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पृथ्वी और पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति के सम्बन्ध में नई वैज्ञानिक खोजें

पृथ्‍वी के निर्माण से जुड़ी स्‍पष्‍ट तस्‍वीर हासिल करने के लिए रिसर्चर्स ने डायनैमिक मॉडल बनाए और ग्रहों के निर्माण को सिम्‍युलेट किया.

पृथ्‍वी के निर्माण प्रक्रिया को समझने के लिए दुनिया भर के वैज्ञानिक नये-नये तरीकों से रिसर्च कर रहे हैं. अब ज्‍यूरिख में ईदजेनोसिस टेक्नीश होचस्चुले (ETH) के रिसर्चर्स ने पृथ्‍वी के निर्माण को लेकर एक नई थ्‍योरी प्रस्‍तावित की है. इस थ्‍योरी को लेबोरेटरी एक्‍सपेरिमेंट्स और कंप्‍यूटर सिम्‍युलेशन के दम पर तैयार किया गया है. अपनी स्‍टडी में रिसर्चर्स ने यह प्रदर्शित करने के लिए मॉडल डेवलप किए हैं कि हमारे सौर मंडल में ग्रह कैसे बनते हैं ? रिसर्चर्स का निष्‍कर्ष है कि कई अलग-अलग शिशुग्रहों (planetesimal) के मिश्रण से पृथ्वी बनी हो सकती है.

पृथ्वी उत्पत्ति का डायनामिक मॉडल

नेचर एस्ट्रोनॉमी में पब्लिश हुई इस स्‍टडी के प्रमुख लेखक और ईटीएच ज्यूरिख में एक्‍सपेरिमेंटल प्‍लैनेटोलॉजी के प्रोफेसर पाओलो सोसी ने कहा है कि खगोल भौतिकी और ब्रह्मांड विज्ञान में आमतौर पर यह सिद्धांत प्रचलित है कि पृथ्वी कोन्ड्राइट (chondritic) एस्‍टरॉयड से बनी है. कोन्ड्राइट उन पत्थरीले उल्काओं (Meteorite) को कहा जाता है जो उस धूल व कणों के बने हैं, जो सौर मंडल के शुरुआती विकास-क्रम में मौजूद थे. ग्रहों, उपग्रहों और अन्य बड़ी वस्तुओं के निर्माण में इनका अहम योगदान माना जाता है.

हालांकि इस थ्‍योरी की खामियों पर बात करते हुए पाओलो सोसी ने कहा है कि किसी भी कोन्ड्राइट का कोई भी मिश्रण पृथ्वी की सटीक संरचना की व्याख्या नहीं कर सकता. परन्तु, पृथ्‍वी के निर्माण से जुडीं कुछ थ्‍योरी यह कहती हैं कि चीजों के टकराने से पृथ्वी का निर्माण हुआ, बहुत गर्मी पैदा हुई और हल्के तत्व वाष्पित हो गए और ग्रह को उसकी मौजूदा संरचना में छोड़ दिया लेकिन सोसी के अनुसार, ये सभी थ्‍योरीज विश्वसनीय नहीं लगती हैं.

पृथ्‍वी के निर्माण से जुड़ी स्‍पष्‍ट तस्‍वीर हासिल करने के लिए रिसर्चर्स ने डायनैमिक मॉडल बनाए और ग्रहों के निर्माण को सिम्‍युलेट किया. सोसी ने कहा कि गुरुत्वाकर्षण खिंचाव के जरिए ज्‍यादा से ज्‍यादा मटीरियल जमा करके छोटे कण धीरे-धीरे बढ़े और किलोमीटर के आकार के planetesimal (शिशुग्रह) बन गए. planetesimal (शिशुग्रह) उन ठोस वस्तुओं को कहते हैं जो किसी तारे के इर्द-गिर्द बन रहे मलबे में मौजूद होते हैं. शिशुग्रह और कोन्ड्राइट दोनों ही चट्टान और धातु के छोटे पिंड हैं, लेकिन शिशुग्रह ज्‍यादा गर्म होते हैं. जाहिर तौर पर जब यह तारों के बाहर मलबे में मौजूद होते हैं, तो सूर्य के आसपास भी विभ‍िन्‍न क्षेत्रों में रहे होंगे.

