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नाईट्रोजन

अंतरिक्ष (Space) के ज्यादातर अध्ययन कहीं ना कहीं जीवन की उत्पत्ति (Origin of life) की खोज से संबंधित होते हैं. यह किसी तरह का छोटा मोटा सवाल नहीं है बल्कि इससे जुड़े बहुत सारे सवाल हैं जिनके जवाब की हमारे वैज्ञानिकों को तलाश है. इन्हीं में से एक सवाल है पृथ्वी (Earth) पर नाइट्रोजन गैस (Nitrogen gas) की उत्पत्ति का. इस सवाल का जवाब तलाशते हुए शोधकर्ताओं ने पाया है  कि पृथ्वी पर नाइट्रोजन उसके आसपास से ही आई है.

राइस यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने उल्कापिंडों के अध्ययन में पाया है कि पृथ्वी पर नाइट्रोजन उसे आसपास से मिली थी. लोह उल्कापिंडों में आइसोटोपिक संकेतों से इस बात का खुलासा हुआ है कि पृथ्वी पर नाइट्रोजन गुरू ग्रह की कक्षा के आगे से ही नहीं बल्कि ग्रह निर्माण के अंदरूनी डिस्क की धूल से भी आई थी.

हाल ही में नेचर एस्ट्रोनॉमी में प्रकाशित इस अध्ययन में प्रमुख लेखक और राइस स्नातक दमनवीर ग्रेवाल, राइस फैकल्टी राजदीप दासगुप्ता और फ्रांस की यूनिवर्सिटी ऑफ लॉरेन के जियोकैमिस्ट बर्नार्ड मार्टी शामिल हैं. यह शोध पृथ्वी और सौरमंडल के अन्य पथरीले ग्रहों में जीवन के लिए आवश्यक उड़नशील तत्वों पर हो रही बहस पर विराम लगाने का काम कर सकती है.

ग्रेवाल ने बताया कि शोधकर्ता हमेशा ही सोचते थे कि गुरू ग्रह की कक्षा के पहले के सौरमंडल के अंदरूनी हिस्से नाइट्रोजन और दूसरे उड़नशील तत्वों के ठोस रूप में संघनित होने लिए बहुत गर्म थे. इसका मतलब यह था कि उड़नशील तत्व आंतरिक डिस्क में गैसीय अवस्था में थे.

आज के पथरीले ग्रहों के पहले के हिस्से, जिन्हें प्रोटोप्लैनेट कहा जाता है, स्थानीय धूल से आंतरिक डिस्क में बढ़ने लगे थे. ऐसा लगता था कि इसमें नाइट्रोजन और दूसरे उड़नशील तत्व शामिल नहीं थे, जिससे यह धारणा बनी कि ये सौरमंडल के बाहरी हिस्से से ही आए होंगे. इस टीम के पिछले अध्ययन से यह पता चला है कि बहुत सारा उड़नशील समृद्ध सामग्री पृथ्वी से उस टकराव के दौरान आई जिससे चंद्रमा का निर्माण हुआ था.

लेकिन नए संकेत साफ तौर पर बताते हैं  गुरू ग्रह से बाहर से केवल कुछ ही मात्रा में नाइट्रोजन पृथ्वी पर आई थी. हाल के कुछ सालों में वैज्ञानिकों ने उल्कापिंडों में अवाष्पशील तत्वों का अध्ययन किया जिसमें लौह उल्कापिंड भी शामिल हैं जो पृथ्वी पर गिरे हैं. इससे यह पता चला है कि बाहरी और आंतरिक सौरमंडल की धूल में बहुत ही अलग कर आइसोटोपिक संरचना है.

