विज्ञान की अहम पड़तालों में से एक है कि ब्रह्माण्ड (Universe) की शुरुआत कैसे हुई और आज जो उसका अस्तित्व है उसके पीछे किन तत्वों की भूमिका थी. ब्रह्माण्ड के अभी तक के अवलोकनों से यही प्रमाणित अनुमान लगाया जा सका है कि सबसे पहले बिग बैंग (Big Bang) नाम का विस्फोट हुआ था, लेकिन उससे पहले के बारे में वैज्ञानिकों के किसी भी मत को सभी की सहमति नहीं मिल सकी थी. अब नए शोध में दावा किया गया है कि बिग बैंग के समय से ही एक एंटीयूनिवर्स (Anti-Universe) का भी अस्तित्व हो हो सकता है.
सैद्धांतिक रूप से तथा प्रायोगिक रूप से यह प्रमाणित हो चुका है कि प्रति पदार्थ का अस्तित्व है. अब यह प्रश्न उठता है कि क्या प्रति-ब्रह्माण्ड का अस्तित्व संभव है ? हम जानते है कि किसी भी आवेश वाले मूलभूत कण का एक विपरीत आवेश वाला प्रतिकण होता है. लेकिन अनावेशित कण जैसे फोटान (प्रकाश कण), ग्रैवीटान (गुरुत्व बल धारक कण) का प्रति कण क्या होगा ?
इस नये अध्ययन में कहा गया है कि इस एंटी यूनिवर्स के अस्तित्व से हमारे अपने ब्रह्माण्ड के डार्क मैटर की गुत्थी भी सुलझ सकती है. इस शोध में माना गया है कि शुरुआती ब्रह्माण्ड छोटा और बहुत गर्म एवं घनी अवस्था में था और यह इतना समान था कि इसमें समय आगे और पीछे दोनों ही तरफ जा सकता था.
One of the possible cosmological solutions is that our universe could be the mirror image of an antimatter universe extending backwards in time before the Big Bang. Physicists devised a model positing the existence of an “antiuniverse” paired to our own https://t.co/dJiAN7E7kV pic.twitter.com/odbS3vSpTE
— Massimo (@Rainmaker1973) June 16, 2020
एंटी यूनिवर्स सिद्धांत सीपीटी प्रमेय पर आधारित है, जिसके अनुसार आवेश (Charge), अवस्था जिसे पारिटि (Parity) कहते हैं, और समय (Time) समरूप होते हैं. अगर आप इसे किसी भौतिक अंतरक्रिया के लिए पलट दें तो यह एक ही तरह से बर्ताव करता है. मूलभूत समरूपता को ही सीपीटी समरूपता कहा जाता है. अधिकांश भौतिक अंतरक्रियाएं इनमें से ज्यादातर समरूपताओं का पालन करते हैं.
- समरूपता C (charge) : कण तथा प्रतिकण के लिए नियम समान है.
- समरूपता P (parity) : किसी अवस्था तथा उसकी दर्पण अवस्था के लिए नियम समान है (दायें दिशा में घुर्णन करते कण की दर्पण अवस्था बायें घूर्णन करती होगी).
- समरूपता T (time) : यदि आप सभी कण और सभी प्रतिकण के गति की दिशा पलट दे तो सारी प्रणाली भूतकाल मे चली जायेगी, दूसरे शब्दों में नियम भूतकाल में तथा भविष्य में समान है.
अभी तक इन तीन समरूपताओं का एक साथ कभी उल्लंघन देखने को नहीं मिला है. एनल्स ऑफ फिजिक्स जर्नल में प्रकाशन के लिए स्वीकृत हो चुके इस अध्ययन में प्रस्तावित किया गया है कि समरूपता का अनुप्रयोग पूरे ब्रह्माण्ड कि भौतिक अंतरक्रियाओं तक विस्तारित होता है. चूंकि सभी भौतिक अंतरक्रियाएं इस समरूपता को संरक्षित करती हैं. अतः एक उल्टे ब्रह्माण्ड में, जिसमें आवेश उल्टे होंगे, जो आइने की छवि की तरह उल्टा दिखेगा और जहां समय पीछे की ओर जाएगा. इस ब्रह्माण्ड का अस्तित्व हमारे अपने ब्रह्माण्ड के साथ संतुलन बनाने वाला होना चाहिए.
इस ब्रह्माण्ड का अस्तित्व डार्क मैटर की व्याख्या करने में सहायक हो सकता है. यह दावा लाइव साइंस की रिपोर्ट में किया गया है. उपपरमाणु कणों की श्रेणी में तीन तरह के न्यूट्रीनो का अस्तित्व है. इलेक्ट्रॉन न्यूट्रीनो, मयूऑन न्यूट्रीनो और टाउ न्यूट्रीनो अपनी गति की दिशा की तुलना में बाईं ओर की दिशा में घूमते हैं. अन्य दूसरे कण या तो बाईं ओर या फिर दाईं ओर घूमते हैं. भैतिकविद लंबे समय से इस बात से हैरान थे, क्या दाईं ओर घूमने वाले न्यूट्रीनो भी हो सकते हैं ?
आइने की छवि वाले ब्रह्माण्ड के कारण दाईं ओर घूमने वाले न्यूट्रीनो की उपस्थिति जरूरी हो जाएगी. इन कठिन उप परमाणु कणों का भौतिक अवलोकन बहुत मुश्किल होगा लेकिन वे अंतरिक्ष के दूसरे हिस्सों से गुरुत्व से अंतरक्रिया जरूर कर सकेंगे. ऐसा ही बर्ताव डार्क मैटर का भी होना चाहिए. इस ब्रह्माण्ड के अस्तित्व का मतलब दाईं घूमने वाले न्यूट्रीनों का होना होगा और यह डार्कमैटर की मौजूदगी के लिए काफी होगा.
दिलचस्प बात यह है कि यह आईने की छवि वाला ब्रह्माण्ड का अस्तित्व, कम से कम गणितीय रूप से, बिग बैंग के पहले भी रहा होगा. ऐसे में भी वैज्ञानिक इस अवधारणा की जांच कर सकते हैं. शोधकर्ताओं ने अनुमान लगाया है कि बाईं ओर घूमने वाले न्यूट्रीनों के भी अपने एंटी न्यूट्रीनो होंगे. ऐसे कणों के अस्तित्व की वैज्ञानिक तौर पर पुष्टि नहीं हो सकी है, लेकिन इन्हें माजोराना कण कहते हैं.
सीपीटी मिरर यूनिवर्स मॉडल में भी ब्रह्माण्ड अपनी विस्तारित होता है और कणों से खुद को ही भर लेता है. जबकि कॉस्मिक इन्फ्लेशन सिद्धांत के अनुसार ब्रह्माण्ड प्रकाश की गति से भी तेजी से फैल रहा है. भौतिकविदों का मानना है कि इस तेज विस्तार के कारण ब्रह्माण्ड गुरुत्वाकर्षण तरंगों से भर जाता है. लकिन अगर बहुत से चल रहे प्रयोगों के बाद ये खारिज हो जाता है तो आईने की छवि वाले ब्रह्माण्ड को एक मजबूत सैद्धांतिक नींव मिल जाएगी.