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क्या यूक्रेन युद्ध का असर पड़ेगा बड़े वैज्ञानिक प्रयोगों पर ?

क्या यूक्रेन युद्ध का असर पड़ेगा बड़े वैज्ञानिक प्रयोगों पर ?
क्या यूक्रेन युद्ध का असर पड़ेगा बड़े वैज्ञानिक प्रयोगों पर ?

अमेरिका के उकसावे फर यूक्रेन पर रूस के हमले का असर दुनिया में चल रहे साझे बड़े वैज्ञानिक प्रयोग पर असर पड़ेगा, आज यह सवाल वैज्ञानिकों के माथे पर लकीरें खींच रही है. कई उद्योगों और वैज्ञानिक संस्थानों पर इसका बुरा असर पड़ा है, जिनका युद्ध से कोई मतलब नहीं है बल्कि इसका सीधा संबंध मानवीय जीवन, धरती और ब्रह्मांड से है. लेकिन मौजूदा युद्ध से अब इन वैज्ञानिक संस्थानों के काम भी प्रभावित हो रहे हैं.

ज्ञातव्य हो कि पूर्व सोवियत संघ ने जिस उच्चकोटि की शिक्षण-प्रशिक्षण के जरिए विज्ञान को जितनी जल्दी और जिस ऊंचाई पर ले गया था, वह दुनिया में बेमिसाल था. अमेरिका इसके आसपास तक नहीं पहुंच सका. यही कारण है कि जब सोवियत संघ का विखंडन हुआ और रुस जैसा एक विशाल देश एकबार फिर बना, तब भी उसका वैज्ञानिक आधार सर्वश्रेष्ठ रहा.

सोवियत संघ के काल से ही साइंटिफिक रिसर्च के लिए अंतरराष्ट्रीय समझौते होने में दशकों लग गये. इस समझौते का सिर्फ एक ही उद्देश्य था – सिर्फ तकनीकी और वैज्ञानिक विकास का. ज्ञान को एक जगह से दूसरी जगह तक बांटने का. एक संयुक्त प्रयास करके दुनिया और इंसान का जीवन बेहतर बनाने का. लेकिन यूक्रेन पर रुस के हमले और अमेरिका के नेतृत्व में नाटो के हस्तक्षेप के बाद अब सवाल उठने लगा है कि क्या रूस दुनियाभर के वैज्ञानिक शोधकार्यों से खुद को बाहर कर लेगा ?

इससे भी बड़ा सवाल यह उठ खड़ा हो गया है कि रुस के सर्वश्रेष्ठ वैज्ञानिक के इस तरह अलग हो जाने से अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर चल रहे साझे साइंटिफिक रिसर्च को जो नुकसान होगा, उसकी भरपाई आगामी काल में वैज्ञानिक समुदाय किस तरह कर पायेंगे ? आइए जानते हैं उन बड़े शोधकार्यों के बारे में जहां पर रूस किसी न किसी तरह से जुड़ा है और उसके वैज्ञानिकों के हटने से क्या असर पड़ेगा ?

ISS : इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर रिसर्च प्रोग्राम

International Space Station- ISS

अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (International Space Station- ISS) कई देशों के बीच वैज्ञानिक समझौते का सबसे बड़ा उदाहरण है. इसे चलाने में NASA, ROSCOSMOS, Japan Aerospace Exploration Agency, ESA और Canadian Space Agency शामिल हैं.

इस स्पेस स्टेशन को बनाने का काम 1998 में शुरु किया गया था. सब सही चल रहा था लेकिन यूक्रेन पर हमले की वजह से यहां काम प्रभावित हो रहा है. रूसी स्पेस एजेंसी रॉसकॉसमॉस ने अपने ट्विटर हैंडल पर 3 मार्च को लिखा था कि ‘उसने स्पेस स्टेशन पर जर्मनी के साथ सभी संयुक्त वैज्ञानिक प्रयोग रद्द कर दिए हैं’. इसके पहले उसने कहा था कि क्या स्पेस स्टेशन को भारत और चीन पर गिरने दिया जाए ? इस माहौल को देख कर लगता है कि स्पेस स्टेशन को साल 2031 से पहले ही बंद कर दिया जाएगा.