शोधकर्ता जानना चाहते थे कि क्या यह अंतर उड़नशील तत्वों पर भी लागू होता है. जहां लौह उल्कापिंड प्रोटो प्लैनेट की कोर के अवशेष थे जो आज के पथरीले ग्रहों के बीज की तरह थे जिससे शोधकर्ता अपनी परिकल्पना की जांच करना चाहते थे. शोधकर्ताओं ने इन उल्कापिंडों में नाइट्रोजन एक विशेष आइसोटोपिक संकेत पाया जिसकी सौरमंडल के निर्माण के तीन लाख साल बाद ही बारिश हुई थी.

शोधकर्ताओं ने पाया कि सभी आंतरिक डिस्क के उल्कापिंडों में नाइट्रोजन-15 की मात्रा कम है,  लकिन बाहरी डिस्क में ज्यादा इससे पता चलता है कि पहले कुछ लाखों सालों में ही प्रोटोप्लैनेटरी डिस्क दो अलग नाइट्रोजन के भंडारण में बंट गई थी. शोधकर्ताओं का मानना है कि यह पड़ताल बाह्यग्रहों के अध्ययन के लिए बहुत ही उपयोगी सिद्ध होगी.

पृथ्वी पर नाइट्रोजन उसके बनने के समय से ही थी

नाइट्रोजन का जीवन में योगदान

नाइट्रोजन एक अनिवार्य तत्व है जो प्रत्येक जीव के पर्याप्त विकास एवं कार्य के लिए जरूरी है. नाइट्रोजन सभी एमीनों अम्लों में पाया जाता है, प्रोटीनों में शामिल रहता है तथा क्षारों के रूप में मौजूद रहता है, जिनसे डीऑक्सीरिबोन्युक्लिक अम्ल (डीएनए) और राबोन्युक्लिक अम्ल (आरएनए) का निर्माण होता है. पादपों में नाइट्रोजन की अधिकांश मात्रा पर्णहरित अणुओं के उपयोग में आती है, जो प्रकाशसंश्लेषण और आगे विकास के लिए जरूरी होती है.

यद्यपि वायुमंडल 78 प्रतिशत नाइट्रोजन गैस से बना है पर यह अपेक्षाकृत एक निष्क्रिय गैस है इसलिए, सजीव वस्तुओं द्वारा इसे प्रत्यक्ष उपयोग में नहीं लाया जा सकता. बिना नाइट्रेटों या अन्य नाइट्रोजन यौगिकों में बदलाव करके इसका उपयोग करना संभव नहीं. हालांकि मृदा में मौजूद कतिपय जीवाणु तथा समुद्र में मौजूद साइनो जीवाणु कुछेक जीव हैं जो इस परिवर्तन को स्वतंत्रतापूर्वक अंजाम देने में समर्थ हैं.

Nitrogen cycle diagram (credit-byjus)

वायुमंडलीय नाइट्रोजन का एक ऐसे रूप में रूपान्तरण जो पादपों के लिए आसानी से उपलब्ध हो सके तथा इस तरह से जानवरों और मानवों के लिए भी सुलभ हो सकना नाइट्रोजन चक्र में जीने के लिए एक अनिवार्य कदम है. ऐसे रूपान्तरण के चार तरीके हैं –

1. जैविक यौगिकीकरण : एजोटोबैक्टर जैसे मुक्त सजीव जीवाणु के साथ फलीदार पौधों के अक्सर जुड़े सहजीवी जीवाणु नाइट्रोजन का यौगिकीकरण करने और उसे कार्बनिक नाइट्रोजन के रूप में आत्मसात करने में सक्षम हैं. पारस्परिक नाइट्रोजन यौगिककरण का एक उदाहरण राइजोबियम जीवाणु है, जो पादपों के जड़गांठ में रहता है. दूसरा उदाहरण प्रकाश संश्लेषी साइनो जीवाणु का है जो अक्सर मरुभूमि मृदाओं के रूप में पायोनियर अधिवासों में मुक्त सजीव अवयवों में या अन्य पायोनियर अधिवासों मे शैवालों साथ सहजीवी के रूप में मौजूद रहता है. वे जलीय फर्न सजोला और साइकडों के रूप में अन्य जीवों के साथ भी सहजीवी जुड़ावों का भी निर्माण करते हैं.