रिसर्चर्स ने सिम्‍युलेट करते हुए शुरुआती सौर मंडल में हजारों शिशुग्रहों को एक दूसरे से टकराया. उन्होंने देखा कि कई अलग-अलग शिशुग्रहों (planetesimal) के मिश्रण से पृथ्वी की रचना हो सकती है. इन रिसर्चर्स का मानना ​​है कि उनके पास पृथ्वी के गठन और अन्य चट्टानी ग्रहों के निर्माण पर रोशनी डालने के लिए यह एक बेहतर मॉडल मौजूद है.

ब्रह्मांड के रहस्यों को जानने में लगे वैज्ञानिक आए दिन नए-नए खुलासे कर रहे हैं. अब वैज्ञानिकों ने आकाशगंगा के बीच में एक खास मॉलिक्यूलर बादल खोजे हैं, जहां आरएनए (RNA) का निर्माण करने वाले अतिसूक्ष्म कण भारी मात्रा में मिले हैं. इस बादल में अलग-अलग नाइट्राइल्स (Nitriles) पाए गए हैं. जब ये कण अकेले होते हैं, बेहद टॉक्सिक होते हैं, लेकिन उपयुक्त वातावरण में आने के बाद जीवन की उत्पत्ति के लिए कार्य करने लगते हैं. ये जीवन का निर्माण करते हैं. इनको जीवन की उत्पत्ति के लिए जरूरी माना जाता है.

जीवन की उत्पत्ति में आकाशगंगा के केंद्र का कोई रोल

आकाशगंगा के केंद्र में वैज्ञानिकों ने आरएनए के पूर्वज खोज निकाले हैं. अब वैज्ञानिकों ने उम्मीद जताई है कि अब इससे ब्रह्मांड में मौजूद जीवन की उत्पत्ति को बेहतर तरीके से समझा जा सकता है. इसके साथ ही यह भी समझ सकेंगे कि क्या हमारे पूर्वजों की उत्पत्ति में आकाशगंगा के केंद्र का क्या कोई रोल है ? वैज्ञानिकों के अनुसार यह भी समझा जा सकेगा कि जीवन के कण कैसे अंतरिक्षीय बादलों से धरती पर पहुंचे ? इन कणों से कैसे जीवन की शुरुआत हुई ?

स्पैनिश नेशनल रिसर्च काउंसिल और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एयरोस्पेस टेक्नोलॉजी के एस्ट्रोबायोलॉजिस्ट विक्टर रिविला ने इस बारे में कई महत्वपूर्ण जानकारियां दी हैं. विक्टर रिविला ने कहा है कि अंतरिक्ष में बड़े सूक्ष्म स्तर पर, लेकिन बड़े पैमाने पर रसायनिक प्रक्रियाएं होती हैं. यहां से जानकारी मिलती है कि शायद ब्रह्मांड में जीवन की उत्पत्ति यहीं से हुई हो और बाद में धरती पर पहुंचा हो. अभी तक कोई भी वैज्ञानिक यह नहीं पता लगा पाया है कि जीवन की उत्पत्ति कैसे हुई ?

अब इस नई जानकारी से कई राज खुल सकते हैं. जीवन की उत्पत्ति को लेकर विभिन्न वजहें बताई जाती हैं, पहला यह कहा जाता है कि दुनिया में आरएनए (RNA) पहले आया, फिर इसका शारीरिक रूप से विकास हुआ. इसने सेल्फ रेप्लिकेशन किया, इसके बाद अपने आप अलग-अलग रूपों में बदलता चला गया. यह आरएनए वर्ल्ड हाइपोथिसिस (RNA World Hypothesis) है.

विक्टर का कहना है कि आकाशगंगा में पाए कणों को फिलहाल धरती के कणों से मिला कर यह नहीं जांच कर सकते हैं कि दोनों में कितनी और कैसी समानता है लेकिन धरती पर मिलने वाले आरएनए से पहले इन्हीं नाइट्राइल्स को प्रीबायोटिक कण माना गया है जो उल्कापिंडों और एस्टेरॉयड के जरिए यह धरती पर आए होंगे.

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