इस समय स्पेस स्टेशन पर सात एस्ट्रोनॉट्स हैं, जिनमें रूस के एंटोन शखापलेरोव और पितोर दुबरोव शामिल हैं. इनके अलावा अमेरिका की कायला बैरोन, मार्क टी. वांडे, राजा चारी, थॉमस मार्शबम और जर्मनी के मैथियास मॉरेर भी हैं. 28 फरवरी को स्पेस ऑपरेशंस मिशन डायरेक्टोरेट की एसोसिएस एडमिनिस्ट्रेटर और NASA की ह्यूमन फ्लाइट की प्रमुख अधिकारी कैथी ल्यूडर्स ने कहा कि हम वर्तमान वैश्विक स्थितियों को समझते हैं. लेकिन एक संयुक्त टीम की तरह ये सातों स्पेस स्टेशन पर काम कर रहे हैं. (फोटोः गेटी)

ITER : दुनिया का सबसे बड़ा परमाणु एक्सपेरिमेंट

Image Source: Twitter/ITER

ITER दुनिया का सबसे बड़ा एटॉमिक फ्यूजन एक्सपेरिमेंट है. इसमें रूस (Russia), अमेरिका और चीन समेत दुनिया के 35 देश शामिल हैं. इन देशों के वैज्ञानिक मिलकर सूरज में होने वाले फ्यूजन रिएक्शन को धरती पर कर रहे हैं ताकि भविष्य में साफ-सुथरी असीमित ऊर्जा मिल सके. यूक्रेन पर हमला करने के बाद फिलहाल अभी तक रूस ने इस प्रोजेक्ट से अपने हाथ नहीं खींचे हैं लेकिन संभावना जताई जा रही है अगर रुस दुनिया के साथ काम करना बंद कर दे तब.

ITER के प्रवक्ता लाबन कोब्लेंट्ज ने कहा कि मेरी जानकारी में अभी तक ऐसी कोई सूचना नहीं है कि रूस ने इस प्रोजेक्ट से खुद को बाहर किया हो. ITER प्रोजेक्ट की शुरुआत कोल्ड वॉर के बाद की गई थी. उद्देश्य था – बेहतरीन ऊर्जा के स्रोत का जन्म करना, ताकि पूरी इंसानियत को फायदा हो.

ITER के इतिहास में भी उसके सदस्यों के बीच राजनीतिक मतभेद रहे हैं. व्यापारिक, सीमाई विवाद और अन्य पहलुओं के बाद भी इस प्रोजेक्ट पर अभी तक कोई असर नहीं पड़ा. लाबन कोब्लेंट्ज ने कहा कि इतने वर्षों में अभी तक किसी भी तरह के राजनीतिक विवादों की वजह से इस प्रोजेक्ट पर कोई असर नहीं पड़ा है. वर्तमान समय अनुमानित नहीं था लेकिन इसे लेकर कोई अंदाजा लगाना फिलहाल ठीक नहीं है. उम्मीद है कि सभी ITER सदस्य Russia Ukraine War की वजह से इस प्रोजेक्ट को प्रभावित होने नहीं देंगे.

ESA: यूरोपियन स्पेस एजेंसी की रॉकेट लॉन्चिंग

यूरोपियन स्पेस एजेंसी (ESA) यूक्रेन पर रूस के हमला करने के बाद सबसे पहले विरोध करने वाली संस्थाओं में थी. एजेंसी ने कहा था कि यूक्रेन के खिलाफ युद्ध छेड़ना दुःखद है. साथ ही उसने कहा था कि वो अपने साथियों की मदद करेगी. प्रोग्राम को यूरोपियन वैल्यू के अनुसार चलाएगी. ESA ने साथी देशों द्वारा रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों का समर्थन किया था.

Changing partners. If NASA drops out, ESA hopes Russia will launch the Exomars craft (artist’s conceptions, above). EUROPEAN SPACE AGENCY

ESA ने बताया कि ExoMars मिशन में अब देरी हो सकती है क्योंकि इसे वह रूस के साथ मिलकर कर रहा था. अब साल 2022 में होने वाली इसकी लॉन्चिंग आगे बढ़ सकती है. ExoMars मिशन के जरिए मंगल ग्रह पर प्राचीन और नए जीवन की खोज की जानी है. इससे पहले रूस ने ESA के लिए रॉकेट लॉन्चिंग बंद कर दी थी.

ISC : द इंटरनेशनल साइंस काउंसिल

द इंटरनेशनल साइंस काउंसिल (ISC) एक गैर-सरकारी संस्था है. जो दुनिया भर की साइंटिफिक बॉडीज को जोड़ने का काम करती है ताकि विज्ञान को बढ़ाया जा सके. ISC ने रूस द्वारा यूक्रेन पर हमला करने का विरोध किया. अपने बयान में संस्था ने कहा कि हमें यूक्रेन पर किए गए मिलिट्री कार्यवाही से अत्यंत दुःख और निराशा है. इस आक्रामक रवैये की वजह से उन समस्याओं के समाधान खोजने में देरी होगी, जो विज्ञान जल्दी खोज सकता था.