2. औद्योगिक नाइट्रोजन यौगिकीकरण : फ्रिट्ज हेबर और कार्ल बोस्च ने एक प्रक्रिया की खोज की जिसमें 1909 में औद्योगिक आधार अमोनिया का उत्पादन करते हुए समृद्ध लोहा या रुथेनियम उत्प्रेरक के रूप में नाईट्रोजन यौगिकीकरण प्रतिक्रिया का उपयोग किया जाता है. हेबर-बोस्च प्रक्रिया से हाइड्रोजन गैस के साथ नाइट्रोजन को अमोनिया खादों में परिवर्तित कर दिया जाता है.

3. जीवाश्म ईंधनों का दहन : ऑटोमोबाइल इंजिन और तापीय बिजली संयंत्र नाइट्रोजन ऑक्साइड निर्गत करते हैं.

4. अन्य प्रतिक्रियाएं : इसके अतिरिक्त, बिजली कड़कने के दौरान वैद्युतीय आवेश के परिणामस्वरूप मृदा में नाइट्रोजन जोड़ा जा सकता है. बिजली चमकने से उत्पन्न ऊर्जा के कारण ऑक्सीजन और नाइट्रोजन गैस जलवाष्प के साथ संयोजन करके तनु नाइट्रिक अम्ल का निर्माण करती है. यह अम्ल वर्षा में घुलकर मृदा में नाइट्रोजन तत्व को बढ़ाता है.

कोशिका का प्रतिस्थापन, कोशिकाओं का उत्पादन, ऊतक की मरम्मत के लिए नाइट्रोजन की आवश्यकता होती है. कुछ अन्य प्रकार के यौगिकों को बनाने के लिए जो कि प्रोटीन नहीं होते है, नाइट्रोजन की आवश्यकता होती है, जैसे कि हीमोग्लोबिन में हीम का उपयोग किया जाता है जो लाल रक्त कोशिकाओं में ऑक्सीजन लाता है.

इस लेख से, ज्ञात होता है कि नाइट्रोजन हमारे जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. यह प्रोटीन संश्लेषण में मदद करती है. हमारे शरीर में अमोनिया को यूरिया में परिवर्तित करके, मूत्र के रूप में शरीर से बहार निकलती है. इस तरह नाइट्रोजन वापस पर्यावरण में आ जाती है.

नाइट्रोजन के बारे में महत्वपूर्ण तथ्य

नाइट्रोजन की खोज (Discovery of Nitrogen) :

नाईट्रोजन

नाइट्रेट की खोज सर्वप्रथम सन 1772 में स्काटलैंड के प्रसिद्ध रसायनज्ञ डेनियल रदरफोर्ड ने की थी. प्रारम्भ में नाइट्रोजन का नाम एजोट रखा गया. नाइटर (KNO3) का एक आवश्यक अवयवी तत्व होने के कारण इसका नाम नाइट्रोजन चेपटल नामक वैज्ञानिक ने रखा.

नाइट्रोजन प्रकृति में मुक्त एंव संयुक्त दोनों अवस्थाओं में पाई जाती है. वायुमण्डल मुक्त नाइट्रोजन का अपार भंडार है. यह वायुमण्डल में सर्वाधिक मात्रा (लगभग 78.06%) में पायी जाती है. संयुक्त अवस्था में यह नाइट्रेट के रूप में साल्टपीटर (NaNO3) तथा शोरे (KNO3) में पाई जाती है. उपजाऊ भूमि में नाइट्रोजन अमोनियम लवणों (NH4NO2, तथा NH4NO3) के रूप में पाई जाती है.

