताकार कक्षा में पृथ्वी की परिक्रमा करता है इसलिए पृथ्वी से चांद की महत्तम दूरी 4,06,670 किलोमीटर होती है और न्यूनतम दूरी 3,56,400 किलोमीटर.

चांद करीब एक किलोमीटर प्रति सेकंड के वेग से 27 दिन 7 घंटे 43 मिनट और 11 सेकेंड में पृथ्वी की एक परिक्रमा पूरी कर लेता है. यह इतने ही समय में अपनी धुरी पर भी एक चक्कर काट लेता है. इसका परिणाम यह होता है कि चंद्रमा का एक गोलार्द्ध हमेशा ही पृथ्वी की ओर रहता है. पृथ्वी से हमें चंद्र का दूसरा गोलार्ध कभी दिखाई नहीं देता.

चंद्रमा पर पानी नहीं है, वायुमंडल भी नहीं है. चंद्रमा के जिन क्षेत्रों को ‘समुद्र’ कहा जाता है, वे मैदान है. चांद की सतह पर बड़े-बड़े गड्ढे यानी क्रेटर्स और ऊंचे ऊंचे पर्वत हैं. चांद का जो गोलार्ध पृथ्वी से दिखाई देता है, वहां तापमान 130 डिग्री सेंटीग्रेड तक पहुंच जाता है और रात के समय शून्य से 150 डिग्री सेन्टिग्रेड से नीचे उतर आता है.

इस प्रकार हमें जो दिखाया और बताया जाता है कि चंद्रमा के मुख और आंखें हैं, वह सब कपोल कल्पित बातें हैं. चंद्रमा कोई प्राणी नहीं है, वह पृथ्वी का उपग्रह है. अतः उसकी आंख या नाक होने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता.

काफी समय पहले धरती का मानव चंद्रमा पर जाकर लौट आया है. चांद की सतह पर कई यंत्र स्थापित किए गए हैं जो हमें नई जानकारियां दे रहे हैं. चांद के तल पर ‘लूनाखोद’ नामक स्वचालित गाड़ियां भी उतारी गई हैं. चांद पर सोवियत यूनियन (रूस), अमेरिका और चीन के यान पहुंच चुके हैं. अब यह भारत की कोशिश है कि वह चांद पर पहुंच जाएं और चांद पर पहुंचने वाला दुनिया का चौथा देश बन जाए.

चंद्रयान के चंद्रमा पर उतरने के बाद यह चांद के बारे में हमें नई-नई तरह की जानकारियां जुटाएगा, जिससे हम चांद के बारे में और अधिक जान पाएंगे. चंद्रयान-3 की चंद्रमा यात्रा हमारे ज्ञान विज्ञान का एक बहुत बड़ा कदम है. चंद्रयान की इस सफल यात्रा पर भारत के प्रत्येक नागरिक को बहुत नाज है.

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