हालांकि, संस्थान ने अपने संबंधों को रूस के साथ खत्म नहीं किया है. उसका कहना है कि साइंटिफिक कम्यूनिटी को अलग-थलग करना पूरे समाज और धरती के लिए नुकसानदेह हो सकता है. इसलिए रूस के साथ आर्कटिक और स्पेस रिसर्च चलते रहेंगे.

CERN : हिग्स-बोसोन की खोज करने वाली लैब

यूरोप की सबसे बड़ी प्रयोगशाला है CERN. यह दुनिया का सबसे बड़ा एटम स्मैशर है. जिसे लार्ज हैड्रन कोलाइडर (Large Hadron Collider) कहते हैं. यहां पर भी रूस के वैज्ञानिक शामिल हैं. हालांकि अभी तक इस संस्था ने रूस के हमले को लेकर किसी तरह का बयान जारी नहीं किया है. फिलहाल इस प्रयोगशाला में सभी भागीदार देशों के वैज्ञानिक काम कर रहे हैं. किसी को वापस नहीं बुलाया गया है. न ही कोई काम छोड़कर गया है.

यह तो मौजूदा हालत है, परन्तु अगर यूक्रेन पर रुस का हमला बरकरार रहता है और अमेरिकी और नाटो का हस्तक्षेप बदस्तूर जारी रहता है, तब भविष्य किधर जायेगा, यह कहा नहीं जा सकता क्योंकि रूस पर अमेरिका और यूरोपियन देशों ने जो प्रतिबंध लगाए हैं, इसके जवाब में अब रूस ने अमेरिका पर पलटवार करते हुए अमेरिका को रॉकेट इंजनों (Rocket Engines) की आपूर्ति बंद करने का फैसला किया है. रूसी अंतरिक्ष एजेंसी रोस्कोस्मोस के प्रमुख दिमित्री रोगोजिन (Dmitry Rogozin) ने यह जानकारी दी.

दिमित्री रोगोजिन (Dmitry Rogozin) ने रूसी टेलीविजन पर कहा, ‘इस तरह की स्थिति में हम दुनिया के संयुक्त राज्य अमेरिका (USA) को हमारे द्वारा बनाए जा रहे दुनिया के सर्वश्रेष्ठ रॉकेट इंजनों (Rocket Engines) की आपूर्ति नहीं कर सकते हैं. उन्हें झाडू या किसी और चीज पर उड़ने दो.’

दिमित्री रोगोजिन (Dmitry Rogozin) के अनुसार, रूस ने 1990 के दशक से अब अमेरिका को कुल 122 आरडी-180 इंजन (RD-180 Engines) दिए हैं, जिनमें से 98 का उपयोग एटलस को लॉन्च के लिए बिजली देने में किया गया है. उन्होंने कहा कि रोस्कोस्मोस उन रॉकेट इंजनों की सर्विसिंग भी बंद करेगा, जो पहले अमेरिका को दिए गए हैं. अमेरिका में अभी भी 24 इंजन हैं, जिन्हें अब रूसी तकनीकी सहायता नहीं दी जाएगी.

रुस ने पश्चिमी प्रतिबंधों के जवाब में फ्रेंच गुयाना के कौरो स्पेसपोर्ट से अंतरिक्ष प्रक्षेपण पर यूरोप के साथ अब सहयोग नहीं करेगा. इसके साथ ही रूस ने ब्रिटिश सैटेलाइट कंपनी वनवेब से गारंटी की भी मांग की है कि उसके उपग्रहों का इस्तेमाल सैन्य उद्देश्यों के लिए नहीं किया जाएगा. रोगोजिन ने कहा कि रूस अब रोस्कोस्मोस रक्षा मंत्रालय की जरूरतों के अनुरूप दोहरे उद्देश्य वाले अंतरिक्ष यान बनाने पर ध्यान केंद्रित करेगा.

मॉस्को ने ब्रिटिश सैटेलाइट कंपनी वनवेब से गारंटी की भी मांग की है कि उसके उपग्रहों का इस्तेमाल सैन्य उद्देश्यों के लिए नहीं किया जाएगा. ब्रिटिश सरकार की हिस्सेदारी वाली वनवेब ने गुरुवार को कहा था कि वह कजाकिस्तान में रूस के बैकोनूर कोस्मोड्रोम से सभी लॉन्च को निलंबित कर रही है. रोगोजिन ने कहा कि रूस अब रोस्कोस्मोस और रक्षा मंत्रालय की जरूरतों के अनुरूप दोहरे उद्देश्य वाले अंतरिक्ष यान बनाने पर ध्यान केंद्रित करेगा.

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