नाइट्रोजन की प्राप्ति (Extraction of Nitrogen)

Nitrogen Extraction from Air

(1) प्रयोगशाला विधि (Laboratory Method)

एक गोल पेंदे वाले फ्लास्क में नौसादर (NH4Cl) और सोडियम नाइट्राइट (NaNO2) को मिलाकर धीरे-धीरे गर्म किया जाता है, जिससे अमोनियम नाइट्राइट (NH4NO2) बनता है.

NH4Cl + NaNO2 → NH4NO2 + NaCl

अमोनियम नाइट्राइट अपघटित होकर नाइट्रोजन गैस देता है.

NH4NO2 → N2 + 2H2O

(2) लिन्डे विधि द्वारा (By Linde’s process)

नाइट्रोजन प्राप्तकरने की लिन्डे विधि (Linde’s process) में जूल-थामसन प्रभाव (Joule–Thomson effect) द्वारा नाइट्रोजन प्राप्त की जाती है.

जूल-थामसन प्रभाव (Joule–Thomson effect) : इसके अनुसार अधिक दाब (High Pressure) पर किसी गैस को किसी छोटे छिद्र से अचानक कम दाब (Low Pressure) के क्षेत्र में भेजे तो उसका ताप बहुत कम हो जाता है.

अधिक दाब (High Pressure) होने के करण गैस अणु पास-पास होते है, जिसके कारण उनके मध्य तीव्र आकर्षण बल (Attraction force) होता है. यदि दाब को अचानक कम कर दिया जाता है तो उस गैस के अणुओं की ऊर्जा अवशोषित (Absorbed) होती है जिससे उनका ताप कम हो जाता है. यह क्रिया बार-बार दोहराने से वह वायु द्रवित (liquidified) हो जाती है.

विधि इस विधि में वायुमण्डलीय वायु को 200 वायुदाब पर सम्पीडित (Compressed) कर जल प्रशीतक (Water Refigretor) में ठन्डा किया जाता है. फिर इस वायु को निर्वात में एक जेट से गुजारा जाता है. वायु को बार-बार सम्पीडित (Compressed) कर इस प्रक्रिया को तब तक दोहराया जाता है, जब तक वायु द्रवित नहीं हो जाती है. इस प्रकार प्राप्त द्रवित वायु का प्रभाजी वाष्पन (Affectionate vapor) करके नाइट्रोजन प्राप्त कर ली जाती है. प्रभाजी वाष्पन में नाइट्रोजन ऑक्सीजन से अधिक वाष्पशील होने के कारण पहले प्राप्त होती है.

नाइट्रोजन के भौतिक गुण (Physical Properties of Nitrogen)

नाइट्रोजन के रासायनिक गुण (Chemical Properties of Nitrogen)

क्रियाशीलता (Reactivity) – यह कम क्रियाशील होती है. नाइट्रोजन की रासायनिक अभिक्रियाएं उच्च ताप व दाब (High temperature and pressure) पर होती हैं.

ज्वलनशीलता (Flammability) – यह गैस अज्वलनशील है. यह स्वंय नहीं जलती और ना ही जलाने में सहायक हैं.

धातुओं के साथ अभिक्रिया (Reaction with metals) :

रक्त तप्त गर्म अवस्था में मैग्नीशियम, एलुमिनियम, लिथियम आदि धातुएं नाइट्रोजन के साथ अभिक्रिया कर नाइट्राइड (MN2) बनाते हैं.

3Mg + N2 → 2Mg3N2

3Ca + N2 → 2Ca3N2

6Na + N2 → 2Na3N

6K + N2 → 2K3N

2Al + N2 → AlN

6Li + N2 → 2Li3N

अधातुओं के साथ अभिक्रियाएं (Reactions with non-metals) –

नाइट्रोजन, हाइड्रोजन के साथ उच्च दाब तथा 723K से 773K ताप पर अभिक्रिया करके अमोनिया गैस बनती है. इस अभिक्रिया में लोह चुर्ण तथा मलिब्डेनम उत्प्रेरक का कार्य करते है.

N2 + H2 → 2NH3

अभिक्रिया उत्क्रमणीय होती हैं. नाइट्रोजन, ऑक्सीजन के साथ विद्युत स्फुल्लिंग में अभिक्रिया करके नाइट्रिक ऑक्साइड गैस बनाती है.

N2 + O2 → 2NO

नाइट्रोजन, कार्बन के साथ विद्युत भट्टी में अभिक्रिया करके सायनोजन बनाती है.

N2 + C → C2N2

कैल्सियम कार्बाइड के साथ नाइट्रोजन उच्च ताप पर क्रिया कर कैल्सियम सायनेमाइड या नाइट्रोलिम बनाती हैं.

N2 + CaC2 → CaCN2 + C

नाइट्रोजन के उपयोग (Uses of Nitroen)

यह गैस वायुमण्डल में उपस्थित ऑक्सीजन की सक्रियता (Reactivity) को नियंत्रित (Control) करती है, जिसके कारण वस्तुएँ जलती नहीं रहती. इसके यौगिक नाइट्रोजन उर्वरक (Nitrogenous fertilizer) बनाने में काम आते हैं. ये बन्द डिब्बों, प्रयोगशाला आदि में निष्क्रिय वातावरण (Passive environment) बनाने में नाइट्रोजन काम आती हैं. यह बिजली के बल्बों (Bulbs) तथा उच्च तापमापी यंत्रों में प्रयुक्त की जाती हैं.

नाइट्रोजन का स्थिरीकरण (Fixation of nitrogen)

वायुमण्डल की मुक्त नाइट्रोजन (Free nitrogen) से नाइट्रोजन युक्त यौगिक (Nitrogenous Compound) बनाने की क्रिया ‘नाइट्रोजन का स्थिरीकरण (Fixation of Nitrogen)’ कहलाती हैं. वायुमण्डल में नाइट्रोजन मुक्त अवस्था (N2) में होती हैं, जबकि विभिन्न नाइट्रोजनीय यौगिकों में उपस्थित नाइट्रोजन संयुक्त अवस्था में होती हैं.

नाइट्रोजन का स्थिरीकरण दो प्रकार से होता है –

1. औद्योगिक रूप में
2. जैविक रूप में

(1) औद्योगिक नाइट्रोजन स्थिरीकरण

(अ) नाइट्रिक अम्ल का निर्माण

बर्कलैंड आइड विधि द्वारा नाइट्रिक अम्ल का निर्माण किया जाता है. वायु को विद्युत् आर्क में से गुजारने पर नाइट्रोजन (N2) ऑक्सीजन (O2) से संयुक्त होकर नाइट्रिक ऑक्साइड (NO) बनाती है.

N2 + O2 → 2NO

नाइट्रिक ऑक्साइड (NO) ठण्डी होने पर ऑक्सीजन (O2) से मिलकर नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO2) बनाती हैं.

2NO + O2 → 2NO2

नाइट्रोजन डाइ ऑक्साइड (NO2) को जल में अवशोषित करने पर नाइट्रीक अम्ल बनता (HNO3) है.

2NO2 + H2O → HNO2 + HNO3

(ब) अमोनिया का निर्माण करने में :

हैबर विधि (Haber Method) द्वारा अमोनिया का निर्माण किया जाता है. वायुमण्डलीय नाइट्रोजन का हाइड्रोजन के साथ 1:3 के अनुपात में उच्च दाब व कम ताप पर उत्प्रेरक लोह चुर्ण तथा मोलिब्डेनम की उपस्थिति में संयोग कराने पर अमोनिया का निर्माण होता है.

N2 + H2 → 2NH3

(2) जैविक रूप में नाइट्रोजन स्थिरीकरण

लेग्युमिनेसी कुल के पादपों (मूंगफली, मटर, चना, सोयाबीन) की जड़ों में गांठे पाई जाती हैं, जिनमें सहजीवी जीवाणु (राइजोबियम) पाये जाते हैं. ये जीवाणु (bacteria) वायुमण्डलीय नाइट्रोजन (Atmospheric nitrogen) को सीधे ग्रहण कर नाइट्रोजन के यौगिकों (Nitrogenous Compund) में बदल देते हैं, जिन्हें पादप ग्रहण कर लेते हैं.

मिटटी में पाये जाने वाले ऐजोटोबेक्टर (Azotebacter) जीवाणु भी मुक्त नाइट्रोजन ग्रहण करके नाइट्रोजन स्थिरीकरण (Nitrogen Fixation) करते हैं. ऐसे जीवाणु जिनके द्वारा वायुमण्डलीय नाइट्रोजन का स्थिरीकरण किया जाता हैं, नाइट्रीकारक जीवाणु (nitrifying bacteria) कहलाते हैं.

नाइट्रोजन के यौगिक (Compunds of Nitrogen)

अमोनिया (Ammonia) :

इसका निर्माण हैबर द्वारा किया जाता है.

अमोनिया के भौतिक गुण (Physical Properties of Ammonia)
अमोनिया के रासायनिक गुण (Chemical Properties of Ammonia)

ज्वलनशीलता (Reactivity) यह न तो स्वंय जलती है और न ही जलाने में सहायक है, परन्तु ऑक्सीजन की उपस्थिति में पीली लौ के साथ जलकर N2 गैस मुक्त करती है.

4NH3 + 3O2 → 2N2 + 6H2O

अपघटन (Dissociation) अमोनिया विद्युत् स्फुलिंग द्वारा नाइट्रोजन तथा हाइड्रोजन में अपघटित हो जाती है.

4NH3 → N2 + 3H2

ऑक्सीकरण (Oxidation) गर्म प्लैटिनम तार की उपस्थिति में 1073K ताप पर ऑक्सीजन के साथ क्रिया कर नाइट्रीक ऑक्साइड बनाती है.

4NH3 + 5O2 → 4NO + 6H2O

हैलोजनों से अभिक्रिया (Reaction with halogen) अमोनिया (NH3),क्लोरीन (Cl2) और आयोडीन (I2) से सान्द्रता के अनुसार दो प्रकार से क्रिया करती है :

क्लोरीन से अभिक्रिया (Reaction with chlorine)

यदि क्लोरीन की मात्रा कम तथा अमोनिया की अधिकता हो तो अभिक्रिया के फलस्वरूप नौसादर (NH4Cl) एवं नाइट्रोजन (N2) बनती है.

8NH3 + 3Cl2 → 6NH4Cl + 6N2

यदि क्लोरीन (Cl2) की मात्रा अधिक तथा अमोनिया (NH3) कम हो तो नाइट्रोजन ट्राइक्लोराइड (NCl3) बनता है, जो विस्फोटक हैं.

NH3 + 3Cl2 → NCl3 + 3HCl

आयोडीन के साथ अभिक्रिया (Reaction with iodine)

अमोनिया (NH3), आयोडीन के साथ अभिक्रिया कर नाइट्रोजन ट्राइआयोडाइड (NI3) बनाती है.

NH3 + 3I2 → NI3 + 3HI

नाइट्रोजन ट्राइआयोडाइड (NI3) अमोनिया से संयुक्त होकर अमोनियामय नाइट्रोजन ट्राइआयोडाइड बनाता हैं, जो भूरे रंग का होता हैं.

2NH3 + 3I2 → NH3.NI3 + 3HI

दोनों ही पदार्थ NI3 तथा NH3.NI3 प्रबल विस्फोटक हैं.

क्षार धातुओं के साथ अभिक्रिया (Reaction with Alkali Metals)

द्रव अमोनिया क्षार धातुओं (Alkali Metals) के लिये विलायक (Solvent) का कार्य करता हैं. क्षार धातुएं इसमें घुलकर नीला विलयन बनाती है, जो प्रबल अपचायक (Strong reducing agent) होता हैं.

NH3 + 2Na → NaNH2 + H2

NH3 + 2K → KNH2 + H2

NH3+ Ca → Ca(NH2)2 + H2

गर्म क्षार धातुओं के साथ अभिक्रिया करके ऐमाइड (Amide) बनाती हैं.

धातु लवण से अभिक्रिया (Reaction with metal salts)

अमोनिया का जलीय विलयन (Aqueous solution) धातु लवण से अभिक्रिया कर उनके हाइड्राक्साइड (MOH) अवक्षेपित करता है.

NaCl + NH4OH → NaOH + NH4Cl

KCl + NH4OH → KOH + NH4Cl

CaCl2 + 2NH4OH → Ca(OH)2 + 2NH4Cl

MnCl2 + 2NH4OH → Mn(OH)2 + 2NH4Cl

AlCl3 + 3NH4OH → Al(OH)3 + 3NH4Cl

FeCl3 + 3NH4OH → Fe(OH)3 + 3NH4Cl

फोस्जीन से अभिक्रिया

अमोनिया फोस्जीन से अभिक्रिया करके यूरिया बनाती हैं.

COCl2 + NH3 → NH2CONH2 + 2HCl

अम्लों से साथ अभिक्रिया

सान्द्र HCl के साथ अभिक्रिया कर नौसादर के श्वेत धूम्र बनाती हैं.

NH3 + HCl → NH4Cl

जटिल यौगिक बनाना

अनेक धातु लवणों से अमोनिया आधिक्य में अभिक्रिया कर विलेय जटिल यौगिक (Complex compound) बनाती हैं. जैसे कापर सल्फेट को अमोनिया विलयन (NH4OH) में घोलने पर टेट्राऐमिन क्युप्रिक सल्फेट का गहरा नीला विलयन बनता हैं.

CuSO4 + 4NH4OH → [Cu(NH3)4]SO4 + 4H2O

अमोनिया के उपयोग (Uses of Ammonia)

नाइट्रोजन के ऑक्साइड (Oxides of Nitrogen)

नाइट्रोजन (N2) ऑक्सीजन (O2) से संयोग करके निम्न प्रकार के ऑक्साइड (Oxides) बनाती हैं–

  1. नाइट्रस ऑक्साइड (N2O)
  2. नाइट्रीक ऑक्साइड (NO)
  3. नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO2)
  4. डाइनाइट्रोजन ट्राइऑक्साइड (N2O3)
  5. डाइ नाइट्रोजन टेट्राऑक्साइड (N2O4)
  6. डाइ नाइट्रोजन पेंटाऑक्साइड (N2O5)

नाइट्रस ऑक्साइड (N2O)

इसे सूंघने से हंसी का आभार होता है, इसलिए इसे हास्य – गैस (laughing gas) भी कहा जाता है. प्रयोगशाला में नाइट्रस ऑक्साइड अमोनियम सल्फेट ((NH4)2SO4) व सोडियम नाइट्रेट (NaNO3 ) के मिश्रण को गर्म करके बनाई जाती हैं.

NaNO3 + (NH4)2SO4 → 2NH4NO3 + Na2SO4

NH4NO3 → N2O + 2H2O

नाइट्रिक ऑक्साइड (NO)

कॉपर पर तनु नाइट्रिक अम्ल (Dil. HNO3) की क्रिया से नाइट्रिक गैस बनती हैं.

Cu + HNO3 → 3Cu(NO3)2 + 4H2O + 2NO

गैस को फेरस सल्फेट (FeSO4) विलयन में अवशोषित कर तथा प्राप्त गहरे भूरे नाइट्रोसो फेरस सल्फेट (FeSO4.NO) को गर्म करके शुद्ध नाइट्रिक ऑक्साइड (NO) प्राप्त होती हैं.

FeSO4 + NO → FeSO4.NO → FeSO4 + NO

डाइनाइट्रोजन ट्राइऑक्साइड (N2O3)

1:1 के अनुताप में नाइट्रिक डाइऑक्साइड के मिश्रण को 253Kताप पर ठण्डी नली में से प्रवाहित करने पर डाइनाइट्रोजन ट्राइऑक्साइड नीले द्रव के रूप में प्राप्त होता हैं.

NO + NO2 → N2O3

नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO2) अथवा डाइनाइट्रोजन टेट्राऑक्साइड (N2O4) :

प्रयोगशाला में इसे लैड नाइट्रेट [Pb(NO3)2] को गर्म करके बनाया जाता है.

2Pb(NO3)2 → 2PbO + 4NO2 +O2

नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO2) गैस को हिम मिश्रण (Snow mixture) में रखी U नली में द्रवित करने पर डाइ नाइट्रोजन टेट्राऑक्साइड (N2O4) द्रव के रूप में द्रवित हो जाती हैं.

NO2 → N2O4

डाइ नाइट्रोजन पेन्टाऑक्साइड (N2O5)

यह एक उर्ध्वपाती (Elevation) गुणों वाला ठोस है जिसे 303Kताप पर सान्द्र नाइट्रिक अम्ल (Conc HNO3) को फस्फोरस पेंटऑक्साइड के साथ गर्म करने पर प्राप्त किया जाता हैं.

नाइट्रिक अम्ल (HNO3)

ओस्टवाल्ड विधि (Ostwald Process) : नाइट्रिक अम्ल ओस्टवाल्ड विधि (Ostwald Process) द्वारा प्राप्त किया जाता हैं.

1 आयतन अमोनिया और 8 आयतन वायु का मिश्रण उत्प्रेरक कक्ष में 1073K ताप पर प्लेटिनम की जाली के ऊपर गुजारा जाता है. चूँकि अभिक्रिया ऊष्माक्षेपी (Exothermic) है अत: इस कक्ष में यह ताप बिना गर्म किये स्थायी रहता हैं. यहाँ अमोनिया के उत्प्रेरक आक्सिकरण (Oxidation) से नाइट्रिक ऑक्साइड (NO2) बनती हैं.

4NH3 + 5O2 → 4NO2 + 6H2O

लगभग 90-95% अमोनिया का नाइट्रिक ऑक्साइड में आक्सीकरण हो जाता हैं.

इस प्रकार बनी हुई नाइट्रिक ऑक्साइड को बची हुई ऑक्सीजन के साथ आक्सीकरण कक्ष में भेजा जाता हैं जहाँ वह आक्सीकृत होकर नाइट्रोजन डाइऑक्साइड में बदल जाती हैं.

2NO + O2 → 2NO2

यहाँ से नाइट्रोजन डाइ ऑक्साइड गैस अवशोषक कक्ष (Absorbing chamber) में भेज दी जाती है, जहां ऊपर से धीरे-धीरे जल गिरता हैं. जल और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड के संयोग से तनु नाइट्रिक अम्ल (Dil. HNO3) है.

2NO2 + H2O → HNO3 + HNO2

3HNO2 → HNO3 + 2NO + H2O

प्राप्त तनु नाइट्रिक अम्ल को जल ऊष्मक पर गर्म कर न्यूनीकृत दाब (redused pressure) पर आसवन करने से लगभग 68% सान्द्र हो जाता है. अधिक सान्द्र HNO3 प्राप्त करने के लिये अम्ल का सान्द्र H2SO4 के साथ न्यूनीकृत दाब पर आसवन किया जाता है, जिससे लगभग 98% सान्द्र अम्ल प्राप्त हो जाता है. इसे सधूम नाइट्रिक अम्ल कहते हैं.

नाइट्रिक अम्ल के उपयोग (Uses of Nitric Acid)

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